
राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संविधान उनके लिए पवित्र ग्रंथ और संसद मंदिर जैस रहा है. सोमवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल का अंतिम दिन था. आज रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण करेंगे.
सोमवार रात को राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने बहुलता और सहिष्णुता के मूल्यों को बनाए रखने पर जोर दिया. राष्ट्रपति ने कहा, 'मैंने इस देश को जितना दिया है, उससे ज्यादा कहीं कुछ मिला है. अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में मैं कितना सफल हुआ, यह आगे चलकर इतिहास के आलोचक लेंस से देखा जाएगा. पिछले 50 साल के सार्वजनिक जीवन में भारत का संविधान मेरे लिए पवित्र ग्रंथ रहा है और संसद मेरा मंदिर. देश के लोगों की सेवा करना मेरा जुनून रहा है.'
बहुलता और सहिष्णुता पर जोर
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'हर दिन हम अपने आसपास हिंसा की घटनाएं बढ़ती हुई देख रहे हैं. इस हिंसा का मूल आशंका और अविश्वास है. हमारी संस्कृति, विश्वास और भाषा की बहुलता ही इस देश को खास बनाती है. हमें अपने सोच-विचार को सभी तरह की हिंसा से मुक्त रखनी चाहिए.
किसानों की चिंता
राष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से देश में कृषि क्षेत्र पर काफी दबाव है. उन्होंने कहा कि खुशहाली जीवन का आधार होना चाहिए. असली विकास तब ही होगा, जब इस देश के गरीब से गरीब लोगों को यह आभास हो कि वे भी इस भूमि का हिस्सा हैं. अपने कार्यकाल के पांच वर्ष के दौरान मैं हर दिन अपनी जिम्मेदारियों को लेकर सजग रहा. देश के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा में मुझे काफी कुछ सीखने को मिला है.
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारी उच्च शिक्षण संस्थाओं में रचनात्मक सोच, इनोवेशन और वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा देना चाहिए. समाज में बदलाव शिक्षा में बदलाव के द्वारा ही संभव है.