
बनारस को टोक्यो और देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के तौर पर तैयार करने की महत्वाकांक्षी योजना पर सरकार ने लगभग 30 हजार करोड़ खर्च, लेकिन अभी 3 साल बाद बनेगी मोदी सरकार की पहली स्मार्ट सिटी कर दिए हैं. अनुमान है कि साल के अंत तक 20 हजार करोड़ रुपये औए खर्च हो जाएंगे. सरकार का दावा है कि पहली स्मार्ट सिटी 2021 तक बनकर तैयार हो जाएगी.
राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सरकार की योजना स्मार्ट सिटी पर जवाब देते वक्त शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि मोदी सरकार के 100 स्मार्ट सिटी बनाने के प्लान पर तेजी से काम हो रहा है.
सरकार के अनुसार प्रोजेक्ट का पहला चरण जनवरी 2016 से शुरू हुआ था जिसमें अभी तक 37 प्रतिशत धन राशि खर्च हो चुकी है. इस योजना के तहत हर एक प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़ रुपये केंद्र सरकार देगी, जबकि बाकी पैसा राज्य सरकार, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप और ऋण के जरिए खर्च किया जाएगा.
सरकार ने बताया कि जनभागीदारी के तहत स्मार्ट सिटी का 25 लाख नागरिकों द्वारा चयन किया गया था. इसमें से 90 फीसदी ब्राउन फील्ड प्रोजेक्ट हैं. यानी वह शहर है जो पहले से ही बसे हुए हैं, लेकिन उनके नवीनीकरण का काम चल रहा है. बाकी 10 प्रतिशत ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट हैं मसलन नया रायपुर. कुल मिलाकर सरकार की स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट पर पेंसिल आर्ट 2,05,800 करोड़ रुपये खर्च होंगे.
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इस पर राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, स्टैंडिंग कमेटी के मुताबिक स्मार्ट सिटी में सिर्फ 7 प्रतिशत बजट का इस्तेमाल हुआ है. यही नहीं स्टैंडिंग कमिटी खास तौर से इस बात को लेकर परेशान थी की यह प्रोजेक्ट सिर्फ ड्राइंग बोर्ड में छिपकर रह गया है.
जिस पर सरकार ने जवाब दिया की स्टैंडिंग कमिटी यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट के आंकड़ों को आधार मान रही है जो कि पुराने हैं. हालांकि सरकार ने माना कि केंद्र और राज्य के बीच तालमेल बनाने में कई अड़चने आ रही हैं. कई बार केंद्र से फंड जारी हो जाता है. लेकिन वह बावजूद ज़मीन पर चल रहे काम के लिए नहीं पहुंच पाता है.