
सरकार संसद में नया राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन (NMC) बिल 2019 लाने की तैयारी में है. लेकिन एक ऐसा पेच है, जिसे लेकर तीखी बहस और डॉक्टरों की ओर से विरोध के पूरे आसार हैं.
आजतक/इंडिया टुडे को ज्ञात हुआ है कि विवादित ब्रिज कोर्स को चुपचाप ‘आधुनिक मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए सीमित लाइसेंस’ की धारा में बदल दिया गया है. बता दें कि ब्रिज कोर्स को लेकर देश भर में डॉक्टरों ने सख्त विरोध जताया था.
एनएमसी एक्ट 2019 की धारा 32 में समुदाय स्वास्थ्य प्रदाता की भूमिका का उल्लेख है. इसमें कहा गया है, आयोग मध्य स्तर पर समुदाय स्वास्थ्य प्रदाता के तौर पर मेडिसिन प्रैक्टिस करने के लिए ऐसे व्यक्ति को सीमित लाइसेंस जारी कर सकता है जो आधुनिक वैज्ञानिक मेडिकल पेशे से जुड़ा है और जो नियमन के तहत मुहैया कराए गए मापदंड को पूरा करता है. साथ ही इस उपधारा के तहत दिए जाने वाले सीमित लाइसेंस धारा 31 की उपधारा (1) के तहत रजिस्टर्ड कुल लाइसेंसधारी मेडिकल प्रैक्टिशनर्स की संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं होने चाहिए.
एक्ट की धारा 31 सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल प्रैक्टिशनर्स का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने से संबंधित है, जिसका रखरखाव एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड की ओर से किया जाएगा.
इससे पहले जो एनएमसी बिल 2018 था, उसमें प्रस्तावित ब्रिज कोर्स का डॉक्टर्स और हेल्थ प्रैक्टिशनर्स ने विरोध किया था. इस ब्रिज कोर्स के जरिए होम्योपैथी और आयुर्वेद वाले ऐलोपैथी की प्रैक्टिस करने की अनुमति मिल सकती थी. डॉक्टर समुदाय के विरोध और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से कई बैठकों के दौर के बाद संसदीय पैनल को भेजा गया. पैनल ने इस प्रावधान को अनिवार्य ना बनाने की सिफारिश की. पैनल ने उन लोगों के लिए सख्त सजा की भी सिफारिश की जो बिना ज़रूरी योग्यता के मेडिसिन की प्रैक्टिस करते हैं.
डॉक्टर्स ने नए बिल में ‘आधुनिक मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए सीमित लाइसेंस’ के संदर्भ पर सवाल उठाया है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के महासचिव आरवी अशोकन ने कहा, “नई धारा 32 जोड़ी गई है जिसमें कि समुदाय स्वास्थ्य प्रदाता जैसे कि कम्पाउंडर्स, पैथोलॉजिस्ट, लैब टैक्निशियंस, रेडियोलॉजिस्ट्स, खून के नमूने लेने वाले आदि मेडिसिन की प्रैक्टिस का लाइसेंस हासिल कर सकते हैं, वो भी बिना किसी योग्यता प्राप्त डाक्टर की निगरानी के.
अगर सरकार अपने वेलनेस सेंटर्स पर लोगों को रखना चाहती है और मानव संसाधन का अभाव है तो उसके लिए पहले से ही ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में प्रावधान हैं. इसके लिए करीब ऐसे साढ़े तीन लाख लोगों को अगल से लाइसेंस देने के प्रावधान की कोई ज़रूरत नहीं है जो ठोस मेडिकल पृष्ठभूमि से नहीं आते. ये राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए तबाही से कम नहीं होगा.”
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र वानखेडकर कहते हैं, उन्होंने ब्रिज कोर्स हटा दिया लेकिन धारा 32 जोड़ दी. यहां तक कि आधुनिक मेडिसिन से कोई दूर से भी जुड़ा है, जैसे कि लैब टैक्निशियन, वो भी अब सीधे आधुनिक मेडिसिन प्रैक्टिस कर सकता है. ये ऐसा है जैसे कि भारत में कानूनी रजिस्टर्ड नीम हकीम खड़े करना. अगर सरकार का विचार मरीजों की संख्या और अस्पताल-क्लिनिक में डाक्टर्स की संख्या के अंतर को पाटने की है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्टाफ की कमी की वजह से है तो मैं कहना चाहूंगा कि क्या ग्रामीण भारत में अच्छे डॉक्टर्स नहीं होने चाहिए? क्या ग्रामीण भारत में रहने वाले लोग दोयम दर्जे के हैं? क्या उनकी जान को जोखिम में डाला जाना चाहिए ऐसे डॉक्टरों के जरिए जो सही से मर्ज को भी नहीं पहचान सकें.
आंकड़ों के मुताबिक भारत में 11 लाख रजिस्टर्ड एलोपैथ्स हैं. इसका मतलब है कि करीब 3.5 लाख आयुष प्रैक्टिशनर्स को प्राथमिक स्तर पर मरीजों को स्वास्थ्य सुरक्षा देने के लिए लाइसेंस जारी किए जाएंगे.
जहां तक डॉक्टर समुदाय का सवाल है तो वे बिल का विरोध जारी रखेंगे और देशव्यापी प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं. इसके तहत गुरुवार को देश के कई हिस्सों में आईएमए कार्यालयों के बाहर एनएमसी बिल को जलाया जाएगा. डॉक्टरों का कहना है कि जब तक विवादित धारा को बिल से नहीं हटाया जाएगा, वे विरोध जारी रखेंगे.