
कैदियों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ी हुई जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से पूछा कि दिल्ली प्रीजन एक्ट के तहत नियमों का पालन कैदियों के अधिकारों के लिए क्यों नहीं हो पा रहा है. एक्ट के मुताबिक दिल्ली की हर जेल में अब तक लॉ ऑफिसर की भर्ती क्यों नहीं हो पाई है. दिल्ली प्रीजन एक्ट के सेक्शन 6 के हिसाब से दिल्ली की हर जेल में कैदियों के लिए ऑफिसर होना जरूरी है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने हर जेल में एक सुपरिटेंडेंट डिप्टी सुपरिटेंडेंट एक मेडिकल ऑफिसर लॉ ऑफिसर कैदी कल्याण ऑफिसर और इसी तरह के और ऑफिसर्स की नियुक्ति को सरकार ने जरूरी बताया है. दिल्ली में इस वक्त 16 जेल है. इसमें तिहाड़ की नौ जेल के अलावा रोहिणी और मंडोली की जेल भी शामिल है.
इस मामले में आज राज्य सरकार ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से कुछ वक्त और मांग लिया है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अभी इस जनहित याचिका का निपटारा हम नहीं कर रहे हैं लेकिन इस याचिका में जेल में बंद कैदियों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़े जिन मुद्दों को उठाया गया है उस पर सरकार को ध्यान देने और उन्हें पूरा करने की जरूरत है.
फिलहाल इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तारीख तय की है. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही डायरेक्टर जनरल को नोटिस जारी कर चुका है. पेशे से वकील अमित साहनी की तरफ से लगाई गई इस याचिका में बताया गया है कि 2016 से 2019 के बीच में कैदियों के संवैधानिक हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी लॉ ऑफिसर नियुक्त नहीं किया गया था.
9 ऑफिसर के बदले इस मामले में कैदियों के कानूनी मसलों को सुनने के लिए 12 डिप्टी सुपरिटेंडेंट रैंक के अधिकारी को रखा गया था. अभी भी सिर्फ 19 ऑफिसर की नियुक्ति की गई है यानी कि दिल्ली की 16 जेलों में कैदियों की कानूनी समस्या के समाधान के लिये सिर्फ एक लॉ ऑफिसर है, जो तिहाड़ जेल में कैदियों की समस्याएं सुनने के लिए उपलब्ध है.
दिल्ली की जेलों में कैदियों की संख्या वैसे भी क्षमता से 3 गुना ज्यादा है यानी उनकी परेशानियां कोर्ट कचहरी के मामलों से लेकर जेल के अंदर तक ढेरों है. लेकिन उन पर सुनवाई का मौका गिनती पर गिने जाने वाले चंद कैदियों को ही मिल पाता है. बाकी कानूनी मदद के लिए लाइन में खड़े होकर बरसों बरस इंतजार में निकाल देते हैं तो उनका नंबर कब आएगा.