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क्या इंडिया vs एनडीए की फाइट को मोदी बनाम राहुल में बदल देगा विपक्ष का ये अविश्वास प्रस्ताव?

जब से देश की राजनीति में इंडिया बनाम एनडीए शुरू हुआ है, बीजेपी के रणनीतिकार इसकी काट तलाशने में लगे थे. गठबंधन का नाम इंडिया रखकर विपक्ष ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की थी. इस बीच मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के पक्ष में आने से ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के लोग भी उत्साहित दिख रहे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ( Getty) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ( Getty)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 09 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST

राहुल गांधी को मोदी सरनेम वाले केस में सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत से कांग्रेस फूले नहीं समा रही है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए तस्वीर हो या राहुल गांधी की संसद में बॉडी लैंगवेज हो या उनका आक्रामक भाषण, देखकर यही लगता है कि कांग्रेस का जोश राहुल की संसद वापसी से हाई है. वैसे बीजेपी के लिए भी राहुल की वापसी चिंता की बात नहीं लगती. जानकार मानते हैं कि बीजेपी के लिए भी राहुल का फ्रंट फुट पर रहना एक तरह से फायदे का सौदा ही रहने वाला है. 
दरअसल जब से देश की राजनीति में इंडिया बनाम एनडीए शुरू हुआ है, बीजेपी के रणनीतिकार इसकी काट तलाशने में लगे थे. गठबंधन का नाम इंडिया रखकर विपक्ष ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की थी. इस बीच मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के पक्ष में आना और उनकी सांसदी बहाल होना बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए भी शायद थोड़ी राहत लेकर आई है. राहुल की सांसदी बहाल होने के एक दिन बाद ही लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होनी थी. जाहिर है जब बहस शुरू हुई तो बीजेपी के निशाने पर फिर राहुल गांधी और उनका परिवार आ गया.

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कांग्रेस की राहुल को पीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करने की कोशिश

अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी की स्पीच को लेकर इतना पैंतरा कांग्रेस ने दिखाया कि राहुल की स्पीच खास बन जाए. और हुआ भी ऐसा. 9 अगस्त को राहुल की स्पीच सुनने के लिए देश की मीडिया पूरी तरह फोकस हो गई. पहले कहा गया कि अविश्वास प्रस्ताव की शुरुआत राहुल गांधी के भाषण से होगी. फिर ऐसे संदेश दिए गए कि पीएम मोदी जिस दिन बोलेंगे उसी दिन भाषण होगा. इसी कारण उनके बोलने का दिन बदला गया. बाद में अचानक 9 अगस्त को भाषण कराने का प्लान बना दिया गया. कांग्रेस की यह रणनीति बताती है कि राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.

कांग्रेस पार्टी कभी विचारधारा आधारित नेतृत्व को डिवेलप नहीं कर सकी.लेफ्ट और राइट के बीच में हमेशा से पार्टी लेफ्ट राइट करती रही है. सोनिया और राहुल के लिए आम जनता के बीच इंदिरा और राजीव का देश के लिए बलिदान ही बताना काफी था. पिछले 2 चुनावों में राहुल गांधी  के सॉफ्ट हिंदुत्व से लेकर चौकीदार चोर या राफेल डील में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे कभी सिरे नहीं चढ़ सके.पर कांग्रेस पार्टी के लगातार अथक प्रयासों का परिणाम है कि पिछले कुछ दिनों से राहुल का नया अवतार सामने आया है. 5 महीने तक चले भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद 5 महीने मोदी सरनेम विवाद में संसद सदस्यता चली जाने को राहुल गांधी और कांग्रेस ने जनता के बीच ठीक तरह से भुनाया है. पदयात्रा ने राहुल को भारतीय राजनीति में परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करने की कोशिश की तो संसद सदस्यता खत्म होने से उन्हें शहीद की तरह पेश किया गया. कांग्रेस पार्टी राहुल के इस नए अवतार को आम लोगों से कनेक्ट करने में जुटी हुई है.

