
44 की उम्र में वायुसेना प्रमुख बनना, 15 अगस्त 1947 को सौ से भी अधिक विमानों का लाल किले के ऊपर से फ्लाई पास्ट का भी नेतृत्व करना और वायुसेना में फाइव स्टार सम्मान पाने वाले अफसर अर्जन सिंह वैसे तो अपने अनुशासन के लिए जाने जाते हैं. लेकिन एक बार उन्हें कोर्ट मार्शल तक का सामना करना पड़ा है. शनिवार को दिल्ली के एक अस्पताल में अर्जन सिंह का निधन हो गया.
हां कोर्ट मार्शल, जो उन सैनिकों को सामना करना पड़ता है जो सेना का नियम कानून तोड़ते हैं. एक ऐसा समय आया था जब वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह को वायुसेना का नियम तोड़ने पर कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा.
यह वक्त था आजादी से पहले का, जब सेना की कमान अंग्रेजों के हाथों में थी. युवा अर्जन सिंह ने फरवरी 1945 में केरल के एक घर के ऊपर बहुत नीची उड़ान भरी. इसके बाद उन्हें वायुसेना का नियम तोड़ने के आरोप का सामना करना पड़ा. उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने सिविलियन की जानों को भी जोखिम में डाला. हालांकि अर्जन सिंह ने कोर्ट मार्शल का डटकर सामना किया. उन्होंने अपने बचाव में जो बात कही, उसके बाद उनका कोर्ट मार्शल नहीं हुआ.
एक अखबार में छपी पोस्ट के मुताबिक उस समय अर्जन सिंह कन्नूर केंट एयर स्ट्रीप पर तैनात थे. उन्होंने उड़ान भरी और एयरक्राफ्ट लेकर सीधे कॉरपोरेल के घर के ऊपर पहुंच गए. उन्होंने जहाज को काफी नीचे उड़ाया. कई बार कॉरपोरेल के घर के चक्कर लगाए. ऐसे में न सिर्फ कॉरपोरेल के घरवाले सड़कों पर निकल आएं बल्कि पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. ट्रैफिक जाम लग गया. आपको बता दें कि उस समय हवाई जहाज देखना एक बड़ी बात होती थी और वहां के लोगों ने इससे पहले सिर्फ एक बार हवाई जहाज देखा था.
यह लोगों के लिए तो काफी मजे की बात थी, लेकिन ब्रिटिश प्रशासन को यह बात पसंद नहीं आई और शिकायत ऊंचे अफसरों तक पहुंची और अर्जन सिंह को कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा. हालांकि उस समय ट्रेंड पायलट की संख्या काफी कम होती थी. दूसरे विश्व युद्ध की वजह से ऐसे भी ब्रिटिश सेना को काबिल पायलटों की जरूरत थी. ऐसे में ब्रिटिश सेना चाहकर भी अर्जन सिंह जैसे टैलेंटेड पायलट का कोर्ट मार्शल नहीं कर पाई.
कोर्ट मार्शल का सामना करने के दौरान अर्जन सिंह ने बहस करते हुए कहा था कि उन्होंने ट्रेनी पायलट का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा किया. आपको बता दें कि कहा जाता है कि यह ट्रेनी पायलट कोई और नहीं आगे चलकर एयर चीफ मार्शल बनने वाले एयर चीफ मार्शल दिलबाग सिंह थे. दिलबाग सिंह 1981 से 1984 तक भारतीय वायु सेना के प्रमुख थे. वे अर्जन सिंह के बाद दूसरे सिख थे जो भारतीय वायुसेनाध्यक्ष बने. दिलबाग सिंह को 1944 में एक पायलट के रूप में नियुक्त किया गया था.
आपको बता दें कि अर्जन सिंह अपनी बहादूरी और कभी हार न मानने वाले जज्बे के लिए जाने जाते हैं. वह सैन्य परिवार से ताल्लूक रखते हैं. ऐसे में बचपन से ही सेना के लिए उनके मन में एक अलग प्यार था. एयर मार्शल अर्जन सिंह के पिता रिसालदार थे, एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा दी थी. उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह 1883 और 1917 के बीच कैवलरी से संबंधित थे. उनके परदादा नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1879 के अफगान अभियान के दौरान शहीद हुए थे.
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 के समय चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे अर्जन सिंह की कुशल नेतृत्व और दृढ़ता के साथ स्थिति का सामना करते हुए भारत की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई. बी. चव्हाण ने कहा था, ‘एयर मार्शल अर्जन सिंह हीरा हैं, वह अपने काम में दक्ष और दृढ़ होने के साथ सक्षम नेतृत्व के धनी हैं.’