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अंबेडकर तो सवाल पूछना सिखाते थे न?

अंबेडकर पर जब सारे लिक्खाड़ कागद कारे कर रहे हैं, उन पर प्रशस्ति पत्र पढ़े जा रहे हैं, तो बीएचयू के एक पूर्व छात्र ने इस माहौल पर कुछ सवाल उठाए हैं...

B R Ambedkar B R Ambedkar
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 11:30 PM IST

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य इस कदर अंबेडकरमय हो गया है कि जैसा पहले कभी नहीं था. छात्र राजनीति में जय भीम फिर से प्रासंगिक हो उठा है. वोट बैंक की राजनीति में सभी उन्हें खुद के खांचे में उतार लेना चाहते हैं. अंबेडकर से जुड़ी जो हमारी सबसे पुरानी यादें हैं उनमें वे हमारे कस्बे के नुक्कड़-मोड़ पर मूर्ति में बड़े बेढब से दिखते हैं. दिन-रात धूल फांकते हुए और चिरई-चुरगुनों की बीटों से सराबोर. अंबेडकर की वो नीली सूट और पैसों के अभाव और भावनाओं के उफान की वजह से मैंने उनकी अधिकांश मूर्तियां बेढब और बेतरतीब ही बनी देखी हैं.

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एक बार तो शहर के पोखर के मुहाने पर लगी उनकी मूर्ति की किसी ने गर्दन भी उतार दी थी. तब समझ में नहीं आता था कि अंबेडकर किस शै का नाम है. हालांकि किताबों में हमेशा यह पढ़ने को मिलता था कि वे आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे और उन्होंने ही भारत के संविधान के निर्माण किया था.

जब स्कूल से फेल-पास होते हुए यूनिवर्सिटी पहुंचे तो पाया कि यार अंबेडकर तो पहुंचा हुआ शख्स था. क्या गजब की बातें करता था. मंदिर जाने के बजाय पुस्तकालय जाने को कहता था और उसके समर्थक आज उसकी ही मूर्तियां और मंदिर बनाने पर तुले हैं. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य मंत्री मायावती ने उनकी मूर्तियां और स्मारक बनवाने में इतना राजकीय कोष खर्च कर दिया कि उसमें भूख से तड़प रहे लाखों लोगों का पेट भरा जा सकता था. उन्हें प्राथमिक जरूरत की चीजें मुहैया कराई जा सकती थीं.

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अंबेडकर जिसने किसी तथाकथित रूप से प्रगतिशील धर्म को आईना दिखाने का काम किया. जिसने धर्म के भीतर व्याप्त तमाम तरह की अराजकता से मुंह मोड़ने के बजाय उससे दो-दो हाथ करने की ठानी. दलितों, महिलाओं और मजदूरों को शिक्षित, संगठित और संघर्ष करने की प्रेरणा दी. जिसने हिंदू धर्म में पैदा होने पर खुद का जोर न चलने पर अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म अपना लिया. जिसने मनुस्मृति का दहन किया और पुरानी और रूढ़ हो चुकी परंपरा को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास किया.

लेकिन अंबेडकर को लेकर कोई एक चीज जो मेरे सीने में आज भी चुभती है और टीस देती है कि पूरी दुनिया को शिक्षा और संघर्ष का नारा देने वाला यह शख्स अपनी बीवी को क्यों न पढ़ा सका. जिसके पास दुनिया की सबसे बेहतरीन डिग्रियां हों वह अपनी धर्म पत्नी को पढ़ना-लिखना क्यों नहीं सिखला सका?
सवाल गहरा है और इसे एक ठंडी सांस लेकर सोचिएगा. जय भीम, जय भारत...

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