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मोदी सरकार ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों खरीदने के सौदे पर एक बार फिर से सफाई दी है, लेकिन इस सौदे की जानकारी देने से इनकार कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर सवाल उठाने के बाद रक्षा मंत्रालय की यह सफाई सामने आई है.
मंत्रालय ने कहा कि सुरक्षा कारणों और फ्रांस के साथ साल 2008 में हुए एक द्विपक्षीय समझौते के चलते लड़ाकू विमान सौदे की पूरी कीमत का खुलासा नहीं किया जा सकता है. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों से आजतक को बताया कि रक्षामंत्री इस सौदे को लेकर कांग्रेस के हर सवाल पर पलटवार के लिए पूरी तरह तैयार हैं. जरूरत पड़ने पर यूपीए सरकार के समय के दस्तावेज के जरिए भी कांग्रेस का झूठ जनता के सामने रखा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि जहां तक ज्यादा कीमत का मामला है, तो 36 राफेल विमान रेडी-टू-यूज के हालात में खरीदे गए, जबकि यूपीए सरकार ने इस सौदे को ठंडे बस्ते में डाल रखा था. मंत्रालय ने कहा कि विमान सौदे की अनुमानित कीमत को लेकर पूर्व में संसद में बयान दिया जा चुका है, लेकिन विमान सौदे की हर वस्तु की कीमत का बिंदुवार ब्यौरा देना संभव नहीं है.उन्होंने कहा कि इन विमानों को देश की रक्षा जरूरत के अनुरूप उपकरणों और हथियारों से लैस किया गया है, जिसकी जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सार्वजनिक नहीं की जा सकती है. दूसरी ओर फ्रांस के साथ साल 2008 में हुए एक समझौते के तहत भी पूरे सौदे की जानकारी नहीं दी जा सकती है.
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि जिस सौदे को यूपीए सरकार 10 सालों में अंजाम नहीं दे पाई, उसे एनडीए ने महज एक साल में पूरा किया. उन्होंने राफेल के चयन के बारे में कहा कि साल 2012 में यूपीए सरकार में ही प्रक्रिया पूरी कर राफेल को एल-1 घोषित किया गया था. लिहाजा इस मामले में किसी दूसरे विक्रेता से बातचीत संभव नहीं थी.
मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने राफेल सौदे में इसकी उपयोगिता और कीमत आदि का पूर्ण ध्यान रखा है. इसलिए कांग्रेस के आरोप बेबुनियाद हैं.