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35ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट में क्या इसलिए बदल गए मोदी सरकार के सुर?

गौरतलब है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावों की घोषणा हो चुकी है. ऐसे मौके पर अगर केंद्र सरकार 35ए के समर्थन में कोई राय कोर्ट में रखती तो ये राजनीतिक रूप से अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेने जैसा होता.

पीएम मोदी पीएम मोदी
सुरभि गुप्ता/विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 7:50 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए पर चल रही सुनवाई को लेकर मोदी सरकार के ताजा रुख ने सवाल खड़े कर दिए हैं. सरकार ने जिस तरह हलफनामा दायर कर कोर्ट से 8 हफ्ते का समय मांगा है, उसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि गुजरात-हिमाचल में चुनाव और जम्मू-कश्मीर के लिए वार्ताकार की नियुक्त के चलते सरकार इस मुद्दे को फिलहाल टालना ही बेहतर समझ रही है.

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दरअसल जम्मू कश्मीर को प्राप्त विशेषाधिकार अनुच्छेद 35ए पर सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की विशेष बेंच में आज सुनवाई हुई. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने हलफनामा देकर नोटिस पर जवाब देने के लिए आठ हफ्ते का वक्त मांगा है. इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई टाल दी.

गुजरात-हिमाचल चुनाव में होती किरकिरी

गौरतलब है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावों की घोषणा हो चुकी है. ऐसे मौके पर अगर केंद्र सरकार 35ए के समर्थन में कोई राय कोर्ट में रखती तो ये राजनीतिक रूप से अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेने जैसा होता. बीजेपी वैसे ही पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम के कश्मीर की स्वायत्तता को लेकर दिए बयान को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चिदंबरम और कांग्रेस पर इसे लेकर जबर्दस्त हमला बोल रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार 35ए के समर्थन में कोई राय सुप्रीम कोर्ट में रखती तो बीजेपी को खुद ही लेने के देने पड़ जाते और कांग्रेस उसे बख्शती नहीं.

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जम्मू-कश्मीर में टूट जाती वार्ता

मोदी सरकार के सुप्रीम कोर्ट में आज के रुख का एक बड़ा कारण जम्मू-कश्मीर में विभिन्न पक्षों से बातचीत के लिए उसके द्वारा नियुक्त वार्ताकार को भी माना जा रहा है. गौरतलब है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को मोदी सरकार ने अपना वार्ताकार नियुक्त किया है.

वर्ष 2003 से 2005 तक इस्लामिक आतंकवाद डेस्क का जिम्मा संभाल चुके भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी शर्मा पर कश्मीर में तीन दशकों तक चली हिंसा को खत्म करने का जिम्मा है. शर्मा को सभी पक्षों से बात करना है और अगर मोदी सरकार 35ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कोई विरोधी रुख सामने रखती तो शर्मा का मिशन शुरू होने से पहले ही फेल हो जाता क्योंकि हुर्रियत इसे लेकर कड़ी चेतावनी दे चुकी थी. ऐसे में सरकार ने फिलहाल दो माह की मोहलत ले ली है ताकि शर्मा के मिशन का कुछ नतीजा सामने आ सके.

महबूबा की नहीं बढ़ाना चाहती मुश्किलें

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी पीडीपी के साथ महबूबा मुफ्ती सरकार में साझीदार है. कश्मीर में पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं के चलते पहले ही मुफ्ती सरकार मुश्किलें झेल रही है. अगर 35ए के चलते कोई नया बवाल हुआ तो सरकार के लिए संभालना मुश्किल हो जाएगा. मोदी सरकार भी नहीं चाहती कि जब वो हिमाचल और गुजरात चुनाव में व्यस्त हो, कश्मीर में एक नया मोर्चा खुल जाए.

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