
कांग्रेस और जेडीएस विधायकों के इस्तीफे से शुरू हुआ कर्नाटक का सियासी नाटक अभी खत्म नहीं हुआ है. कांग्रेस के 13 और जेडीएस के 3 विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन सरकार बहुमत के लिए जरूरी 113 के आंकड़े से नीचे आ गई है.
विधानसभा अध्यक्ष की ओर से इस्तीफे पर फैसला लेने में हो रही देर के चलते फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि 16 जुलाई को अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखी जाए और तब तक कोई कार्रवाई न की जाए.
जेडीएस नेता और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया विश्वास जता रहे हैं कि अब भी बहुमत उनके पक्ष में है. हालांकि, बीजेपी संदेह जता रही है कि गठबंधन सरकार के पास सदन में पर्याप्त बहुमत नहीं है.
अगर 16 विधायकों के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष स्वीकार कर लेते हैं तो कर्नाटक की गठबंधन सरकार गिर जाएगी. ऐसी हालत में कुमारस्वामी को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.
अगर कोई पार्टी अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाती है और नये सिरे से चुनाव होंगे. 2019 के लोकसभा चुनाव के जनादेश के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो फिर से चुनाव होने की हालत में कौन सी पार्टी बाजी मारेगी?
इंडिया टुडे डाटा इंटेलीजेंस यूनिट ने बीते लोकसभा चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को मिली सीटों को अगर विधानसभा में बदल कर देखें तो कर्नाटक में बीजेपी को 171 सीटों पर बढ़त हासिल है.
कर्नाटक का नंबर गेम
कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसके पास 105 विधायक हैं जो कि बहुमत से 8 कम हैं. कांग्रेस 79 और जेडीएस 37 सीटों पर जीती. दोनों पार्टियों ने गठबंधन करके बहुमत हासिल कर लिया और बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया.
हालांकि, सत्ता पक्ष के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद बहुमत का गणित फिर से बदल गया है. आंकड़ों से ऐसा लग रहा है कि सरकार गिरने के बाद नए सिरे से चुनाव होते हैं तो भगवा पार्टी सत्ता में लौट सकती है.
लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों को विधानसभा सीटों में बदलकर देखें तो आंकड़े कहते हैं कि बीजेपी को 224 सीटों में से 171 पर बढ़त मिली, जबकि कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन मात्र 47 सीटों पर आगे रहीं.
मान्ड्या लोकसभा सीट के तहत आने वाली छह विधानसभा सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी सुमालता अम्बरीश को बढ़त मिली जिन्होंने सीएम कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी को हराया था.
कर्नाटक में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों की तुलना करें तो लोकसभा में गठबंधन को 69 सीटों का नुकसान हुआ. आंकड़ों से पता चलता है कि गठबंधन को उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक में बड़ा नुकसान होता दिख रहा है. यहां तक कि कर्नाटक के दक्षिणी इलाकों में जहां विधानसभा चुनाव के दौरान गठबंधन दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया था, वहां भी बीजेपी ने सेंधमारी कर ली है. लोकसभा चुनाव के दौरान मान्ड्या सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी खड़ा न करके अम्बरीश को समर्थन दिया था.
कर्नाटक के मतदाओं का मिजाज
विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो थी, लेकिन बहुमत नहीं हासिल कर पाई थी. लेकिन एक साल बाद ही लोकसभा चुनाव हुए और मतदाताओं का मिजाज बदल गया. लोकसभा में बीजेपी को बहुमत मिला और गठबंधन को भारी नुकसान हुआ.
यह पहली बार नहीं था जब बहुम कम समय में ही कर्नाटक के मतदाताओं का मिजाज बदल गया. 2013 के विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था जब कांग्रेस को 122 सीटें, बीजेपी को 40, जेडीएस को 40 और अन्य को 22 सीटें मिली थीं.
लेकिन विधानसभा के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 28 में से 18 लोकसभा सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 9 और जेडीएस को 2 ही सीटों पर संतोष करना पड़ा.
विधानसभा में बीजेपी के पास मात्र 40 सीटें थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजों को विधानसभा के लिहाज से देखें तो बीजेपी को 132 सीटों पर बढ़त हासिल थी. जबकि कांग्रेस 78 और जेडीएस 14 पर सिमट गई थी.
मतदाताओं का अस्थिर मिजाज तब भी देखने को मिला जब लोकसभा के बाद हाल ही में निकाय चुनाव हुए और कांग्रेस ने भारी जीत हासिल की.
अलग-अलग चुनाव नतीजों से पता चलता है कि कर्नाटक के वोटर स्थानीय चुनाव, विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अपनी प्राथमिकताएं अलग-अलग रखते हैं. पिछले लोकसभा के हिसाब से देखें तो बीजेपी 171 सीटों पर आगे दिख रही है, लेकिन सवाल है कि अगर आज की तारीख में चुनाव हों तो क्या बीजेपी की यह बढ़त बरकरार रह पाएगी?
बीजेपी के लिए लोकसभा का प्रदर्शन दोहराना मुश्किल
सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज (CSDS) के डायरेक्टर संजय कुमार का मानना है कि यदि आज सरकार गिरने की हालत में कर्नाटक में फिर से चुनाव हों तो हो बीजेपी लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाएगी.
वे कहते हैं, 'कनार्टक के वोटर अलग-अलग चुनाव में अलग-अलग प्राथमिकताओं के साथ वोट करते हैं. 2013 में वे राज्य में कांग्रेस को चाहते थे लेकिन 2014 में लोकसभा में उन्होंने बीजेपी को तवज्जो दी. 2018 में कांग्रेस और जेडीएस के पास बहुमत गया, लेकिन 2019 में बीजेपी ने क्लीन स्वीप कर दिया. इसका सीधा सा मतलब है कि कर्नाटक के वोटर केंद्र में बीजेपी को चाहते थे, लेकिन राज्य में गैरबीजेपी सरकार चाहते थे.'
'यदि आज कर्नाटक में चुनाव होता है तो इसकी बहुत संभावना है कि बीजेपी मुख्य लड़ाई में तो रहे लेकिन वह लोकसभा वाला प्रदर्शन न दोहरा पाए. क्योंकि राज्य के लिए वोटर की प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं. लेकिन कांग्रेस और जेडीएस को भी लोगों की नाराजगी का नतीजा भुगतना पड़ सकता है.'
एक्सिस माई इंडिया के चीफ प्रदीप गुप्ता का कहना है, 'लोगों ने लोकसभा में नरेंद्र मोदी को चुना, लेकिन पांच राज्यों के विधानसभाओं में दूसरी पार्टियों को जिताया. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस का चुनाव पूर्व गठबंधन वैसा काम नहीं करेगा क्योंकि ये पार्टियां एक दूसरे की विरोधी पार्टियां रही हैं. शायद इसी का नतीजा है कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने सीएम कुमारस्वामी के पूरे परिवार को हरा दिया. कुमारस्वामी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे निखिल कुमारस्वामी को उनके गढ़ में करारी हार का सामना करना पड़ा.'
गुप्ता का कहना है, 'लोकसभा में लोगों ने मोदी को वोट दिया, इसलिए बीजेपी को राज्य में एकतरफा जीत मिली. लेकिन जब विधानसभा चुनाव की बात आएगी तो बीजेपी को एक मजबूत और लोकप्रिय चेहरा उतारना होगा, क्योंकि येदियुरप्पा और नरेंद्र मोदी में फर्क है.'