
पश्चिम बंगाल की सियासत में बीजेपी अपनी जगह बनाने के लिए बेताब है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मुकुल रॉय ने पार्टी को अलविदा कह दिया है. कयास यह हैं कि मुकुल का नया राजनीतिक ठिकाना बीजेपी होगा. अगर ऐसा हुआ तो असम के बाद दूसरे पूर्वोत्तर राज्य यानी बंगाल में BJP को बड़ा चेहरा मिल जाएगा. बता दें कि ठीक इसी तरह 2015 में कांग्रेस असम से हेमंत विस्वा बीजेपी में आए थे और वहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ी सेंध लगाई थी.
ममता के कितने करीबी रहे हैं मुकुल रॉय, कैसे होते गए दूर?
टीएमसी में कभी ममता बनर्जी के बाद मुकुल रॉय दूसरे नंबर की हैसियत रखते थे. शारदा चिट फंड घोटाले में नाम आने के बाद मुकुल सीबीआई के रडार पर थे. सीबीआई द्वारा पांच घंटे की पूछताछ के दौरान मुकुल ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया था. कहा जाता है कि यहीं से ममता बनर्जी उनसे नाराज हो गई थीं, क्योंकि पार्टी की लाइन सीबीआई और केंद्र सरकार के खिलाफ थी. इसके बाद 2015 में ममता ने मुकुल को पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव के पद से और राज्यसभा में पार्टी के नेता के पद से भी हटा दिया था.
चेहरा ममता का, मैनेजमेंट रॉय का मुकुल
दरअसल बंगाल की सियासत में ममता बनर्जी के लिए मुकुल रॉय काफी अहम थे. ममता बनर्जी टीएमसी का चेहरा हैं तो वहीं मुकुल रॉय चुनावी प्रबंधन के माहिर माने जाते हैं. बंगाल में टीएमसी के बूथ स्तर तक का प्रबंधन को संभालते. बंगाल की सत्ता के सिंहासन पर ममता के दो बार काबिज होने के पीछे मुकुल रॉय के चुनावी प्रबंधन का ही कमाल था.
मुकुल रॉय खासतौर से टीएमसी के संगठनात्मक क्षमता के लिए जाने जाते हैं. मुकुल रॉय को तृणमूल कांग्रेस की चुनावी सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है. ममता बनर्जी ने बड़े पैमाने पर रैलियों के माध्यम से लोगों तक पहुंचने में मुकुल रॉय ही रोल प्ले करते थे. इतना ही नहीं राज्य के जनता के सार्वजनिक उत्साह को वोट तब्दील करने में अपनी अहम भूमिका अदा की.
बूथ लेवल तक मुकुल का प्रबंधन
मुकुल रॉय चुनावी मतदान पद्धतियों की उनकी समझ, ब्लॉक और जिला पंचायतों के साथ उनकी संबंध ने विधानसभा चुनावों में टीएमसी को जमीनी भावनाओं को मजबूत करने का काम करते. मुकुल रॉय को पता था कि कौन सी बूथ जीतने के लिए कितने मतदाता की जरूरत है. उन्होंने अपने सियासी फार्मूले से मार्क्सवादियों को मात दिया था. उन्होंने अपनी इस कला को उस हद तक सिद्ध किया जिसने ममता के लिए जयजयकार की भीड़ को वोट में बदल दिया.
मुकुल के बीजेपी में जाने से टीएमसी को क्या होगा घाटा
मुकुल रॉय ममता की ताकत और कमजोरी को बाखूबी समझते हैं. ममता के बाद मुकुल का नाम कार्यकर्ता लेते रहते थे. अभी भी टीएमसी में नेताओं की लंबी फौज तो है पर कोई भी ममता बनर्जी के उतना करीबी नहीं है जितना मुकुल रॉय थे. ममता के मुकुल कितना करीब थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिनेश त्रिवेदी से इस्तीफा लेने के बाद उन्होंने केंद्र में रॉय को रेल मंत्री बनवाया था.
ऐसे में बीजेपी का दामन थामते हैं, तो असम के हेमंत विस्वा जैसे साबित हो सकते हैं. जिस तरह असम चुनाव से पहले बीजेपी ने कांग्रेस के हेमंत विस्वा को अपने साथ मिलाया था उसी तर्ज पर बंगाल में मुकुल रॉय को पार्टी से जोड़ने की कवायद चल रही है. बता दें कि विस्वा ने भी आरोप लगाया था कि राहुल गांधी असम में उनकी अनदेखी कर रहे थे जिसके कारण वह बीजेपी में चले गए थे.