
प्रयागराज में महाकुंभ में मंगलवार की रात मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए लाखों की भीड़ जुटी थी. मंगलवार की रात 2 बजे संगम तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. इसी दौरान पुलिस बैरिकेडिंग का एक हिस्सा गिर गया और भगदड़ मच गई. कुछ ही मिनटों में स्थिति इतनी बेकाबू हो गई कि लोग इधर-उधर भागने लगे. इन हालातों में कई श्रद्धालुओं का सामान गिर गया, जिससे अव्यवस्था फैल गई. लोग एक दूसरे को रौंदते गए. भीड़ में अक्सर ऐसी भगदड़ की स्थितियां पैदा होने और जान-मान के नुकसान की घटनाएं देखी जाती हैं.
इस घटना में प्रशासन की लापरवाही पर बात तो हो रही है लेकिन असल में भारी भीड़ जुट जाने पर एक अलग तरह का मनोविज्ञान भी काम करता है. अफवाहें तेज फैलती हैं, व्यक्तिगत तौर पर लोग अपनी जिम्मेदारी लेने से बचने लगते हैं. ऐसे हालातों में भीड़ को काबू करना बड़ी चुनौती बन जाता है. मनोदशा विश्लेषकों का कहना है कि कभी भी ऐसे बड़े आयोजनों में पहले से ही भीड़ के मनोविज्ञान को समझते हुए उसे काबू करने की तैयारी करना जरूरी होता है. आइए जानते हैं कि कैसे काम करता है भीड़ का मनोविज्ञान..
निष्क्रिय झुंड में बदल जाती है क्रियाशील भीड़
भोपाल के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि हमेशा भीड़ के सदस्य किसी एक विषय पर एक राय होने के बावजूद उनके व्यक्तिगत विचार और कार्यशैली भिन्न होती है. लेकिन जब बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं तो उनमें स्थिरता का अभाव होता है. वो एक अलग तरह के रोमांच से संचालित होते हैं. जो लोग महाकुंभ में हिस्सा लेने गए हैं वो पहले तो एक व्यक्तित्व से संचालित है लेकिन सत्संग के समापन के साथ ही वो भीड़ से संचालित होता है. भीड़ के मनोविज्ञान को समझें तो इनमें जितना भड़कने के चांसेज होते हैं, उतना ही सुरक्षा-व्यवस्था के पालन का भी भाव होता है. लेकिन सिर्फ स्थिरता के अभाव के कारण किसी परिस्थिति विशेष में क्रियाशील भीड़ एक निष्क्रिय झुंड में बदल जाती है. इस भीड़ में निरंकुशता का आना ही भगदड़ और इस तरह की घटनाओं की परिणति कर देती है.
आम जिंदगी में भी काम करती है क्राउड मेंटिलिटी
IHBAS दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि सामाजिक मनोविज्ञान में इसे मॉब मेंटेलिटी, हर्ड मेंटेलिटी, ग्रुपथिंक या क्राउड साइकोलॉजी के तौर पर बताया गया है. इसमें अध्ययनकर्ताओं ने ये निष्कर्ष पाए हैं कि कैसे भीड़ में कोई व्यक्ति लार्जर ग्रुप से प्रभावित होता है. साल 1950 के दशक में, शोधकर्ताओं ने एक खास प्रयोग के जरिये जाना कि कैसे लोग सामाजिक मानदंडों से मेल खाने के लिए अपने व्यवहार को बहुत आसानी से बदल देते हैं.
