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पुलवामा आतंकी हमले पर कल संसद में होगी सर्वदलीय बैठक, जाने क्यों है अहम

All party meeting on pulwama attack मोदी सरकार ने सर्वदलीय बैठक का फैसला लेकर एक बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. तमाम विपक्षी दल जवानों की शहादत पर पहले भी केंद्र सरकार पर निशाना साधते आए हैं और ऐसे में पुलवामा हमले के बाद यह सियासी वार और तेज हो जाएंगे. ऐसे में सरकार के लिए जरूरी है कि वह सभी दलों को विश्वास में ले.

सर्वदलीय बैठक (file photo) सर्वदलीय बैठक (file photo)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST

जम्मू- कश्मीर के पुलवामा में गुरुवार को हुए आतंकी हमले से पूरा देश स्तब्ध है. इस हमले में CRPF के 40 जवानों की शहादत हुई है और देश के तमाम राजनीतिक दलों ने एक सुर में हमले की कड़ी निंदा की है. इस हमले के बाद शुक्रवार को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक हुई जिसमें कई अहम फैसले लिए गए हैं. इस बैठक में एक सर्वदलीय बैठक बुलाने पर भी सहमति बनी है जो केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में शनिवार 11 बजे संसद भवन की लाइब्रेरी में होगी.

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केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने CCS की बैठक के बाद बताया कि गृहमंत्री फिलहाल श्रीनगर जा रहे हैं और वहां कई बैठकों में हिस्सा लेंगे. उन्होंने कहा कि वापस आकर उनकी अध्यक्षता में शनिवार को सर्वदलीय बैठक हो सकती है ताकि देश के सभी राजनीतिक दलों को इस हमले की पूरी जानकारी दी जा सके.

क्यों अहम है सर्वदलीय बैठक?

मोदी सरकार ने सर्वदलीय बैठक का फैसला लेकर एक बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. तमाम विपक्षी दल जवानों की शहादत को लेकर पहले भी केंद्र सरकार पर निशाना साधते आए हैं और ऐसे में पुलवामा हमले के बाद सियासी वार और तेज हो जाएंगे. ऐसे में सरकार के लिए जरूरी है कि वह सभी दलों को विश्वास में ले ताकि उनके जरिए देश में आतंक के खिलाफ एक राय से कोई फैसला लिया जा सके. माना जा रहा है कि सरकार इस सर्वदलीय बैठक में न सिर्फ राजनीतिक दलों को हमले की पूरी जानकारी देगी बल्कि उनकी राय और ऐसे हमले के निपटने के बारे में अन्य दलों के विचारों पर भी चर्चा हो सकती है.

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जाहिर है लोकसभा चुनाव में से पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संसद से सड़क तक गहरी राजनीतिक तकरार है. विपक्षी नेता रोज मोदी सरकार पर निशाना साधते नजर आते हैं और उनकी नीतियों की भी खूब आलोचना हो रही है. लेकिन देश के नाम पर सभी दल एक सुर में पहले भी खड़े दिखाई दिए हैं. सर्वदलीय बैठक में अगर आतंकवाद पर लगाम कसने के लिए किसी कदम पर सहमति बनती है तो यह पूरे देश का फैसला होगा, ऐसे में विपक्षी दलों की भी इसमें भागीदारी होगी और तब इस कदम के बाद सरकार को घेरना आसान नहीं रहेगा.

सियासी तकरार है जारी

पुलवामा हमने के दिन ही पीएमओ में मंत्री जितेंद्र सिंह और जम्मू- कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला के बीच तीखी तकरार देखने को मिली थी. जितेंद्र सिंह ने जम्मू- कश्मीर ने नेताओं पर आतंकियों की तरफदारी का आरोप लगाते हुए कहा था कि ऐसे नेताओं को आतंकी हमले की निंदा करने में भी कष्ट होता है. इसके जवाब में उमर ने कहा कि केंद्रीय मंत्री को ऐसा बयान देते हुए शर्म आनी चाहिए, क्योंकि हमने हमेशा से हर आतंकी हमले की कठोर शब्दों में निंदा की है.

ऐसी तल्खियों से साफ है कि पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक रिश्ते हों या फिर आतंक विरोधी ऑपरेशन, इन सभी मुद्दों को लेकर सभी राजनीतिक दल एक राय नहीं रखते हैं. सभी चाहते हैं कि आतंक के खिलाफ एक्शन हो, लेकिन सभी के तरीकों में भिन्नताएं हैं. सरकार अब सर्वदलीय बैठक के जरिए उन सभी दलों को एक मंच पर लाने का काम करेगी जो पहले सरकार की ओर से आतंक के खिलाफ उठाए गए कदमों को शक के दायरे में खड़ा करते आ रहे हैं.

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इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सियासी कद और भी बड़ा हो जाएगा. अक्सर विपक्षी दल सरकार पर आरोप लगाते आए हैं कि पूरी सरकार सिर्फ एक शख्स चलाता है और वो हैं नरेंद्र मोदी. कैबिनेट तक को सरकार के फैसलों के बारे में जानकारी नहीं होती है. इन आरोपों के जवाब में सर्वदलीय बैठक बुलाना एक रणनीतिक कदम भी है क्योंकि इससे देश के हित में सबको साथ लेकर चलने वाले नारे को बल भी मिलेगा. साथ ही इस फैसले का असर उन नेताओं पर भी होगा जो नरेंद्र मोदी पर अकेले फैसले लेने का आरोप लगाते आए हैं.

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