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चार साल में काशी के कितने हो पाए मोदी? क्या कहता है बनारस

काशी और इसके आसपास के इलाकों में विकास की तकरीबन 24000 करोड़ की परियोजनाएं चल रहीं हैं. साथ ही हृदय योजना के तहत यहां की धरोहरों, ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण और संवर्धन का काम भी तेजी से चल रहा है.

वाराणसी गंगा घाट (फाइल फोटो: Getty Images) वाराणसी गंगा घाट (फाइल फोटो: Getty Images)
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 10:58 AM IST

काशी को इतिहास और परंपराओं से भी प्राचीन कहा जाता है. मशहूर लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं, "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है."

कला, संस्कृति और धर्म के अद्भुत संगम के चलते काशी हजारों साल से देश का सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र रहा है. यही वजह है कि काशी से निकला संदेश पूरे देश और खासकर उत्तर भारत में काफी महत्व रखता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूं ही नहीं काशी को 2014 में अपने संसदीय क्षेत्र के रूप में चुना, बल्कि वो जानते थे कि यदि काशी सध गया तो सबसे ज्यादा सीटों वाला उत्तर प्रदेश सध जाएगा और यूपी सध गया तो पूरा देश सध जाएगा. 24 अप्रैल 2014 को काशी से पर्चा भरने के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था, "..न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं यहां आया हूं, मुझे तो गंगा मां ने बुलाया है."

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उन्हीं गंगा मां का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रचंड बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी काशी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री बने चार साल गुजर गए. सोमवार को अपने जन्मदिन के दिन पीएम मोदी काशीवासियों के साथ होंगे. इन चार साल में काशी कोे यूं तो कई योजनाएं मिलीं. जिसमें काशी को जापान की धार्मिक नगरी क्योटो की शक्ल देने की जिद भी है और स्मार्ट सिटी बनाने का जज्बा भी. तो वहीं देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाने का स्वप्न भी है.

काशी और इसके आसपास के इलाकों में विकास की तकरीबन 24000 करोड़ की परियोजनाएं चल रहीं हैं. साथ ही हृदय योजना के तहत यहां की धरोहरों, ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण और संवर्धन का काम भी तेजी से चल रहा है. एक नजर डालते हैं पिछले चाल सालों में काशी का होकर पीएम मोदी ने क्या दिया.

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 काशी को क्योटो बनाना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिद काशी को जापान के धार्मिक नगर क्योटो जैसा बनाने की है. इसके लिए पीएम मोदी खुद जापान गए, जापान के पीएम शिंजो आबे से बात की. जिसके बाद शिंजो आबे बनारस आए और दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने राजेंद्र प्रसाद घाट पर पंडित छन्नूलाल मिश्र के गायन के बीच गंगा आरती का लुत्फ उठाया और काशी को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए दोनों देशों के बीच करार हुआ.

इसके बाद जापान से विशेषज्ञों की एक टीम का बनारस दौरा हुआ. यह बात अलग है कि विकास और संस्कृति के संघर्ष की वजह से जापान की टीम और वाराणसी नगर निगम, वाराणसी प्रशासन के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया. जिसकी वजह से चार साल में काशी को क्योटो बनाने की गति धीमी पड़ गई और इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठ पाया.

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक काशीनाथ सिंह का 'आजतक' से बातचीत में कहना है कि काशी में धर्म और संस्कृति दोनों का महत्व है, लेकिन पिछले चार साल में सरकार का पूरा ध्यान धर्म पर रहा और संस्कृति कहीं पीछे छूट गई. काशीनाथ कहते हैं कि सरकार का पूरा ध्यान विश्वनाथ कॉरिडोर पर रहा जबकि बनारस की संस्कृति से जुड़ी अन्य धरोहर इस कॉरिडोर की भेंट चढ़ गईं.

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बुनकरों के लिए हस्तकला संकुल

काशी क्षेत्र में परंपरा से ही शिल्प का ज्ञान है यही वजह है कि यहां के आठ उत्पादों को जीआई यानि जियोग्राफिकल इंडीकेशन को बौद्धिक सम्पदा अधिकार का दर्जा हासिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि बनारस की बुनकरी और हस्तशिल्प से जुड़े उत्पादों को वैश्विक स्तर पर बुलंदियों पर पहुंचाऐंगे, पहचान दिलाएंगे. जिस उद्देश्य से वाराणसी के बड़ा लालपुर में दीन दयाल हस्तकला संकुल यानि ट्रेड फैसिलिटी सेंटर खोला गया.

