
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के री-वेरिफिकेशन के लिए अल्पसंख्यकों को नोटिस जारी किए गए हैं. लोकल रजिस्ट्रार ऑफ सिटीजन की ओर से जारी नोटिस में परिवार के साथ दफ्तर पहुंचकर दस्तावेजों का सत्यापन कराने के लिए कहा गया है.
सत्यापन दफ्तर से करीब 300 किलोमीटर दूर के गांव के लोगों को जब नोटिस मिला तो वे हैरान और परेशान हो गए. दरअसल नोटिस के मुताबिक उन्हें जहां अपने दस्तावेजों का सत्यापन कराना है, वह गांव से करीब 330 किलोमीटर दूर है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुस्लिम बहुल गांवों के ज्यादातर लोगों को गोलाघाट जिले के नॉर्थ डेवलपमेंट ऑफिस में सिटीजनशिप डॉक्यूमेंट्स का सत्यापन कराने के लिए कहा गया है.
साथ ही 330 किलोमीटर दूर आकर दस्तावेजों का सत्यापन कराने के लिए उन्हें 48 घंटे से भी कम का वक्त दिया गया. शनिवार शाम को मिले नोटिस के मुताबिक सोमवार सुबह 9 बजे दफ्तर पहुंचने के लिए कहा गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वक्त कम मिलने और परिवार के साथ समय से पहुंचने के लिए लोगों ने बसों की बुकिंग कराई. जिसके लिए उन्हें अच्छे खासे रुपये भी खर्च करने पड़े.
बताया जा रहा है कि करीब 148 परिवारों को एनआरसी के रीवेरिफिकेशन का नोटिस मिला है. कामरूप जिले के करीब 50 फीसदी मुस्लिम बहुल गांवों जैसे सोनतोली, कलातोली, टोपामारी के लोगों को शनिवार को यह नोटिस मिला है. वहीं लोगों ने यह भी दावा किया है कि वे पहले से ही एनआरसी में शामिल हैं.
बता दें कि असम में आई बाढ़ के चलते केंद्र और असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से डेडलाइन आगे बढ़ाने की अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई को सरकार की इस अपील को स्वीकार करते हुए डेडलाइन को एक महीने के लिए बढ़ा दिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई तक वेरिफिकेशन के काम को निपटाने के लिए कहा था.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन की पीठ ने असम नागरिक हजेला की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद एनआरसी के अंतिम प्रकाशन की अवधि 31 जुलाई से बढ़ाकर 31 अगस्त करने का आदेश दिया था.
बता दें कि केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी में गलत तरीके से शामिल किए गए और उससे बाहर रखे गए नामों का पता लगाने के लिए 20 फीसदी नमूने का फिर से सत्यापन करने की अनुमति कोर्ट से मांगी थी. केंद्र की ओर से अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और असम सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस संबंध में पक्ष रखे लेकिन कोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुआ था.