
उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच मतभेद की खबर हैरान करने वाली है. वजह, प्रदेश में 27 साल से सत्ता से दूर रही पार्टी अपने इसी चुनावी रणनीतिकार के भरोसे यूपी विधानसभा चुनाव की नैया पार लगाने की उम्मीद में है. हालांकि, इस बारे में दोनों में से किसी पक्ष की ओर से भी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की अगुवाई में बीजेपी की प्रचंड जीत के सूत्रधार रहे प्रशांत किशोर यानी पीके को बाद में नीतीश कुमार ने अपना लिया. बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की रणनीति कामयाब भी रही और नीतीश की सत्ता में वापसी हो पाई. यूपी चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रशांत किशोर को अपने चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने और उसे कार्यान्वित करने का जिम्मा सौंपा. वो पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए भी पार्टी का प्रचार काम देख रहे हैं.
प्रशांत किशोर I-PAC यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी नाम से एक संस्था चलाते हैं. यह संस्था ही किसी पार्टी के प्रचार अभियान का काम देखती है. बताया जाता है कि प्रशांत किशोर की इस संस्था में करीब 250 लोग काम करते हैं. ऐसी भी खबर है कि यूपी चुनाव के लिए पीके की करीब 600 लोगों की टीम हर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के काम में जुटी है. जाहिर है, ये सभी लोग और प्रशांत किशोर मुफ्त में कुछ करते नहीं होंगे. इनका खर्च उठाना भी राजनीतिक दलों को ही उठाना पड़ता है.
एक अनुमान के मुताबिक अगर पीके की मौजूदा टीम 600 लोगों की है और इस टीम के हर सदस्य को कम-से-कम 20 हजार रुपये बतौर सैलरी दिए जाते हैं तो कुल खर्च एक करोड़ 20 लाख रुपये होता है. यानी सालभर में 14 करोड़ 50 लाख रुपये. इसका मतलब हुआ कि पीके की सेंट्रल कमेटी और ग्राउंड स्टाफ की सैलरी मिलाकर सालाना 32 करोड़ रुपये सालाना होते हैं.
वैसे राजनीतिक दल पीके की टीम को हायर करने के लिए कितना देती हैं, इसका डिटेल तो कहीं उपलब्ध नहीं है. पीके भी किसी नेता या पार्टी से सीधे पैसे नहीं लेते. यह रकम अप्रत्यक्ष तरीके से उनके पास जाती है. ऐसी खबरें हैं कि पार्टियों को विभिन्न स्रोतों से मिलने वाले चंदे 'रीरूट' होकर पीके की संस्था को जाते हैं.
कांग्रेस ने कितने दिए
ऐसी खबरें हैं कि यूपी में चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस ने 500 करोड़ रुपये का बजट रखा है. पार्टी ने इतने का ही बजट पंजाब चुनाव के लिए भी रखा है. इसमें से पीके की टीम या संस्था के लिए कितनी रकम है, इसकी औपचारिक डिटेल कहीं भी उपलब्ध नहीं है. लेकिन बताया जा रहा है कि दोनों चुनाव के लिए पीके की संस्था को करीब 50 करोड़ रुपये दिए जाने हैं.
कांग्रेस के दिग्गज नेता पीके पर होने वाले खर्च को लेकर सवाल भी उठाते हैं. बताया जाता है कि प्रशांत किशोर ने अपनी संस्था के कुछ बिल पास कराने की कोशिश की तो कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने गुणा-गणित लगाकर इन खर्च को आधा कर दिया. यह भी कहा गया कि पेमेंट किश्तों में किया जाएगा.
बीजेपी ने कितने दिए
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए पीके को कितनी रकम दी इसका कोई अंदाजा नहीं है. पीके तीन वर्षों से गुजरात के सीएम आवास से काम करते रहे. उस वक्त नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे. लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उन्होंने सिटिजन्स फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस नाम का एक ग्रुप बना लिया था. इस ग्रुप में करीब 60 लोग थे. ये नामी संस्थानों से पढ़े-लिखे थे और इनकी तनख्वाह 50 हजार से एक लाख के बीच थी. इस आधार पर अनुमान लगाया जाए तो ग्राउंड फोर्स को छोड़कर पीके की टीम पर सालाना करीब 3.5 करोड़ रुपये खर्च हुए.
नीतीश ने पीके को क्या दिया
नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव के लिए पीके की संस्था को अप्रत्यक्ष तरीके से चंदा दिया. बताया जाता है कि नीतीश की पार्टी जदयू से जुड़े दो उद्योगपतियों को पीके की टीम का खर्च उठाने को कहा गया था. इनमें एक उद्योगपति मोकामा जबकि दूसरा बख्तियारपुर का था.
बिहार चुनाव में जीत के बाद नीतीश ने प्रशांत किशोर को सलाहकार बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था. कुछ दिन पहले बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा था कि बिहार विकास मिशन के सदस्य पीके की संस्था को सूबे का विजन डॉक्यूमेंट बनाने का जिम्मा सौंपा गया था और इसके एवज में उसे नौ करोड़ रुपये भी दिए गए हैं.