इस प्रयोग में ये पाया गया कि एक व्यक्ति को जब सात लोगों एक गुप्त समूह में रखकर सवाल पूछा गया तो ग्रुप ने गलत उत्तर दिया. वो भी गलत उत्तर से प्रभावित हो गया. इस प्रयोग में गुप्त सहयोगियों ने जान-बूझकर गलत उत्तर दिया था, लेकिन उस व्यक्ति को सही उत्तर पता होने के बावजूद उसने गलत उत्तर दिया. डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि इस उदाहरण से हमें समझना चाहिए कि कैसे हर इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी भीड़ से प्रभावित होता है, मसलन हम किसी खास जगह जाते हैं या कोई फिल्म देखने जाते हैं, या कोई खास फूड खाते हैं तो ये फैसले भी लोगों से प्रभावित होते हैं. हम उनसे ड्रिवेन होते हैं. क्राउड मेंटिलिटी कई बार किसी एक दुकान की तरफ हमें खींच ले जाती है क्योंकि लगता है जहां भीड़ है, वो कुछ खास वजहों से ही है, भीड़ हमेशा सही कर रही है, हम अपने अधोमष्तिस्क में कई बार ऐसी मान्यता दे चुके होते हैं.
महाकुंभ आयोजन में जुटी भीड़
मनोविज्ञान इसे इस तरह से देखता है कि जब हम किसी महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में हिस्सा ले रहे होते हैं तो वहां की भीड़ से हमारी मेंटिलिटी मैच करने का प्रतिशत और ज्यादा बढ़ जाता है. हम यहां समान रुचि साझा करते हैं. एक साथ जयकारे लगाने से लेकर साथ में चिल्लाकर बोलने से हमारे भीतर रोमांच का स्तर बढ़ जाता है. ये रोमांच की स्थिति इंसान को विचार के स्तर पर एक दूसरे से जोड़ती भी है और क्रियाकलाप के स्तर पर अलग भी करती है. प्रयागराज में जो हुआ उसे सामूहिक चेतना को एक दिशा में करके रोका भी जा सकता था. अगर ऐसे आयोजनों में छोटी-छोटी टीमें किसी लीडर के साथ चलें, वो लीडर भीड़ को गाइड करते हुए चलें. लोगों को नियम कानूनों को मानते हुए चलने को कहे या अफवाह के बारे में जानकारी देता रहे तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. बिना लीडर के जब भीड़ अराजक हो जाती है, वो बस अकेले अकेले ही या एक दो लोग जिनके साथ आए हैं, उनके साथ जान बचाने के लिए भागते हैं, तभी ऐसी घटनाएं अंजाम ले लेती हैं.
कम्यूनिकेशन टूल बहुत जरूरी
राजस्थान के मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि ऐसे मामलों में भीड़ किसी एक फेथ यानी विश्वास पर काम करती है. दुनिया में कई ऐसे भी उदाहरण हैं जब भीड़ ने एकजुटता से किसी की हेल्प की. वहीं ये घटना भीड़ के भगदड़ में बदलने की है. ऐसी घटना में कोई विवाद या किसी अफवाह की खास भूमिका होती है. इस स्थिति में सबसे बड़ा रोल कम्युनिकेशन का होता है, अगर ऐसे मामलों में कम्यूनिकेशन इतना अच्छा हो कि लोगों की तात्कालिक सोच बदली जा सके तो ऐसी घटना रुक सकती है. इसके लिए सबके मोबाइल पर सामूहिक संदेश या किसी एक अथॉरिटी की बात सबतक पहुंच जाए, सबको एक ही जगह पर खड़े होने को आदेश हो जाए तो ये घटना रुक सकती थी.
महाकुंभ में कैसे हुआ हादसा?
महाकुंभ घटना के प्रत्यक्षदर्शी ने aajtak को बताया कि हम आराम से जा रहे थे, तभी अचानक भीड़ आ गई, धक्का मुक्की हुई. हमने बचने की कोशिश की, लेकिन कहीं जगह नहीं थी. सब इधर-उधर हो गए. कई लोग घायल हो गए हैं. स्थिति ऐसी है कि मालूम नहीं क्या हो रहा है.' सुबह का सूरज निकलने तक प्रयागराज में मेडिकल कालेज के मोर्चरी के बाहर गेट पर रोते बिलखते परिजन नजर आ रहे थे. देर रात ही भगदड़ की सूचना मिलते ही पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स और फायर ब्रिगेड की टीमें मौके पर पहुंचीं. क्षेत्र में पहले से ही फायर सर्विस का ऑल-टेरेन व्हीकल मौजूद था, जिसकी मदद से कई घायलों को निकाला गया.