
मथुरा में बीते गुरुवार 2 जून को जवाहरबाग में हुई हिंसा का मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका में पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई है. अदालत मामले में मंगलवार को सुनवाई कर सकता है.
बता दें कि मथुरा के जवाहरबाग में सरकारी जमीन को कब्जामुक्त करवाने की कार्रवाई के दौरान भीषण हिंसा हुई, जिसमें दो पुलिसकर्मियों समेत 29 अन्य की मौत हो गई. याचिकाकर्ता बीजेपी नेता का कहना है कि इस पूरी हिंसक झड़प के कर्ताधर्ता और आजाद भारत विधिक वैचारिक क्रांति सत्याग्रही के नेता रामवृक्ष यादव को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, जिसकी वजह से वो जवाहरबाग में अपनी एक समानांतर सरकार चला रहा था.
भारी मात्रा में गोला-बारूद बिना राजनीतिक संरक्षण के कैसे?
याचिका में लिखा गया है कि राजनीतिक संरक्षण की वजह से ही रामवृक्ष यादव ने जवाहरबाग में अपने संप्रदाय के लोगों के साथ इतनी अधिक मात्रा में गोला-बारूद जमा करके रखा हुआ था. याचिका में कहा गया है की ये सब बिना सरकारी मदद और राजनीतिक संरक्षण के मुमकिन नहीं है.
मीडिया रिपोर्र्ट्स का दिया हवाला
याचिकाकर्ता ने मीडिया रिपोर्ट्स भी हवाला दिया है और घटना की निष्पक्षता से जांच की मांग की है. याचिका में कहा गया है, 'इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि मामले में सरकार अपने मंत्री का बचाव करने का प्रयास करे. केंद्र सरकार चाहती है कि इस मामले की सीबीआई जांच हो साथ ही कई विपक्षी दल सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ऐसा नहीं चाहती. इसलिए मामले की निष्पक्षता से जांच कराने के लिए सीबीआई को जिम्मा सौंपा जाए.'
दादरी के मुकाबले मथुरा में कम मुआवजा क्यों?
याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रतापगढ़ के कुंडा में डीएसपी जिया उल हक और इखलाक को समाजवादी सरकार ने ज्यादा मुआवजा दिया, जबकि जवाहरबाग में मारे गए पुलिसकर्मियों को मुआवजा कम दिया गया. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि मुआवजे को लेकर एक समान नीति होनी चाहिए.