
वोट पर टिका लोकतंत्र क्या इवीएम पर जा टिका है और विपक्ष को लगने लगा है कि ईवीएम पर टिके वोटिंग से खतरा लोकतंत्र का है. इसलिए 10 अप्रैल को चुनाव आयोग में तो 12 अप्रैल को राष्ट्रपति के दरवाजे पर कांग्रेस समेत 13 राजनीतिक दलों ने ये कहकर दस्तक दी कि वोटिंग फिर से बैलेट पैपर पर होनी चाहिए क्योंकि उन्हें ईवीएम पर भरोसा नहीं है.
सवाल बड़ा है कि क्या वाकई ईवीएम के जरिये लोकतंत्र पर ही खतरा मंडरा रहा है या फिर हार के बाद विपक्ष को लगने लगा है कि वोटरों का भरोसा रखते हुए ईवीएम पर ही भरोसा ना रखा जाए. ईवीएम के खेल से पहले जरा देश में लोकतंत्र के उस मिजाज को समझना जरूरी है जो ईवीएम के जरिए ही सही देश में राजनीतिक नुमाइन्दगी करने वाले नेताओं के ऊपर आती है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और 2011 के सेंसस के मुताबिक आलम ये है कि...
- एक सांसद 22,20,538 लोगों की नुमाइन्दगी करता है.
- भारत के बाद दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका का नंबर आता है.
- अमेरिका में एक सिनिटर 7,22,636 लोगों की नुमाइन्दगी करता है.
अगर लोकतंत्र के इस खेल में दुनिया के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन का जिक्र कर लें तो आपको जानकर हैरत होगी कि...
- चीन में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस का एक सदस्य 4,48,518 लोगों की नुमाइन्दगी करता हैं.
- चीन में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के 2987 सदस्य होते हैं जबकि भारत में सिर्फ 545 सांसद होते हैं.
भारत के सांसदों पर दुनिया के किसी भी प्रतिनिधित्व के मुकाबले ज्यादा जिम्मेदारी होती है तो सांसद ज्यादा ताकतवर भी होता है और सत्ताधारी पार्टी के हाथ में ताकत भी सबसे ज्यादा होती है. जब लोकतंत्र की ये पूरी प्रक्रिया ही वोटिंग पर टिकी है और वोटिंग का तरीका ईवीएम मशीन है. सवाल उसी पर उठ रहे हैं तो भी मसला सिर्फ तकनीक का है या लोकतंत्र का, नई बहस इसको लेकर शुरू हो गई है.
चूंकि बहस के केन्द्र में कहीं ना कहीं यूपी चुनाव परिणाम है और यूपी देश का ना सिर्फ सबसे बड़ा सूबा है बल्कि यूपी के चुनावी लोकतंत्र का सच ये भी है कि...
- यूपी में एक विधायक करीब 5 लाख लोगों की नुमाइन्दगी करता है.
- यूपी धर्म-जाति की राजनीतिक प्रयोगशाला के तौर पर देखा जाता है.
- यूपी की सामाजिक आर्थिक परिभाषा भी पश्चिम से पूर्व जाते-जाते बदल जाती है.
ऐसे में बीजेपी की बंपर जीत को हारे हुए तमाम राजनीतिक दल पचाने की स्थिति में नहीं हैं और सारी बहस इसी पर आ टिकी है कि ईवीएम के भरोसे वोट के लोकतंत्र को छोड़ा नहीं जा सकता.
दरअसल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ के आरोपों तले विपक्ष के तेवर तीखे हैं. लेकिन इन तीखे तेवरों के बीच चुनाव आयोग ने भी ये कहकर चुनौती दे दी कि...
- मई में तमाम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाएगा, और उनसे अपने आरोप साबित करने को कहा जाएगा.
- बैंगलोर और हैदराबाद, जहां ईवीएम बनती हैं, वहां से टेक्नीकल एक्सपर्ट की टीम भी आएगी.
- ईवीएम को हैक करने का दावा करने वाला कोई निजी शख्स भी कार्यक्रम के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकता है.
यानी चुनाव आयोग हर आरोप को साबित करने की चुनौती दे रहा है. वहीं समूचा विपक्ष आज राष्ट्रपति के दरवाजे पर दस्तक देकर निकला तो एक स्वर में कहा -ईवीएम से छेड़छाड़ ने पूरी चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता पर सवाल खड़े किए हैं, और ये लोकतंत्र के लिए खतरा है.
लेकिन सच यह भी है कि जिस कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष राष्ट्रपति से मिलने पहुंचा. उसी कांग्रेस के नेता और पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने यह कहते हुए कांग्रेस को बैकफुट पर ढकेल दिया है कि ईवीएम से गड़बडी नामुमकिन है और गड़बड़ी के आरोपों के जरिए कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां हार के बहाने तलाश रही हैं.
हालांकि सवाल किसी के बयान या आरोप का नहीं-सवाल ईवीएम की विश्वसनीयता का है, क्योंकि पूरा चुनावी लोकतंत्र ही अब ईवीएम पर आ टिका है. जाहिर है बड़ी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है और इसलिए अगले महीने राजनीतिक दलों से लेकर हैकिंग करने वालों तक को चुनाव आयोग आमंत्रित कर साबित करने की चुनौती दे रहा है.