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ये कैसी राजनीतिः मिटा रहे हैं मुगलों के निशान और मज़ार पर पहुंचे मोदी

क्या प्रधानमंत्री को इस बात का अहसास नहीं था कि बहादुर शाह जफर भी मुगल थे. क्या वाकई प्रधानमंत्री 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक को श्रद्धाजंलि देने गए थे या उनकी मंशा कुछ और थी. हालांकि इस पर से पर्दा आने वाले समय उठेगा.

मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
नंदलाल शर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 07 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

म्यांमार दौरे के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रंगून में मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर पहुंचे और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए. पीएम मोदी का ये कदम पहली नजर में चौंकाने वाला नजर आता है. एक तरफ बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुगलों के प्रति अपनी घृणा को खुलकर जाहिर करते हैं तो भारत के इतिहास से मिटाने की हरसंभव भी कोशिश करते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहादुर शाह जफर की मजार पर जाना चौंकाता है.

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बहादुर शाह जफर की मजार पर प्रधानमंत्री को श्रद्धा के इत्र छिड़कते देखकर कई सवाल पैदा होते हैं. क्या ये वही मोदी है जिनकी राज्य सरकारें अपनी पाठ्य पुस्तकों से मुगलों का गायब कर देती हैं, तो सड़कों का नाम बदल देती हैं. प्रधानमंत्री को इस बात का अहसास तो होगा ही कि बहादुर शाह जफर भी मुगल थे. क्या वाकई प्रधानमंत्री 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक को श्रद्धाजंलि देने गए थे या उनकी मंशा कुछ और संदेश देने की थी. हालांकि इस पर से पर्दा आने वाले समय में उठेगा.

बहरहाल सवाल ये है कि क्या मोदी के जफर की मजार पर जाने से मुगलों के प्रति बीजेपी नेताओं, सरकारों और उनके संगठनों का नजरिया बदलेगा. मुगल बादशाह के प्रति पैदा हुई इस नई आसक्ति के पहलू में यह याद रखना होगा कि मोदी जफर के दरबार में भले ही हाजिरी लगा आए हों, लेकिन बीजेपी और आरएसएस के पूर्वाग्रह अभी दूर नहीं हुए हैं.

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राजस्थान सरकार ने बदला हल्दीघाटी का इतिहास

मुगलों के प्रति बीजेपी के पूर्वाग्रहों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले 'अकबर महान ' नाम के चैप्टर को हटाया दिया. बीजेपी सरकार का कहना था कि अकबर महान क्यों है? महराणा प्रताप महान क्यों नहीं है?

इसके बाद सरकार ने हल्दीघाटी का इतिहास बदला. बीजेपी सरकार के नए इतिहास के मुताबिक हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप जीते थे और अकबर की सेना हार कर भाग गई थी. इतिहास बदलने से पहले पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी की लड़ाई में न तो महाराणा प्रताप जीते थे और ना ही अकबर की सेना लेकिन अब जो पढ़ाया जाएगा उसके मुताबिक हल्दीघाटी की लड़ाई बेनतीजा नहीं थी.

नए इतिहास के मुताबिक महाराणा प्रताप अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़े थे और उनकी सेना ने अकबर की सेना को लड़ाई के मैदान से भगा दिया था. राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने इसे सही ठहराया और कहा कि अब तक इतिहास ठीक नहीं पढ़ाया जा रहा था मगर अब उसे ठीक कर लिया गया है.

महाराष्ट्र में इतिहास की किताबों से 'मुगल' गायब

महाराष्ट्र राज्य शिक्षा बोर्ड ने इतिहास की किताबों से 'मुगलों' को गायब कर दिया है. राज्य शिक्षा विभाग ने पूरे सिलेबस से मुस्लिम शासकों के इतिहास को हटा दिया है. नए इतिहास में इसका कहीं पर भी जिक्र नहीं है कि ताजमहल, कुतुब मीनार और लाल किला आखिर किसने बनवाया. लेकिन इस किताब में बोफोर्स घोटाले और 1975-77 में लगी इमरजेंसी का जिक्र है और उसे विस्तार से बताया गया है.

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औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड

पूर्वी दिल्ली से बीजेपी सांसद महेश गिरी ने 31 जुलाई 2015 को चिट्ठी लिखकर यह मांग की थी कि औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया जाए. बीजेपी सांसद की मांग पर एनडीएमसी ने औपचारिक रूप से सड़क का नाम बदलकर उसे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर कर दिया.

मुगल गॉर्डन का नाम बदलने की मांग

अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने राष्ट्रपति भवन में मौजूद शानदार मुगल गॉर्डन का नाम बदलकर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद उद्यान करने की मांग की है. हिंदू महासभा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर राष्ट्रपति भवन के अंदर बने भव्य मुगल गार्डन का नाम बदलकर देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के नाम पर बदलने की मांग की है.

बता दें कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहादुर शाह जफर ने आंदोलन की अगुवाई की थी. आंदोलन कुचलने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने जफर को 1858 में म्यांमार भेज दिया था. इस दौरान वे अपनी पत्‍नी जीनत महल और परिवार के कुछ अन्‍य सदस्‍यों के साथ रह रहे थे. 7 नवम्बर, 1862 को उनका निधन हो गया. यहीं पर उनकी मजार बनाई गई. म्‍यांमार के स्‍थानीय लोगों ने उन्‍हें संत की उपाधि भी दी.

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