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कलाम सर, काश आप हमारे बीच होते...

दुनिया भले ही कलाम को मिसाइल मैन के तौर पर याद करती हो मगर हमारी पीढ़ी के लिए तो वे परिवार के दादा-नाना सरीखे थे....

Kalam Kalam
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 15 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 11:31 PM IST

अबुल पाकिर जैनुल आबदीन अब्दुल कलाम को हमारी पूरी जनरेशन कलाम कह कर ही पुकारती थी. वे हमारी पूरी जनरेशन के लिए किंवदंती सरीखे थे. रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन से अखबार उठाते उन्हें पढ़ कर अंग्रेजी सीखते वे आम जन के बेहद करीब नजर आते थे. उनका बॉडी लैंग्वेज और हेयर स्टाइल जो कभी फकीराना लगा करता था. समय बीतने के साथ-साथ फैशन स्टेटमेंट बन गया. हमारी पूरी जनरेशन के लिए बहस का केन्द्र बन गया.

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उनकी पूरी जिंदगी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण रही कि गर इंसान चाह जाए तो कुछ भी असंभव नहीं. असंभव उनके सामने महज एक शब्द बन कर ढह जाता है. उन्होंने अपना रास्ता स्वयं तैयार किया. रामेश्वरम की गलियों से निकल कर एयरोस्पेस जैसे कठिन विषय और क्षेत्र में पूरी दुनिया के समक्ष भारत को स्थापित करना होई हंसीठट्ठा थोड़े ही न था. भारत को वैश्विक परिदृश्य में स्थापित किया.

आज भी गूगल पर जिसका नाम डालने पर उद्धरण, जिंदगी और किताबें ही आती हैं. राजनीति की कालकोठरी में लंबा समय बिताने के बाद भी जिसे कालिख छू तक नहीं सकी. पूरी दुनिया जिसकी सादगी से रश्क करती रही. वे ठीक उसी रोज पैदा हुए जिस दिन हिन्दी के मशहूर लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पुण्यतिथि है. हो सकता है कि इसी वजह से निराला का कुछ अंश भी उनमें आ गया हो. जो कवि तो नहीं थे लेकिन जिनकी जिंदगी ही भरपूर कविता थी.

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वे गए तो लगा जैसे हम सभी की जिंदगी में शून्य सा आ गया. वे गर आज होते तो 85 बरस के होते. लगता तो अब भी नहीं कि वे चले गए हैं मगर नियति पर किसका जोर चला है. वे फिर भी हम सब के जेहन में जस के तस धंसे हुए हैं.

हम अपनी अगली पीढ़ी को यह बता सकेंगे कि हमनें मिसाइल मैन को आमने-सामने से देखा है. जिसका होना मात्र ही आश्वस्तकारी होता था. जिसने हमारी पूरी पीढ़ी को सपने देखना सिखाया. उनके पीछे भागना सिखाया. अनथक, अनहद. तुम्हें सलाम है मिसाइल मैन....

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