इसके जरिए बुनकरों का माल खरीदने की व्यवस्था है, ताकि उनका माल सही समय पर सही जगह पहुंच सके और उनकी आमदनी बढ़े. साथ ही यह सेंटर लोगों के साथ विश्व में भी काशी क्षेत्र के हैण्डलूम और हस्तशिल्प के बारे में जानकारी देगा और इसकी संस्कृति भी संजोए रखेगा. प्रख्यात लेखक काशीनाथ सिंह कहते हैं कि इस सेंटर से कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ हुआ. काशीनाथ कहते हैं कि जब आप अंत्योदय की बात करते हैं तो पंक्ति में सबसे पीछे खड़े बुनकर कैसे पीछे छूट सकते हैं.

 दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर बनाने की मुहिम

पीएम मोदी की एक और जिद है कि काशी दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर बने. जिसके पीछे सोच है कि यदि शहर स्वच्छ रहेगा तो पर्यटन के लिहाज से सैलानियों का आकर्षण बढ़ेगा और पर्यटन उद्योग भी फलेगा फूलेगा. इसी लिहाज से प्रधानमंत्री ने राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान का आगाज काशी से किया.

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अस्सी घाट पर बाढ़ की मिट्टी से पटी सीढ़ियों पर नरेंद्र मोदी ने खुद फावड़ा चलाया था और जगन्नाथ मंदिर की गली में झाड़ू लगाई. नगर निगम और वाराणसी प्रशासन ने इस अभियान को गंभीरता से लिया. जिसकी वजह से वाराणसी शहर का नाम 2018 में देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में 29वें स्थान पर पहुंच गया और सूबे में राजधानी लखनऊ को पीछे छोड़ते हुए पहले स्थान पर. साल 2016 में काशी की रैकिंग 65वें स्थान पर थी.

ऊर्जा गंगा-प्रदूषण मुक्त काशी

प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ऊर्जा गंगा की शुरुआत 2017 में हुई. जिसके तहत गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) ने डीजल रेल कारखाना (डीरेका) परिसर में पीएनजी पाइपलाइन बिछाने का कार्य शुरू कर दिया. वाराणसी में ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट के तहत 1000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं जिससे बीएचयू और डीरेका परिसर के एक हजार घर पीएनजी पाइपलाइन से जुड़ जाएंगे.

आईपीडीएस परियोजना

आईपीडीएस परियोजना ने शहर में लटकते बिजली के तारों और उनके घने जाल को गायब करना शुरू कर दिया है. पीएम ने आईपीडीएस की सौगात दी तो शहर की कई कॉलोनियों और मुहल्लों में बिजली के तार भूमिगत हो गए, अब पूरे शहर में यह कवायद बढ़ चली है. लेकिन गलियों के शहर बनारस में लटकते बिजली के तारों को भूमिगत करना एक बड़ी चुनौती है.

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गंगा परिवहन योजना

गंगा में इलाहाबाद से हल्दिया के बीच शुरू होने वाली जल परिवहन योजना में काशी को कार्गो हब के तौर पर विकसित करने का काम किया जा रहा है. जिसके लिए रामनगर में मल्टी मॉडल टर्मिनल बन रहा है जिसे अब कार्गो हब के रूप में विस्तार दिया जा रहा है. इस टर्मिनल में कार्गो के अलावा कोल्ड स्टोरेज, बेवरेज हाउस और पैकिंग की सुविधा होगी. हब बन जाने के बाद देश के कोने कोने से उत्पाद रेल, रोड और जलमार्ग से काशी पहुंचेंगे.

नमामि गंगे योजना: गंगा को स्वच्छ करने की कवायद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुझे गंगा मां ने बुलाया है. लिहाजा गंगा की स्वच्छता को लेकर पीएम मोदी की संवेदना जगजाहिर है. मोदी सरकार में इसके लिए अलग से मंत्रालय का गठन किया गया. गंगा को स्वच्छ करने के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी नमामि गंगे योजना के चार साल पूरे हो गए हैं, लेकिन उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा नदी में प्रदूषण पहले की तुलना में बढ़ गया है.

यह खुलासा 'आजतक' ने ही किया था. गंगा की सफाई को लेकर शंकराचार्य स्वरूपानंद के शिष्य स्‍वामी अविमुक्‍तेश्‍वरानंद कहते हैं कि गंगा की दशा जस की तस है. सौंदर्यीकरण के नाम पर घाटों पर रंग बिरंगी लाइट लगा दी गईं लेकिन गंगा सिर्फ घाट नहीं है. गंगा को निर्मल करने के लिए इसका अविरल होना जरूरी है.

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इसके साथ सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिवस के दिन काशीवासियों को 600 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात देंगे जिसमें अटल इंक्यूबेशन सेंटर, नागेपुर ग्राम पेयजल योजना, और विद्युत सब स्टेशन इत्यादि शामिल हैं. वहीं 2019 में होने वाला प्रवासी भारतीय दिवस भी काशी में ही होगा जिसमें विदेश से डेलिगेट शामिल होंगे और काशी की कला, संस्कृति से रूबरू होंगे.

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