
लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ लगी हुई है. जनता तक पहुंच बनाने के लिए राजनीतिक दल कई रास्ते अपना रहे हैं. इसमें काफी धन भी खर्च हो रहा है. पार्टियों की इन्हीं गतिविधियों को देखते हुए इनकी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की मांग की जाती रही है. इनमें से एक मांग राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने की रही है ताकि लोग जिन्हें वोट देते हैं उनके बारे में जानकारी हासिल की जा सके.
बहरहाल, देश में राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने की मांग लंबे समय से की जाती रही है. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शीर्ष कोर्ट में याचिका दाखिल कर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लागे की मांग की गई है. कोर्ट में सभी पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत 'सार्वजनिक प्राधिकरण' घोषित करने के निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका दायर की गई है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधि कानून की धारा 29सी के अनुसार राजनीतिक दलों को मिलने वाले दान की जानकारी भारत के निर्वाचन आयोग को दी जानी चाहिए. यह दायित्व उनकी सार्वजनिक प्रकृति की ओर इंगित करता है. इसमें कहा गया है, अत: यह अदालत घोषित कर सकती है कि राजनीतिक दल आरटीआई कानून, 2005 की धारा 2(एच) के तहत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’है.
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करने और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन में उन्हें निलंबित करने या वापस लेने की भारत के निर्वाचन आयोग की शक्ति उनकी सार्वजनिक प्रकृति की ओर इंगित करता है. याचिका में ये निर्देश देने की भी मांग की गई है कि सभी पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियां चार सप्ताह के भीतर जन सूचना अधिकारी, सक्षम प्राधिकरण नियुक्त करें और आरटीआई कानून, 2005 के तहत सूचनाओं का खुलासा करें.
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