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कांग्रेस की ब्रैंडिंग, मोदी के मुकाबले सिर्फ़ राहुल

कांग्रेस लगातार राहुल के लिए `जननायक` जैसी ब्रॉन्डिंग करने में लगी है, ताकि मोदी के मुकाबले सिर्फ़ राहुल हैं इसका मैसेज दिया जा सके.राहुल कुछ दिनों बाद भारत जोड़ो यात्रा की दूसरी कड़ी पर निकलने वाले हैं. पहली यात्रा ने उनकी परिपक्व नेता की छवि बनाने की कोशिश की, दूसरी यात्रा में उन्हें जननायक के रूप में स्थापित करने की कोशिश होगी.कांग्रेस पार्टी यह जानती है कि इंडिया गठबंधन में या स्वयं कांग्रेस पार्टी में भी ऐसा कोई लीडर नहीं है जो पैन इंडिया पीएम मोदी का मुकाबला कर सके. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान इंडिया गठबंधन के किसी नेता के स्पीच का इंतजार उतना नहीं है जितना राहुल गांधी का था. राहुल के बोलने की शैली को लेकर कोई उनकी आलोचना कर सकता है पर इससे इनकार नहीं कर सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी के बाद लोकसभा में सिर्फ और सिर्फ राहुल को सुनने में लोगों की दिलचस्पी थी.


वक्ताओं के निशाने पर इंडिया नहीं राहुल और उनकी फैमिली

अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के पहले दिन यह साफ हो गया कि बीजेपी के निशाने पर राहुल गांधी और उनका परिवार ही रहेगा. निशिकांत दूबे सहित कई वक्ताओं के केंद्र में राहुल ही थे. निशिकांत दूबे की चुटकियां बेवजह नहीं थीं. बीजेपी इस मामले में पूरी प्लानिंग से चलती दिखती है क्योंकि उसके निशाने पर इंडिया गठबंधन की बजाय अब राहुल गांधी और उनके बहाने गांधी परिवार है. दूबे ने न केवल राहुल को टार्गेट पर लिया बल्कि उनकी मां सोनिया और उनके जीजा राबर्ट वाड्रा तक को लपेटा. बीजेपी भी समझती है कि गांधी परिवार के बारे में देश की पब्लिक जितना गौर से सुनती है उतना किसी और के बारे में नहीं. निशिकांत दूबे ने तो इंडिया के सारे गठबंधन दलों के एक एक करके बीजेपी का मित्र बताया और याद दिलाया कि हम तो हमेशा आपके साथ खड़े रहे जबकि कांग्रेस ने आपके साथ अत्याचार किया और आप आज उनका साथ दे रहे हैं.

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ज्यों-ज्यों राहुल मजबूत होंगे इंडिया कमजोर होगी 

एक बात और तय है कि ज्यों-ज्यों राहुल मजबूत होंगे विपक्ष की एकता कमजोर होगी. विपक्ष में प्राइम मिनिस्टर कैंडिडेट के लिए कई दावेदार हैं. ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. यह भी देखा गया कि जब तक राहुल गांधी की संसद सदस्यता पर ग्रहण नहीं लगा था विपक्ष को एक मंच पर जुटने में कितनी दिक्कत हो रही थी. राहुल की संसद सदस्यता खत्म होते ही विपक्ष ही नहीं कांग्रेस के भी रंगढंग में बदलाव दिखा.पिछले 2 दशकों से राजनीतिक बीट कवर कर रहे पत्रकार पंकज कुमार कहते हैं कि राहुल की मजबूती इंडिया की कमजोरी का आधार बनती जाएगी. राहुल गांधी इंडिया गठबंधन में सबसे मजबूत होकर उभर रहे हैं. कुमार कहते हैं कि बीजेपी को सबसे अधिक डर लोकल क्षत्रपों से है,कांग्रेस से नहीं है. फर्ज करिए कि यूपी में समाजवादी पार्टी मजबूत होती है तो बीजेपी परेशान होगी कि नहीं? झारखंड में हेमंत सोरेन मजबूत होंगे तो बीजेपी परेशान होगी ही. इसलिए बीजेपी की हमेशा से कोशिश रही है कि मुकाबले में कांग्रेस ही रहे. कुमार उदाहरण देते हैं कि पिछले लोकसभा चुनावों में करीब 186 सीटों पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी था. इसमें करीब 171 सीटें बीजेपी ने जीती थी.

