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नहीं पसीजे नीतीश, अपने ही राज्य में हार गई बिहार की बेटी

राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की प्रत्याशी बनकर मैदान में उतरीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को सबसे बड़ा झटका उनके अपने राज्य बिहार से ही लगा. यूपीए की सरकार वाले इस राज्य से मीरा कुमार की जीत जरूरी थी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलग रुख की कीमत जगजीवन राम की इस बेटी को चुकानी पड़ी और दूसरे राज्यों की तरह यहां भी एनडीए कैंडिडेट रामनाथ कोविंद ही भारी पड़े.

मीरा कुमार और नीतीश कुमार मीरा कुमार और नीतीश कुमार
केशवानंद धर दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 3:59 PM IST

राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की प्रत्याशी बनकर मैदान में उतरीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को सबसे बड़ा झटका उनके अपने राज्य बिहार से ही लगा. यूपीए की सरकार वाले इस राज्य से मीरा कुमार की जीत जरूरी थी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलग रुख की कीमत जगजीवन राम की इस बेटी को चुकानी पड़ी और दूसरे राज्यों की तरह यहां भी एनडीए कैंडिडेट रामनाथ कोविंद ही भारी पड़े.

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बिहार से मीरा कुमार को वोट तो अच्छे खासे मिले लेकिन वो कोविंद को नहीं पछाड़ सकीं. कोविंद को बिहार से कुल 22 हजार 490 वोट मिले जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी मीरा कुमार महज 18 हजार 867 वोट ही हासिल कर सकीं. मीरा कुमार के खिलाफ आए इस नतीजे की सबसे बड़ी वजह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू का रामनाथ कोविंद को समर्थन करना रहा.

रामनाथ कोविंद को जब एनडीए ने राष्ट्रपति पद के लिए अपना प्रत्याशी बनाया तो उस समय वो बिहार के गवर्नर थे. उनके नाम की घोषणा होते ही नीतीश कुमार ने राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते कोविंद से औपचारिक मुलाकात की और बाद में ऐलान किया कि उनके मन में कोविंद के लिए काफी सम्मान है इसलिए उनकी पार्टी राष्ट्रपति चुनावों में कोविंद को ही समर्थन देगी.

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यूपीए ने बनाया मीरा कुमार को उम्मीदवार

कोविंद के नाम का ऐलान होने के बाद यूपीए ने मीरा कुमार को उनके मुकाबले अपना उम्मीदवार घोषित किया. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे विचारधारा की लड़ाई बताया. तभी से इस बात की ओर सबकी निगाह थीं कि क्या नीतीश कुमार अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए कोविंद की जगह मीरा कुमार को समर्थन देंगे. मीरा कुमार को बिहार की बेटी कहा गया लेकिन नीतीश ने अपना फैसला नहीं बदला.

नीतीश का तर्क

नीतीश का कहना था कि बिहार की बेटी मीरा कुमार को हारने के लिए मैदान में उतारा गया है और यदि कांग्रेस वाकई उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना चाहती थी तो उस समय उन्हें उम्मीदवार बनाती जब आंकड़े यूपीए के पक्ष में थे. कांग्रेस को चाहिए कि 2019 में जीत की रणनीति बनाए और 2022 में बिहार की बेटी को राष्ट्रपति बनाए. नीतीश के इस रुख से तय हो गया कि मीरा कुमार को बिहार में कोविंद के मुकाबले हार का सामना करना पड़ेगा क्योंकि नीतीश के कोविंद के खेमे में जाने से आंकड़े एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में हो गए. बिहार विधानसभा में आरजेडी की 80, जेडीयू की 71 और कांग्रेस की 27 सीटें हैं. दूसरी ओर बीजेपी 53 तो बाकी पार्टियों के 12 विधायक हैं.

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