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आतंकवादी से फौजी बने शहीद नजीर वानी को मिलेगा अशोक चक्र, 6 आतंकियों से ली थी टक्कर

Nazir Wani Ashok Chakra नजीर वानी कभी आतंकी हुआ करते थे, लेकिन उन्होंने दहशतगर्दी का रास्ता छोड़ भारतीय सेना के साथ जुड़कर वतन की सेवा करने की ठानी. नजीर ने सेना की वर्दी पहनकर हमेशा मुश्किल ऑपरेशन में हिस्सा लिया और आतंकवादियों से जमकर लोहा लिया. नवंबर 2018 में शोपियां  में आतंकवादियों से लड़ते हुए वह शहीद हो गए.

Nazir Wani (File Photo) Nazir Wani (File Photo)
मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST

आतंकवाद का रास्ता छोड़कर सेना में शामिल होने वाले लांस नायक नजीर वानी को अशोक चक्र अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा. ये पहला मौका है जब आतंक की नापाक राह से लौटे किसी जवान को देश के इतने बड़े सम्मान से नवाजने का निर्णय लिया गया है.

नजीर वानी ने 2004 में आत्मसमर्पण किया था. इसके कुछ वक्त बाद ही नजीर ने भारतीय सेना ज्वॉइन कर ली थी. कभी सेना के खिलाफ लड़ने वाले इस बहादुर जवान ने आतंकवादियों से लड़ते हुए नवंबर, 2018 में अपनी जान वतन के नाम कुर्बान कर दी थी.

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दरअसल, पिछले साल नवंबर में शोपियां में कुछ आतंकियों के छुपे होने की खबर पर सुरक्षाबलों की टीम उन्हें मौत के घाट उतारने पहुंची थी. इस दौरान 6 आतंकवादियों ने एक घर में शरण ली थी, जिसे जवानों ने चारों तरफ से घेर लिया था. आतंकियों पर प्रहार करते हुए नजीर वानी ने एक दहशतगर्द को मार गिराया था. जबकि जवाबी फायरिंग में वह खुद भी घायल हो गए थे.

आतंकियों की गोली से जख्मी होने के बावजूद नजीर वानी ने उस घर में छुपे आतंकियों को भागने नहीं दिया. लांस नायक नजीर आतंकियों के भाग निकलने के रास्ते पर डटे रहे और उन्होंने एक और आतंकी को मौत के घाट उतार दिया. हालांकि, इस ऑपरेशन में दहशतगर्दों की गोलियां का निशाना बने नजीर वानी भी शहीद हो गए.

नजीर वानी की इस बहादुरी के लिए उन्हें अशोक चक्र सम्मान देने का फैसला किया गया है. राष्ट्रपति सचिवालय की तरफ से बताया गया है कि नजीर वानी एक बेहतर सैनिक थे और उन्होंने हमेशा चुनौतीपूर्ण मिशन में साहस दिखाया. बता दें कि नजीर वानी की जांबाजी के लिए उन्हें दो बार सेना मेडल भी मिल चुका है.

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नजीर वानी कुलगाम के चेकी अश्‍मूजी गांव के रहने वाले थे. नजीर के परिवार में उनकी पत्‍नी और दो बच्‍चे हैं. साल 2004 में नजीर वानी ने टेरिटोरियल आर्मी से सेना में अपनी सेवा देनी शुरू की थी. 2007 में उन्हें पहला सेना मेडल और 2017 में दूसरा सेना मेडल दिया गया.

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