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SFL की जांच में महाराष्ट्र में मीट के पांच नमूनों में से एक बीफ का निकला

सात महीनों के अंतराल में, स्टेट फॉरेन्सिक साइंस लैबोरेटरीज (एफएसएल) ने नागपुर, पुणे और कलिना में अपने क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में 327 मांस के नमूने प्राप्त किए हैं. इनमें से 20 प्रतिशत मामलों में बीफ पाया गया है. कलिना एफएसएल में मांस परीक्षण में एक महीने के अंदर औसत 25 मामले पाए है.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
केशवानंद धर दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 10:34 AM IST

सात महीनों के अंतराल में, स्टेट फॉरेन्सिक साइंस लैबोरेटरीज (एफएसएल) ने नागपुर, पुणे और कलिना में अपने क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में 327 मांस के नमूने प्राप्त किए हैं. इनमें से 20 प्रतिशत मामलों में बीफ पाया गया है. कलिना एफएसएल में मांस परीक्षण में एक महीने के अंदर औसत 25 मामले पाए है.

बता दें कि 100 राज्य पुलिसकर्मियों को अब बीफ परीक्षण किट का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है. इसका इस्तेमाल सितंबर से बाद में किया जाएगा. अगस्त तक फॉरेन्सिक साइंस लैबोरेटरीज निदेशालय अपने क्षेत्रीय केंद्रों में नाशिक और औरंगाबाद में बीफ परीक्षण शुरू कर देंगे. जबकि अमरावती, नांदेड़ और कोल्हापुर में अन्य केंद्र अगले साल तक बीफ परीक्षण शुरू करने की योजना बना रहे हैं.

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महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से जब्त किए गए मांस नमूनों में से और एफएसएल द्वारा जांच की गई, इसमें 65 मामले  में बीफ पाया गया. बता दें कि पुलिस द्वारा जब्त किए गए मांस का परीक्षण करने के लिए एफएसएल ने एक विशेष दल का गठन किया है.

एफएसएल अधिकारी ने कहा कि कभी-कभी यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि  जब्त किया गया मांस बीफ है या नहीं. इसका कारण यह है कि मांस अक्सर भैंस के मांस के साथ मिक्स हो जाते हैं. इस बीच, एफएसएल राज्य के 100 पुलिसकर्मियों को मांस परीक्षण किटों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षण दे रहा है, जिसका बीफ का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.

फॉरेन्सिक विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक डॉ के.वी. कुलकर्णी ने कहा, "हम अगले दो महीनों में राज्य से पुलिस के चौथे बैच का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद हम किट का वितरण करेंगे." उन्होंने कहा, "राज्य सरकार सितंबर तक इन किटों को उपलब्ध कराने के बारे में सोच रही है.

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बता दें कि एफएसएल द्वारा 100 पुलिसकर्मियों को  पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के बाद, बीफ का पता लगाना एक सरल कार्य होगा और सरकारी मशीनरी का बहुत समय बचाएगा. इसके अलावा, सांप्रदायिक तनाव काफी कम हो जाएगा.

 

 

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