
नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी के देश के नाम संदेश पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने कहा कि यह संदेश मोदी दर्शन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था. लालू ने कहा कि लोगों को बड़ी आशा थी कि प्रधानमंत्री इस भाषण मे लोगों को बताएंगे कि उनके इस अभियान से देश को कितना काला धन प्राप्त हुआ और कितने जाली नोट पकड़े गए. उनसे अपेक्षा थी कि काला धन मिलने की भी जानकारी देते मगर उन्होंने इस संदेश को बजट भाषण बना दिया. लालू ने दुहराया कि लोगों को उनके भाषण से भारी निराशा हुई है.
असंगठित मजदूरों के काम न मिलने पर किए सवाल...
लालू ने पीएम मोदी पर तंज कसा कि पटरी से उतरी देश की अर्थव्यवस्था कब रफ्तार पकड़ेगी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के बाद कालाधन प्राप्ती का ब्यौरा भी नहीं दिया. वे आगे कहते हैं कि लाखों लोगों ने लाइन में खड़े होकर अपनी गाढ़ी कमाई का रुपया बैंक में जमा किया. इस दौरान 100 से अधिक लोगों की जान चली गई. तो वहीं कल-कारखाने में लगे असंगठित मजदूर नोटबंदी की वजह से अपने-अपने घरों को वापस लौटने के लिए मजबूर हुए. नोटबंदी के कारण उन्हें काम मिलना बंद हो गया. दवा-इलाज कराने में कठिनाई हुई. उनको हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार क्या करेगी इसका भी जिक्र भाषण में नही हुआ.
कालाधन और भ्रष्टाचार के स्लोगन पर बोला हल्ला...
लालू प्रसाद ने पीएम मोदी पर कालाधन और भ्रष्टाचार को स्लोगन बनाने को लेकर भी हल्ला बोला. लालू पीएम पर आरोप लगाते हैं कि वे चुनाव के समय की गई घोषणाओं से लोगों को डाइवर्ट कर रहे हैं. मध्यम और छोटे किसानों के लिए नाबार्ड से ऋण की सीमा को बढाए जाने और किसानों को सस्ते दर पर ऋण देने की जो घोषणा की गयी है वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. भारत कृषि प्रधान देश है. लोगों को उम्मीद थी कि किसानों का ऋण माफ करने जैसी योजनाएं शुरू होंगी मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
स्विस बैंक पर कुछ न बोलने पर भी बोला हल्ला...
लालू प्रसाद ने कहा कि पीएम मोदी ने स्विस बैंक के बारे में भी कुछ नहीं बोला. हर खाते में दिए जाने वाले 15-15 लाख रुपये पर भी वे कुछ नहीं बोले. लालू ने पीएम मोदी को कॉरपोरेट घराने को दिये जाने वाले ऋण और बैंक का रुपया लेकर विदेश भागने वालों को लेकर भी सवाल पूछे. उन्होंने पीए से पूछा कि वे उनसे ऋण कैसे वसूलेंगे. लोगों को उम्मीद थी कि नोट बंदी से हुई परेशानी पर प्रधानमंत्री पश्चाताप करेंगे मगर उसके विपरीत वे अपने भाषण में उपदेश देते दिखे. इसके बजाय उन्हें बताना चाहिए था देश की अर्थव्यवस्था कब तक सुधर जाएगी. कब तक परिस्थितियां पहले जैसी हो जाएगी.