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राफेल पर ऑफसेट सौदे में शामिल कठोर शर्तों को हटाकर सरकार ने दी दसॉ को राहत: रिपोर्ट

राफेल सौदे पर उठा बवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. मंगलवार को एक अंग्रेजी अखबार में आई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि इस सौदे के तहत जो ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, उसमें पहले शामिल कई कठोर शर्तों को सरकार ने हटा दिया था.

राफेल पर नया दावा राफेल पर नया दावा
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 09 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCS) ने राफेल के ऑफसेट सौदे में शामिल कठोर शर्तों को हटाकर दसॉ एविएशन और दूसरी कंपनी एमबीडीए को असाधारण और अभूतपूर्व राहत दी थी. अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है.

खबर के अनुसार, इन दोनों कंपनियों ने 7.87 अरब डॉलर के राफेल सौदे के तहत ही 23 सितंबर, 2016 को भारत सरकार के साथ ऑफसेट समझौते पर दस्तखत किये थे. 24 अगस्त, 2016 को राजनीतिक निर्णय लेने वाली उच्चस्तरीय समिति ने यह राहत दी थी. दोनों कंपनियों को रक्षा सौदे की प्रक्रिया (DPP-2013) के स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट दस्तावेज के कई प्रावधानों के अनुपालन से छूट दी गई. छूट चाहने वालों को खासकर दो बातों से परेशानी थी- आर्ब‍िट्रेशन के लिए ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में तय प्रावधान (अनुच्छेद 9) और इंडस्ट्र‍ियल सप्लायर्स (अनुच्छेद 12) के बही-खातों तक पहुंच. 

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हिचक रहे थे मनोहर पर्रिकर!

इन छूट की मांगों को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद (DAC) ने 'अंतिम समीक्षा और मंजूरी' के लिए सीसीएस के पास भेजा था. खबर में दावा किया गया है कि रक्षा मंत्री खुद इसे अपने स्तर पर मंजूरी देने में काफी असहजता महसूस कर रहे थे, क्योंकि यह रक्षा खरीद प्रक्रिया से काफी हटकर कुछ करने की बात थी.

चुपचाप हटाई गईं दो शर्तें

यही नहीं डीएसी ने चुपचाप दो और महत्वपूर्ण अनिवार्य शर्तों को हटा दिया. डीपीपी 2013 में इस बात का सख्त प्रावधान है कि कॉन्ट्रैक्ट में किसी तरह के 'अनुचित प्रभाव का इस्तेमाल' नहीं होगा और 'एजेंट या एजेंसी को कमीशन' नहीं दिया जा सकता. इसमें यह भी प्रावधान है कि अगर कोई निजी इंडस्ट्र‍ियल सप्लायर इसका उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए. लेकिन डीएसी ने इन शर्तों को चुपचाप हटा दिया. यही नहीं, इसे हटाने के लिए सीसीएस से मंजूरी लेने की जरूरत भी नहीं समझी गई.

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अखबार के अनुसार, सरकार ने इन महत्वपूर्ण तथ्यों को सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपनी जानकारी में नहीं बताया है. अगस्त 2015 में ऑफसेट पॉलिसी में ये बड़े बदलाव किए गए और इसे 21 जुलाई, 2016 के भारतीय निगोशिएशन टीम (INT) की फाइनल रिपोर्ट में शामिल किया गया.

राफेल सौदे के मुताबिक दसॉ एविएशन (साथ में उसके 21 सब-वेंडर) के द्वारा एमबीडीए (साथ में 12 सब-वेंडर) के साथ मिलकर कुल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के 50 फीसदी तक ऑफसेट सौदा भारत में दिया जाएगा. यह करीब 30 हजार करोड़ रुपये का होता है और सौदे के चौथे साल (अक्टूबर 2019) से आगे सातवें साल तक यानी कुल तीन साल में पूरा किया जाएगा. यानी इसमें पहले तीन साल में शून्य देनदारी होगी, जबकि सातवें साल में 57 फीसदी जवाबदेही का पूरा करना होगा. पहले तीन साल में दोनों फ्रांसीसी कंपनियों को मेक इन इंडिया में कोई योगदान नहीं होगा.

बदला गया ऑफसेट प्रस्ताव

आईएनटी की फाइनल रिपोर्ट से पता चलता है कि दसॉ एविएशन और एमबीडीए का शुरुआती ऑफसेट प्रस्ताव कुछ और था, लेकिन रक्षा मंत्रालय की 4 जनवरी, 2016 की बैठक में निर्णय लिया गया कि फ्रांसीसी कंपनियों को तत्काल नया ऑफसेट प्रस्ताव जमा करने को कहा जाए.

गौरतलब है कि देशभर में लोकसभा चुनाव का अभि‍यान चल रहा है, ऐसे में मोदी सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं को सामने रख जनता को विकास का सबूत दे रही है तो कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ राफेल डील को लेकर मोर्चा खोला है.

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