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मिजोरम का समीकरण: कांग्रेस लगाएगी सत्ता की हैट्रिक या बीजेपी खोलेगी खाता?

मिजोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी के लिए कोशिश में लगी हैं. जबकि बीजेपी प्रदेश में खाता खोलने की कोशिशों में जुटी है. वहीं, क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबंधन कर चुनावी मैदान में हैं.

कांग्रेस और बीजेपी (फोटो-aaktak) कांग्रेस और बीजेपी (फोटो-aaktak)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST

मिजोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता की हैट्रिक लगाने की जुगत में है. जबकि मिजो नेशनल फ्रंट और मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस सत्ता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. यही वजह है कि पूर्वोत्तर के इस छोटे से राज्य में इस बार का चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होता दिख रहा है.

दस लाख आबादी वाले ईसाई बहुल मिजोरम में राजनीतिक समीकरण उलझे हुए हैं. तीन प्रमुख दलों के अलावा इस बार मिजोरम की क्षेत्रीय पार्टियों ने आपस में गठबंधन किया है.

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पीपुल्स रिप्रजेंटेशन ऑर आइडेंडिटी एंड स्टेट और मिजोरम, सेव मुजोरम फ्रंट एंड ऑपरेशन मिजोरम गठबंधन किया है. इसके साथ ही जोराम राष्ट्रवादी पार्टी और जोराम एक्सोदस मूवमेंट ने हाथ मिलाया है. जबकि बीजेपी अकेले मैदान में है.

मिजोरम में विधानसभा की 40 सीटों के लिए इस महीने की 28 तारीख को होने वाले चुनावों में बीजेपी की राह आसान नहीं है. यहां मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के तौर पर सहयोगी होने के बावजूद पार्टी अबकी बार अकेले ही चुनाव लड़ रही है.

फिलहाल राज्य में ललथनहवला के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस 2008 से यहां की सत्ता पर काबिज है. कांग्रेस लगातार तीसरी जीत पर नजर बनाए हुए है. मौजूदाी विधानसभा में कांग्रेस के 34 विधायक हैं जबकि एमएनएफ के पांच और मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का एक विधायक है.

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कांग्रेस ने 2013 में अपनी सीटों में इजाफा किया था. जबकि 2008 में उसके पास 32 सीटें थीं. लगातार दो बार सत्ता में बने रहने के बाद आंतरिक कलह और सत्ता विरोधी लहर की वजह से कांग्रेस के लिए मिजोरम में मुश्किलें खड़ी होती दिख रही है. कांग्रेस के कई नेता पार्टी का साथ छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं.

वहीं, बीजेपी इस बार सत्ता हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है. हालांकि यहां पर एमएनएफ भी दो बार 1998 और 2003 में सरकार बना चुकी है.

राज्य की 87 फीसदी आबादी ईसाई है. ऐसे में बीजेपी पर लगा हिंदुत्ववादी का ठप्पा ही उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा है. इसी मद्देनजर एमएनएफ ने बीजेपी के साथ चुनाव में नहीं उतरी है. मिजोरम में बीजेपी पांच बार चुनाव लड़ने के बावजूद अपना खाता खोलने में नाकाम रही है. लेकिन अबकी पार्टी को इस राज्य से काफी उम्मीदें हैं.

दरअसल पूर्वोत्तर के चार राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और दो में सरकार में साझीदार है. ऐसे में कहीं न कहीं लोगों में उसे लेकर संभावनाएं भी दिख रही हैं. बीते महीने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यहां पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत की थी.

मिजोरम में क्षेत्रीय पार्टियां पूरी ताकत से लड़ रही है. अगर राज्य में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को नहीं छु पाता हैं, ऐसे स्थिति में क्षेत्रीय पार्टियों के बिना सरकार बनाना आसान नहीं होगा.

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