
मोदी सरकार ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में संशोधन विधेयक पर सभी दलों का समर्थन मांगा है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने शुक्रवार को लोक सभा में कहा कि एनएचआरसी को अधिक समावेशी और कुशल बनाने के लिए सरकार के कदम का समर्थन करने को संसद को एक साथ आना चाहिए.
उन्होंने कहा कि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 (अधिनियम) को, मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग (राज्य आयोग) और मानवाधिकार न्यायालयों के गठन हेतु उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था.
गृह राज्य मंत्री ने कहा कि एनएचआरसी ने कुछ वैश्विक प्लेटफार्मों पर उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए अधिनियम में कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं. इसके अलावा, कुछ राज्य सरकारों ने अधिनियम में संशोधन के लिए भी प्रस्ताव दिया है.
उन्होंने कहा कि राज्यों को संबंधित राज्य आयोगों के अध्यक्ष के पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. जिसकी वजह पद के लिए पात्रता के मौजूदा मानदंड हैं. पेरिस सिद्धांत के आधार पर इस प्रस्तावित संशोधन से आयोग और राज्य आयोगों को स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुवाद और मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण और उनका संवर्धन करने में बल मिलेगा.
मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 की प्रमुख बातें-
उधर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने देश में बढ़ रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जाहिर की. उन्होंने इन घटनाओं में अल्पसंख्यकों के शिकार बनने का जिक्र करते हुए मांग की कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) का अध्यक्ष अल्पसंख्यक आयोग से बनाया जाना चाहिए.
ओवैसी फर्जी एनकाउंटर, हिरासत में मौत और मॉब लिंचिंग की बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र को मॉब लिंचिंग पर कानून बनाना है, लेकिन सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया? जिन पुलिस अधिकारियों पर भीड़ की हिंसा के लिए आरोप लगाए जाते हैं, उन्हें सजा क्यों नहीं दी जाती है.'