Advertisement

Modi@4: अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामलों पर कटघरे में दिखी मोदी सरकार

मोदी सरकार अपने 4 साल पूरे होने का जश्न मना रही है. सरकार के मंत्री जनता को अपनी उपलब्धियां गिनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को लेकर मोदी सरकार कहीं न कहीं कटघरे में दिखाई दे रही है. पीएम मोदी ने भले ही 'सबका विकास, सबका साथ' जैसा नारा देकर सरकार की छवि बेहतर दिखाने की कोशिश की लेकिन उनके कार्यकाल में अल्पसंख्यकों और खासकर मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ती हिंसा उनके दावे पर सवाल खड़े करती है.

मोदी ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कई कार्यक्रमों में भागेदारी की लेकिन उनका भरोसा नहीं जीत पाए मोदी ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कई कार्यक्रमों में भागेदारी की लेकिन उनका भरोसा नहीं जीत पाए
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 17 मई 2018,
  • अपडेटेड 11:45 AM IST

मोदी सरकार अपने 4 साल पूरे होने का जश्न मना रही है. सरकार के मंत्री जनता को अपनी उपलब्धियां गिनाने का काम कर रहे हैं. लेकिन अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को लेकर मोदी सरकार कहीं न कहीं कटघरे में दिखाई दे रही है. पीएम मोदी ने भले ही 'सबका विकास, सबका साथ' जैसा नारा देकर सरकार की छवि बेहतर दिखाने की कोशिश की लेकिन उनके कार्यकाल में अल्पसंख्यकों और खासकर मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ती हिंसा उनके दावे पर सवाल खड़े करती है. मोदी के शासनकाल में ऐसे कई उदाहरण सामने आए, जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढती नफरत की तस्दीक करते हैं.

Advertisement

मोदी के सत्ता में आते ही देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक माहौल बनाने की कोशिश देखी गई. जिसका नतीजा ये हुआ कि देश भर में गाय के नाम पर हत्याएं की गई. पिछले साल अप्रैल में अलवर में गाय तस्करी के नाम पर पहलू खान नामक मुस्लिम शख्स की बेरहमी से पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद 11 नवंबर को राजस्थान के ही अलवर में उमर खान नामक डेयरी कारोबारी की हत्या को अंजाम दिया गया. यही नहीं जून में तमिलनाडु के सरकारी कर्मचारियों पर भी गोरक्षा के नाम पर हमला किया गया था. इसी तरह गाय के नाम पर यूपी, हरियाणा समेत कई राज्यों में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर हमले किए गए.

बात यहीं खत्म नहीं होती. राजस्थान के ही राजसमंद में 7 दिसंबर 2017 को अफराजुल नामक एक शख्स की हत्या कर कर दी गई. हत्यारे ने हत्या का लाइव वीडियो बनाया. जो बाद में वायरल हो गया. उस वीडियो में हत्यारे ने लव जेहाद और कश्मीर से लेकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत भड़काने वाली बातें कही थी.

Advertisement

बीते साल 20 नवंबर को जयपुर में आरएसएस से जुड़े संगठन स्पिरिचुअल एंड सर्विस फाउंडेशन के मेले में बच्चों को कुछ पर्चे बांटे गए, जिनमें हिंदू परिवारों को संबोधित करते हुए कहा गया था कि वे अपनी बेटियों को बताएं कि मुसलमान गंदे, आतंकवादी, महिलाओं का शोषण करने वाले, धोखेबाज, पाकिस्तान समर्थक और लफंगे होते हैं. बच्चों के उस मेले में राज्य की बीजेपी सरकार के शिक्षा मंत्री के निर्देश पर पर्चे बंटवाए जाने का आरोप है.

इसी साल के पहले माह में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने 'वर्ल्ड रिपोर्ट 2018' जारी करते हुए मोदी सरकार के बारे में कड़ी टिप्पणी की. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सरकार देश में अल्पसंख्यकों पर हमलों को नहीं रोक सकी.

रिपोर्ट के पहले पैरा पर नजर डाले तो उसमें लिखा है, साल 2017 में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, हाशिए के समुदायों और सरकार के आलोचकों को निशाना बनाते हुए नियोजित हिंसा की गई, जो एक बढ़ते खतरे के रूप में सामने आया. सत्तारूढ़ दल बीजेपी के समर्थन का दावा करने वाले संगठनों ने इस कृत्य को अंजाम दिया.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सरकार त्वरित या विश्वसनीय जांच करने में असफल रही जबकि कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने हिंदू प्रभुत्व और कट्टर-राष्ट्रवाद को सार्वजनिक रूप से बढ़ावा दिया, जिसने हिंसा को और बढ़ाया. रिपोर्ट में केंद्र की मोदी सरकार को देश में अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों पर होने वाले हमलों को न रोकने और उन मामलों की सही से जांच न करवाने के लिए आड़े हाथों लिया गया है.

