
#MeToo कैंपेन के तहत देशभर की महिलाएं अपने साथ हुए यौन दुर्व्यवहार व यातनाओं को साझा कर रही हैं और उनके खुलासों से आम से लेकर खास तक कानूनी घेरे में भी फंस गए हैं. हालांकि, महिलाओं के उत्पीड़न की यह लड़ाई अभी सोशल मीडिया तक ही सीमित है और कानून की दहलीज तक बड़े पैमाने पर नहीं पहुंच पाई है. इसी के मद्देनजर वकील एम एल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है.
एमएल शर्मा ने अपनी इस याचिका में मांग की थी कि #MeToo कैंपेन के तहत महिलाएं सामने आकर अपने दर्द की दास्तां बयान कर रही हैं, ऐसे में राष्ट्रीय महिला आयोग को इस मुहिम में उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए. याचिका में मांग की गई थी कोर्ट राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को इस बात के लिए निर्देश दे कि आयोग स्वत: संज्ञान लेकर मीटू की पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए आगे आए.
आजतक से बातचीत में याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने बताया, 'याचिका में कहा गया है कि ऐसी महिलाओं को सुरक्षा मिलनी चाहिए. राष्ट्रीय महिला आयोग खुद संज्ञान ले और ऐसी महिलाओं को आर्थिक और कानूनी मदद भी दे.'
हालांकि, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के कोर्ट में जब यह याचिका पहुंची तो उस पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि यह बहुत जरूरी मामला नहीं है, ऐसे में इस पर तुरंत सुनवाई नहीं की जा सकती है और जब कोई मुकदमा आता है तो इस पर विचार किया जाएगा.
मीटू कैंपेन सोशल मडिया के जरिए शुरू हुआ था और बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के नाना पाटेकर पर आरोप के बाद भारत में इस मामले ने तूल पकड़ा था. तनुश्री के खुलासे के बाद दिन-ब दिन बड़ी फिल्म हस्तियों से लेकर राजनेताओं व पत्रकारों के नाम भी इसमें सामने आए. ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कमेटी गठित करने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में सरकार ने कमेटी की जगह मंत्रियों का एक समूह गठित करने का निर्णय लिया है.