
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का मामला विवादों में घिरता जा रहा है. जहां एक तरफ बीते कुछ महीनों के दौरान कांग्रेस पार्टी ने राफेल सौदे में अनियमितता का दावा करते हुए कई बार प्रेस कांफ्रेंस की है वहीं अब अन्य राजनीतिक दलों के नेता और समाजसेवी भी डील पर उंगली उठा रहे हैं.
इसी क्रम में बुधवार को मशहूर वकील प्रशांत भूषण, असंतुष्ट बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने दावा किया कि मोदी सरकार की राफेल डील ने सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाने का काम किया है और इस डील से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का काम किया गया है.
तीनों नेताओं ने दावा किया कि राफेल डील में पारदर्शिता की कमी के साथ-साथ निर्धारित मानदंडों को नजरअंदाज करने का काम किया गया है. इसके साथ ही इन नेताओं ने आरोप लगाया कि इस डील के जरिए अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को फायदा पहुंचाने का काम किया गया है.
तीनों नेताओं ने आरोप लगाया कि 2015 में मोदी सरकार ने फ्रांस दौरे के वक्त जब डील का ऐलान किया तब उन्होंने न सिर्फ प्रोटोकॉल को नजरअंदाज किया बल्कि पूर्व की कांग्रेस सरकार (यूपीए) के कार्यकाल में की गई सस्ती राफेल डील को भी किनारे कर दिया.
इन नेताओं ने दावा किया कि यूपीए सरकार ने दसॉल्ट के साथ बिडिंग प्रक्रिया के बाद 18 कॉम्बैट एयरक्राफ्ट खरीदने का समझौता किया. इस समझौते के तहत जहां कंपनी को रेडी टू फ्लाई एयरक्राफ्ट देने के साथ ही केन्द्र सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को टेक्नोलॉजी समेत 108 अन्य एयरक्राफ्ट बनाने में मदद देगी. इन तीनों नेताओं ने दावा किया कि यूपीए सरकार की इस डील से सरकारी खजाने पर महज 40 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ा.
वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब फ्रांस के साथ यह डील की तो उसने पुरानी डील का संज्ञान नहीं लिया और 36 एयरक्राफ्ट को खरीदने के लिए 60 हजार करोड़ रुपये में समझौता किया. खास बात है कि 2015 में की गई इस डील में यूपीए की डील के तहत एचएएल द्वारा 108 एयरक्राफ्ट निर्मित कराने पर कोई समझौता नहीं शामिल किया गया. वहीं चौंकाने वाली बात यह भी है कि 2015 में किए गए करार में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के संबंध में भी कोई समझौता नहीं किया गया जिसके चलते सरकारी खजाने को एक तरह से नुकसान पहुंचाने का काम किया गया.
शौरी, भूषण और सिन्हा ने यह भी दावा किया कि संभव है कि केन्द्र सरकार जानबूझकर इस डील पर से पर्दा नहीं उठाना चाहती है. तीनों नेताओं ने बताया कि इस डील से महज एक हफ्ते पहले तत्कालीन केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने फ्रांस सरकार से 126 फाइटर जेट खरीदने का बयान जारी किया था.
लेकिन हफ्ते भर बाद जब खुद पीएम मोदी ने 36 विमान खरीदने का ऐलान फ्रांस दौरे पर किया तो एक बात पूरी तरह साफ हो गई कि इस डील के ऐलान से पहले देश के रक्षा मंत्री को डील के संबंध में कुछ नहीं पता था. इस सच्चाई से भी यह डील संदेह के घेरे में आती है.
राफेल डील पर केन्द्र सरकार के बयानों में खामी दर्शाने के लिए तीनों नेताओं ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा राफेल डील का ऐलान करने से महज 2 दिन पहले तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर दो अहम बात की. पहली, कि फ्रांस सरकार के साथ राफेल पर बातचीत में एचएएल की भी भूमिका है वहीं प्रधानमंत्री मोदी का फ्रांस दौरा महज दो देशों के नेतृत्व स्तर पर मुलाकात के लिए है. जयशंकर के मुताबिक प्रधानमंत्री के दौरे में राफेस समझौते का एजेंडा नहीं शामिल है.
लिहाजा, आखिर कैसे संभव हुआ कि विदेश सचिव के बयान के दो दिनों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रांस के साथ नई राफेल डील का ऐलान कर दिया. इन तीनों नेताओं ने संकेत दिया राफेल डील में रक्षा मंत्री की तरह विदेश सचिव को भी भूमिका नहीं अदा करने दी गई.
अंत में तीनों नेताओं ने दावा किया राफेल डील पर जारी सस्पेंस से साफ है कि यह डील भी बोफोर्स डील की तर्ज पर संदिग्ध है. इन नेताओं ने दावा किया कि जिस तरह से बोफोर्स डील में कांग्रेस सरकार ने सच्चाई छिपाने की कोशिश की उसी तरह राफेल डील में मोदी सरकार सच्चाई पर पर्दा डालने का काम कर रही है.
हालांकि तीनों नेताओं ने दावा किया कि राफेल डील में भ्रष्टाचार का स्तर 1980 के दशक में हुए बोफोर्स घोटाले के भ्रष्टाचार से काफी बड़ा है और राफेल डील ने बोफोर्स डील से बड़ा नुकसान सरकारी खजाने को पहुंचाने का काम किया है.