Advertisement

रिपोर्ट में लिखा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े चरमपंथी हिंदू समूहों की भीड़ के हमले पूरे साल अफवाहों के बीच जारी रहे. गायों की खरीद-फ़रोख्त के नाम पर उनका क़त्ल किया गया. हमलावरों के खिलाफ त्वरित कानूनी कार्रवाई करने के बजाय, पुलिस ने अक्सर गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के तहत पीड़ितों के खिलाफ शिकायत दर्ज की. नवंबर 2017 तक, 38 ऐसे हमले हुए और जिनमें 10 लोग मारे गए.

ह्यूमन राइट्स वॉच की इस रिपोर्ट में आरएसएस का भी जिक्र था. रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देर से ही सही पर इस तरह की हिंसा की निंदा की. लेकिन इसके बावजूद भाजपा के एक संबद्ध संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ’गौ-तस्करी और लव-जिहाद रोकने’ के लिए पांच हज़ार ’धार्मिक सेनानियों’ की भर्ती का ऐलान किया. इस वर्ल्ड रिपोर्ट के 28वें संस्करण ह्यूमन राइट्स वॉच ने दुनिया के 90 से ज़्यादा देशों में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में रिपोर्ट दी थी.

अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाली हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर अमेरिकी के प्रसिद्ध समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. यह प्रतिक्रिया कठुआ कांड के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने संपादकीय में दी थी. जिसमें लिखा था कि भारत में इस तरह की और ऐसी ही अन्य हिंसक घटनाएं महिलाओं, मुस्लिमों और दलितों को डराने के लिए 'राष्ट्रवादी ताकतों द्वारा एक संगठित और व्यवस्थित अभियान' का हिस्सा हैं.

Advertisement

'मोदीज लॉन्ग साइलेंस एज वुमेन आर अटैक्ड' शीर्षक के संपादकीय में न्यूयार्क टाइम्स ने याद दिलाया कि कैसे मोदी लगातार ट्वीट करते हैं और खुद को एक प्रतिभाशाली वक्ता मानते हैं. इसके बावजूद पीएम मोदी अपनी आवाज तब खो देते हैं, जब महिलाओं और अल्पसंख्यकों को लगातार राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक ताकतों का सामना करना पड़ता है. राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक ताकतें उनकी भारतीय जनता पार्टी का आधार हैं.

न्यूयार्क टाइम्स ने इससे पहले भी मोदी पर आरोप लगाया था कि उनके राजनीतिक अभियान से जुड़े गौरक्षक समूह ने गायों की हत्या करने के झूठे आरोप लगाकर मुस्लिम और दलितों पर हमले किए और उनकी हत्या की. जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आठ वर्षीय बच्ची के साथ गैंगरेप के बाद हत्या और उत्तर प्रदेश के उन्नाव में बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा कथित तौर पर एक लड़की के साथ दुष्कर्म मामले का पूरे देश में जबरदस्त विरोध हो रहा था. हालांकि प्रधानमंत्री ने इन अपराधों और अन्य मामलों में शामिल कथित बीजेपी सदस्यों के बारे में कुछ नहीं कहा.

इसी दौरान यूपी के कासगंज, राजस्थान के जयपुर और मध्य प्रदेश के भोपाल में मुस्लिम विरोधी हिंसा की घटनाएं हुईं. इन घटनाओं के पीछे की वजह भले ही मामूली रही हो लेकिन इन घटनाओं को कुछ संगठनों ने साम्प्रदायिक रंग दे दिया. इसी तरह से लव जेहाद के नाम पर अल्पसंख्यक युवकों को भी निशाना बनाया गया. मामले चर्चाओं में आने पर मुकदमें दर्ज तो हुए लेकिन उनमें पीड़ितों को अभी तक न्याय का इंतजार है.

Advertisement

कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत होता है कि पीएम मोदी का नजरिया अल्पसंख्यकों को लेकर जो भी हो, लेकिन उनकी सरकार के चार सालों में अल्पसंख्यकों से जुड़े बीजेपी या उससे जुड़े संगठनों के क्रियाकलापों और उनके खिलाफ होने वाली हिंसा और बढ़ती नफरत के मामले में केंद्र सरकार कटघरे में नजर आती है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement