
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई. इसमें कई पार्टियां शामिल हुई तो कई राजनीतिक दलों ने इसका बहिष्कार भी किया. वहीं बैठक खत्म होने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा.
राजनाथ सिंह ने बताया कि संबंधित लोगों से बात करने के बाद कमेटी का गठन किया जाएगा. उस कमेटी के लिए समय सीमा निर्धारित की जाएगी. राजनाथ सिंह ने कहा कि एक देश एक चुनाव का अधिकांश दलों ने समर्थन किया, केवल लेफ्ट नेताओं ने इस मुद्दे पर कुछ आशंका व्यक्त की और पूछा कि यह कैसे होगा. आज की बैठक पांच सूत्री एजेंडे थी. सदन के कामकाज में वृद्धि, एक देश एक चुनाव, महात्मा गांधी की 150 वां जयंती जैसे मुद्दों पर बात हुई. उन्होंने कहा कि 21 पार्टियां बैठक में शामिल हुईं. 3 राजनीतिक दलों ने लिखित में अपनी राय दी.
TRS का समर्थन
एक देश एक चुनाव को लेकर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (TRS) के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव का कहना है कि उनकी पार्टी एक देश एक चुनाव का समर्थन करती है. के टी रामा राव ने कहा कि एक देश-एक चुनाव मोदी का या फिर बीजेपी का एजेंडा नहीं है. टीआरएस नेता के मुताबिक पीएम ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर कोई जल्दबाजी नहीं है, न ही उन्हें 2024 तक इसे लागू करना है. पीएम ने कहा कि मैंने आपके विचार सुने और मैं इसमें कोई नकारात्मकता और आलोचना नहीं देखता हूं. ये आगे बढ़ने के लिए अच्छा कदम है, हमलोग एक कमेटी बना सकते हैं जो इससे सुझावों और जटिलातों का अध्ययन करेगी.
इसके अलावा सरकार को एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर बीजू जनता दल के अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तरफ से भी समर्थन हासिल हुआ.
उधर वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे पर कांग्रेस बंटी हुई नजर आ रही है. कांग्रेस अबतक नरेंद्र मोदी सरकार के इस प्रस्ताव का सैंद्धातिक रूप से विरोध कर रही थी, लेकिन उसके नेता मिलिंद देवड़ा ने कहा है कि केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर डिबेट किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि 1967 तक इस देश में एक साथ चुनाव हो रहे थे. देवड़ा ने कहा कि संसद का पूर्व सदस्य होने के नाते वे कहना चाहेंगे कि लगातार चुनाव गुड गवर्नेंस की दिशा में बाधा है. इसकी वजह से नेता मूल मुद्दों से भटक जाते हैं और उनका फोकस जनता को लुभाने में लगा रहता है.