
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि भारत में गरीबों को किसी न किसी रूप में सरकारी मदद मिलती रहनी चाहिए. आजतक के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार गरीबों को पैसा भी दे सकती है और अच्छी इकोनॉमी भी चला सकती है, इसमें विरोधाभास नहीं है.
अभिजीत बनर्जी ने 'न्याय' जैसी स्कीम की पैरवी करते हुए कहा, "मैं समझता हूं कि कुछ बेसिक न्यूनतम आय के बारे में निश्चित रूप से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि कई ऐसे लोग हैं जिनकी जिंदगी में रिस्क होता है, वे अचानक सबकुछ खो देते हैं, कई बार बहुत बारिश होती है, कई बार बारिश ही नहीं होती है, अचानक रियल स्टेट डूब जाता है, बैंक बंद हो जाते हैं, ये सारे रिस्क हैं. इन सभी रिस्क से लोगों को बचाने की जरूरत है." उन्होंने कहा कि सरकार और संस्थाएं लोगों को खतरे में डाल रही है, खासकर के आजकल की मार्केट आधारित अर्थव्यवस्था में, जहां पर अचानक लोगों की नौकरियां चली जाती हैं. उन्होंने कहा कि उनके विचार में ऐसे लोगों को किसी न किसी तरह की आर्थिक सुरक्षा दी जानी चाहिए.
न्याय जैसी स्कीम की पैरवी
बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार बनने पर 'न्याय' स्कीम के तहत देश के गरीबों को न्यूनतम वित्तीय सहायता देने का ऐलान किया था. कांग्रेस की इस योजना के शिल्पकार अभिजीत बनर्जी ही थे. अभिजीत बनर्जी ने कहा कि देश के लोग आलसी नहीं हैं, वे गरीबी के दुष्चक्र से निकलने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं है कि लोग गरीबी से निकलने के लिए मेहनत नहीं कर रहे हैं, लेकिन अचानक अकाल पड़ जाता है, नौकरियां चली जाती हैं, तो वे क्या करें?"
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असहमति को देश में सहेज कर रखें
अभिजीत ने कहा कि असहमति (Disagreement) का समाज में अहम स्थान है और इसे सहेजकर रखना पड़ेगा. भारत की मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में असहमति के लिए स्थान बचाकर रखना बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि कुछ मूल तत्व हैं जहां पर असहमति का होना एक देश और एक समाज के रूप में हमें मजबूत करता है.
JNU में मेरा राजनीतिकरण हुआ
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में अपने छात्र जीवन को याद करते हुए अभिजीत बनर्जी ने कहा कि इस विश्वविद्यालय में उन्हें राजनीति की समझ मिली. उन्होंने कहा कि वे कोलकाता में रहते थे और उन्हें सिर्फ लेफ्ट की राजनीति की समझ थी, लेकिन JNU में आने के बाद उन्हें लोहिया, गांधी और संघ के विचारों की समझ हुई. वे कहते हैं, "JNU में मेरा राजनीतिकरण हुआ, ऐसा नहीं था कि मैं इन संगठनों से जुड़ा था, लेकिन मैं इनके बीच संबंध स्थापित करने में सफल हुआ. इससे मुझे भारतीय राजनीति की अच्छी समझ मिली."