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...जब रेजीमेंट ने परिवार को शहीद का ताबूत खोलने से किया मना, अंतिम दर्शन भी मुश्कि‍ल

मुखाग्नि देने के लिए उनके पिता राजेंद्र कुमार सिंह पत्थर की तरह जड़ वहां खड़े थे. न आंखों में आंसू, न किसी से कोई बात. 32 साल के जवान बेटे की लाश जब सामने पड़ी हो तो सुनने और बताने को ज्यादा कुछ रह भी ते नहीं जाता.

अंतिम संस्कार के दौरान जुटे लोग अंतिम संस्कार के दौरान जुटे लोग
प्रियंका झा/बालकृष्ण
  • जौनपुर,
  • 20 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 11:18 AM IST

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में गोमती नदी के किनारे बने रामघाट नाम के श्मशान घाट पर सोमवार की रात करीब 11:30 बजे 70 - 80 लोग जमा थे. लेकिन वहां मौत जैसा सन्नाटा छाया हुआ था. लकड़ियों के ढेर पर ताबूत में बंद उरी में शहीद हुए राजेश कुमार सिंह का शव रखा था. मुखाग्नि देने के लिए उनके पिता राजेंद्र कुमार सिंह पत्थर की तरह जड़ वहां खड़े थे. न आंखों में आंसू, न किसी से कोई बात. 32 साल के जवान बेटे की लाश जब सामने पड़ी हो तो सुनने और बताने को ज्यादा कुछ रह भी ते नहीं जाता.

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हमले में क्षत-विक्षत हो गया था शहीद राजेश का शव
एक सवाल ऐसा था जिसको लेकर श्मशान में रात दिन लाशों के साथ काम करने वाले श्मशानघाट के कर्मचारियों का दिल भी दहल रहा था. सवाल यह कि क्या शहीद राजेश सिंह को ताबूत के समेत अग्नि को समर्पित कर दिया जाए या फिर लोगों के अंतिम दर्शन के लिए लाश को ताबूत से बाहर निकाला जाए? यह सवाल इतना मुश्किल इसलिए बन गया था कि राजेश की लाश को लेकर बिहार रेजीमेंट के जो साथी श्रीनगर से यहां तक आए थे वह इस बात पर जोर दे रहे थे कि ताबूत को बिल्कुल नहीं खोला जाए.

उरी की आतंकवादी घटना में शहीद हुए राजेश सिंह की लाश इतनी क्षत-विक्षत हो चुकी थी कि उसे अंतिम दर्शन के लिए निकालना भी संभव नहीं था. इसीलिए घर पर अंतिम दर्शन करने वालों की भीड़ होने के बावजूद और घर के लोगों के लाख आग्रह के बाद भी ताबूत को नहीं खोला गया था.

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पिता के जोर देने पर खोला गया ताबूत
श्मशान में पिता के जोर देने पर आखिरकार ताबूत से निकाल कर लाश को जलाने का फैसला किया गया. लेकिन जब ताबूत से लाश बाहर निकाली गई तो यह बात समझ में आ गई कि उसके साथ इसके लिए क्यों मना कर रहे थे.

20 दिन पहले ही उरी में तैनाती हुई थी
बिहार रेजीमेंट 6 के सिपाही राजेश कुमार सिंह करीब 20 दिन पहले ही उरी में तैनात हुए थे. इससे पहले वह पश्चिम बंगाल में पोस्टेड थे. कश्मीर में पिछले दिनों चल रहे बवाल की वजह से मोबाइल नेटवर्क काम नहीं कर रहे हैं और राजेश की घर पर बातचीत भी नहीं के बराबर हो पाती थी. आखिरी बार 2 दिन पहले उसने अपने पिता से छोटी सी बात की थी. राजेंद्र उससे जम्मू-कश्मीर में तैनाती के बारे में ज्यादा कुछ पूछ पाते इससे पहले ही फोन कट गया और दोबारा बात नहीं हो सकी.

12 साल से फौज में
राजेश अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटा था और फौज में नौकरी करते हुए उसे 12 साल हो गए थे. राजेश की पत्नी अपने 6 साल के बेटे रिशांत के साथ बनारस में रहती है ताकि बेटे की पढ़ाई ठीक से हो सके. सोमवार की शाम राजेश के गांव भाकुरा में शोकाकुल लोगों की भीड़ लगी हुई थी. जौनपुर के सांसद और विधायक समेत तमाम अधिकारी वहां पर मौजूद थे.

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राजेश के 6 साल के बेटे रिशांत को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आख़िर उसके घर पर इतने लोग आज क्यों जमा हैं और सब लोग रो क्यों रहे हैं. वो लोगों से यह भी पूछ रहा था कि उसके घर पर इतने फूल क्यों लाए गए हैं. पूछने पर रिशांत लोगों को बताता कि वह बड़े होकर पुलिस वाला बनना चाहता है. वह कहता है कि पापा जब भी छुट्टी पर आते हैं उसके लिए बिस्किट और चिप्स लाते हैं. लेकिन वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति की हिम्मत नहीं हो रही थी कि इस छोटे से बच्चे को समझाए उसके पापा अब कभी उसके लिए बिस्किट नहीं ला सकेंगे.

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