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PM उम्मीदवारी पर क्यों पीछे हटे राहुल? क्या ये है कांग्रेस का असली गेमप्लान

पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष का कुनबा बनने से पहली ही बिखरता दिखने लगा. ऐसे में कांग्रेस ने अपने कदम को पीछे खींचने में देर नहीं की और मायावती या फिर ममता बनर्जी को पीएम बनाने के संकेत दे दिए. कांग्रेस के इस कदम से पीछे पार्टी की सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है.

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कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 10:58 AM IST

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पार्टी ने 2019 में पीएम पद के चेहरे के तौर पर आगे बढ़ाया तो सहयोगी दल ही ना-नुकूर करने लगे. इतना ही नहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के भी सुर बदल गए. पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष का कुनबा बनने से पहले ही बिखरता दिखने लगा. ऐसे में कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींचने में देर नहीं की और मायावती या फिर ममता बनर्जी को पीएम बनाने के संकेत दे दिए. कांग्रेस के इस कदम के पीछे पार्टी की सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है.

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अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी को मात देने के लिए विपक्षी दल एकजुट होकर मुकाबला करना चाहते हैं, लेकिन नेतृत्व को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है. विपक्ष के क्षत्रप जो कांग्रेस के संभावित सहयोगी दल हैं, वो फिलहाल राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करने को राजी नहीं हैं.

हालांकि, कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी को 2019 के लिए पीएम पद के चेहरे के तौर पर पेश किया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'कांग्रेस का निर्णय सटीक, सपाट और स्पष्ट है. राहुल गांधी हमारा चेहरा हैं. हम उनके नेतृत्व में जनता के बीच जाएंगे. जब हम सबसे बड़ा दल होंगे तो स्वाभाविक रूप से वही चेहरा होंगे. इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.'

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कांग्रेस के राहुल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर अब तक सिर्फ जेडीएस ही सहज दिख रही है बाकी सहयोगी दल इससे हिचक रहे हैं. आरजेडी ने इशारों-इशारों में राहुल की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल खड़े करते हुए कई और नाम इस पद के लिए उछाल दिए.

तेजस्वी के बाद मायावती ने भी कांग्रेस को दो टूक संदेश देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गठबंधन तभी संभव है, जब उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. अगर इस समझौते में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं तो भी उनकी पार्टी अकेले लड़ने को पूरी तरह तैयार है.

PM पद पर राहुल की दावेदारी पर सहयोगी दलों की नाराजगी को देखते कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. दरअसल कांग्रेस किसी भी कीमत पर महागठबंधन में बिखराव नहीं चाहती है. इसीलिए रणनीति के तहत कांग्रेस ने मायावती या फिर ममता बनर्जी के नाम को भी पेश कर दिया.

बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस मायावती या फिर ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार कर समर्थन दे सकती है. लेकिन ऐसी स्थिति तब आएगी जब कांग्रेस को उम्मीद से कम सीटें मिलेंगी. कांग्रेस ने इसके जरिए दो बड़े नेताओं के साधने की रणनीति बनाई है, क्योंकि यही दो नेता हैं जो राहुल के नेतृत्व को फिलहाल स्वीकार नहीं कर सकती है. इतना ही इन दोनों नेताओं के मन में प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब काफी दिनों से है.

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हालांकि कांग्रेस ने राहुल के चेहरे को आगे बढ़ाकर देश को संदेश दे दिया है. अब इसके बाद सहयोगियों को साधकर रखने के लिए मायावती और ममता बनर्जी के नाम को भी आगे बढ़ा दिया है. सूत्रों की माने तो कांग्रेस 2004 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर 2019 की रणभूमि में उतरना चाहती है.

कांग्रेस 2004 की तरह कोशिश में है कि पार्टी को किसी भी तरह  से 120 से 150 सीटें मिल जाए. जबकि वहीं कांग्रेस के सहयोगी दल में से किसी भी पार्टी को 40 से ज्यादा सीटें मिलना मुश्किल हैं. ऐसे में आखिरकार बाजी कांग्रेस के नाम रहेगी. इसके बाद फिर कांग्रेस राहुल गांधी या फिर मनमोहन सिंह की तरह से ही अपने किसी नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नाम आगे बढ़ाएगी. चुनाव नतीजों के बाद क्षत्रपों के पास कोई विकल्प भी नहीं बचेगा. ऐसे में कांग्रेस के साथ रहना उनकी मजबूरी होगी.

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