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अब मुता और मिस्यार निकाह को अवैध करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका में मोहसिन ने महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी और जीवन के मौलिक अधिकार की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने मुता और मिस्यार निकाह, निकाह हलाला और बहुविवाह को रद्द करने की भी मांग की.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
परमीता शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

इस्लाम में तीन तलाक के बाद अब मुता विवाह और मिस्याही विवाह के खिलाफ मांग उठने लगी है. हैदराबाद के रहने वाले मौलिम मोहसिन बिन हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुसलमानों में प्रचलित मुता और मिस्यार निकाह को अवैध और रद्द घोषित करने की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका में मोहसिन ने महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी और जीवन के मौलिक अधिकार की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने मुता और मिस्यार निकाह, निकाह हलाला और बहुविवाह को रद्द करने की भी मांग की.

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याचिकाकर्ता का कहना है कि मुता विवाह एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का करार होता है  जिसका अधिकार केवल पुरुषों को होता है. याचिका में यह भी कहा गया है कि ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों का भविष्य भी अनिश्चित होता है.

इससे पहले भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग कर चुकी हैं.

उनके बाद दिल्ली की रहने वाली नफीसा खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए. क्योंकि MPL की यह धारा बहु विवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है.

क्या है मुता और मिस्यार निकाह

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मुता विवाह एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का करार होता है और शादी के बाद पति-पत्नी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर एक अवधि तक साथ रह सकते हैं. साथ ही यह समय पूरा होने के बाद निकाह खुद ही खत्म हो जाता है और उसके बाद महिला तीन महीने के इद्दत अवधि बिताती है. इतना ही नहीं मुता निकाह की अवधि खत्म होने के बाद महिला का संपत्ति में कोई हक नहीं होता है और ना ही वो पति से जीविकोपार्जन के लिए कोई आर्थिक मदद मांग सकती जबकि सामान्य निकाह में महिला ऐसा कर सकती है.

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