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राहुल के बयान बन सकते हैं 2019 से पहले महागठबंधन के लिए मुसीबत

ऐसे समय में जब विपक्षी दल 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं, राहुल गांधी के बयान उनकी पार्टी और संभावित सहयोगी दलों के आत्मविश्वास को कमजोर करने वाले हैं.

कई बार अपने बयानों से फंस जाते हैं राहुल गांधी कई बार अपने बयानों से फंस जाते हैं राहुल गांधी
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली ,
  • 13 जून 2018,
  • अपडेटेड 12:11 PM IST

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि आरएसएस के मानहानि मामले में उन्होंने कोई गलती नहीं की है और उन्हें गुनाह कबूल नहीं. इसके एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने दावा किया था कि कोका-कोला के संस्थापक पहले शिकंजी बेचते थे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मानहानि के केस में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर भिवंडी कोर्ट ने आरोप तय किया है. राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत आरोप तय हुआ है.

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कांग्रेस के ओबीसी सम्मेलन में कोका-कोला, मैकडोनाल्ड, फोर्ड मोटर्स, मर्सिडीज बेंज और होंडा के बारे में राहुल गांधी का ज्ञान और मानहानि मामले में भिवंडी की कोर्ट में उनका पेश होना विपक्ष के लिए गलत समय पर होने वाले वाकए हैं.

ऐसे समय में जब विपक्षी दल 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं, राहुल गांधी के बयान उनकी पार्टी और संभावित सहयोगी दलों के आत्मविश्वास को कमजोर करने वाले हैं.

कर्नाटक में बीजेपी को किनारे कर सत्ता में आने से कांग्रेसी उत्साहित हैं. उसके बाद हाल में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में भी बीजेपी को कई सीटें गंवानी पड़ीं.

खासकर राहुल गांधी का यह बयान कि कोका-कोला एक शिकंजी वाले ने शुरू किया था, उनके एक परिपक्व राजनीतिज्ञ होने पर सवाल खड़ा करता है. कांग्रेस अध्यक्ष को लगातार यह दिखाना होगा कि वे 2019 में विपक्ष के निर्विवाद नेता बनने के लायक हैं.

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समय-समय पर राहुल गांधी ने एक उभरते नेता के गुण प्रदर्शित भी किए हैं. लेकिन इसके पहले कि उनके बारे में लोग अच्छी छवि बनाएं, वह खुद ही कुछ ऐसा कर डालते हैं कि उनकी छवि पर बट्टा लग जाता है.

अप्रैल 2015 में 56 दिन के विश्राम से लौटने के बाद राहुल गांधी ने आक्रामकता और परिपक्वता दिखाई थी. उन्होंने 'सूट-बूट की सरकार' जैसे कई उपमाओं से पीएम मोदी और बीजेपी पर हमला किया. उन्होंने पिछले साल गुजरात चुनाव में बीजेपी को बचाव की मुद्रा लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मंदिरों के उनके दौरे और केंद्र सरकार की खामियां उजागर करने से गुजरात में कांग्रेस को फायदा हुआ.

हाल में कर्नाटक और उपचुनावों में कांग्रेस की सफलता का राहुल गांधी को भी फायदा मिला. यहां तक कि उन्होंने खुद को 2019 में पीएम का कैंडिडेट बता दिया. लेकिन हाल की दो घटनाओं ने बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी की लड़ाई को कमजोर किया है.

पहला, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर आरएसएस मुख्यालय जाने से इस संगठन के खिलाफ राहुल की लड़ाई कमजोर पड़ी है. राहुल गांधी संघ के खिलाफ काफी हमलावर रहे हैं. राहुल ने आरोप लगाया था कि, 'आरएसएस के लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की है.' राहुल के इस बयान पर महाराष्ट्र में भिवंडी के एक आरएसएस स्वयंसेवक ने मानहानि का मुकदमा कर दिया. इस सिलसिले में राहुल गांधी को इस साल दो बार भिवंडी कोर्ट में पेश होना पड़ा है.

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आरएसएस के खिलाफ उनकी लड़ाई तो कुंद हुई ही है, उनके आक्रामक तरीके से बयानबाजी और दावों से उनकी विश्वसनीयता भी कमजोर हुई है.

गत 6 जून को एमपी में किसानों की फायरिंग में मौत की बरसी पर राहुल गांधी मंदसौर गए. उन्होंने वहां अपने भाषण में फूड चेन, मोबाइल फोन की मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार जैसे कई मसलों पर एमपी और केंद्र सरकार पर हमला बोला. लेकिन आपदाओं के बाद देश में उद्यमिता के अवसरों पर राहुल गांधी के सवाल उठाने से उनकी ही छवि खराब हुई है.

यह सब कांग्रेस और उन विपक्षी दलों के लिए नुकसानदेह हो सकता है जो 2019 में बीजेपी से लड़ने के लिए एकजुट होने की कोशिश में लगे हैं.

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