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इंडिया के घटक दलों का नेतृत्व पाने का राहुल के पास अवसर

इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी को नापसंद करने वाले एक नहीं कई हैं. राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट करने को लेकर कांग्रेस इंडिया गठबंधन के निर्माण के शुरुआती दिनों में उदासीन रही है, यही कारण रहा कि पार्टियां एक जुट दिख रही थीं. राहुल की संसद में वापसी और अविश्वास प्रस्ताव के मोदी बनाम राहुल गांधी होने से कांग्रेस को सबसे बड़ा लाभ यही होने वाला है. कांग्रेस अब राहुल गांधी को इंडिया गठबंधन की ओर से पीएम कैंडिडेट के रूप में प्रोजेक्ट कर सकेगी.राहुल अगर संसद में पीएम मोदी को घेरने में कामयाब होते हैं तो यह उनकी दावेदारी के लिए भी ऑक्सीजन साबित होगा. पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल कहते हैं कि राहुल की संसद में वापसी और आगामी चुनावों को इंडिया बनाम एनडीए की जगह मोदी वर्सेस राहुल होने से कांग्रेस मजबूत होगी पर विपक्ष कमजोर पड़ जाएगा. बाद में इंडिया गठबंधन की ओर से राहुल के पीएम कैंडिडेट होने की दावेदारी पर मुहर लगना तय है.अरविंद केजरीवाल-ममता बनर्जी या नीतीश कुमार जैसे नाम अब राहुल गांधी के आगे टिक नहीं सकेंगे, और बीजेपी के लिए भी राहुल को ट्रैप करना आसान हो जाएगा.


बीजेपी लोकल क्षत्रपों के मुकाबले कांग्रेस से मुकाबला करना चाहेगी

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चुनावों के राहुल वर्सेस मोदी होने से बीजेपी में बल्ले-बल्ले है. पार्टी सोचती है कि देश हर हाल में राहुल गांधी के मुकाबले नरेंद्र मोदी को पसंद करेगा. मध्य प्रदेश में अभी सी वोटर के सर्वे में प्रधानमंत्री के रूप में 57 परसेंट लोग पीएम नरेंद्र मोदी को ही पसंद करते दिखे जबकि राहुल गांधी को मात्र 18 परसेंट लोग ही इस पद के योग्य मान रहे हैं.पंकज कुमार कहते हैं कि जब जब बीजेपी ने किसी लोकल क्षत्रप को हराने के लिए अपनी एड़ी-चोटी एक की है मुंह की खाई है. वह चाहे बंगाल हो या दिल्ली. हिमाचल और कर्नाटक में बीजेपी को मिली हार भी कांग्रेस से नहीं उसके लोकल क्षत्रपों से मिली हार ही है.वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल कहते हैं कि राहुल हमेशा से बीजेपी के लिए आसान टार्गेट रहे हैं. बीजेपी उनकी छोटी-छोटी गलतियों को बड़ा बनाने में माहिर है. राहुल फिर वही गलतियां करेंगे.अविश्वास प्रस्ताव के लिए जब यह तय हो गया था कि उन्हें सबसे पहले हमला बोलना है तो उन्हें पीछे नहीं हटना नहीं चाहिए था. वो मंगलवार को भी बोलते और जब पीएम मोदी बोलते तो फिर बोलते. तय है कि उनकी तैयारी नहीं रही होगी और वो बीजेपी पर हमला करने का मौका गवां दिए. 
 

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