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मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर, पहली बार सच्चर कमेटी ने बताया था

कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पूर्व जस्टिस राजेंद्र सच्चर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था. इसे सच्चर कमेटी का नाम दिया दिया गया. सच्चर कमेटी के रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है.

मुस्लिम समुदाय मुस्लिम समुदाय
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 20 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST

देश के मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की हालत को जानने के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पूर्व जस्टिस राजेंद्र सच्चर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था. इसे सच्चर कमेटी का नाम दिया दिया गया. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है. बता दें कि शुक्रवार को राजेंद्र सच्चर का 94 साल की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया.

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सच्चर कमेटी बनाने में इनकी भूमिका

9 मार्च, 2005 को मानवाधिकारों के जाने-माने समर्थक जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में कमेटी का गठन हुआ था. इस कमेटी में सच्चर के अलावा शिक्षाविद्‌ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सैयद हामिद, सामाजिक कार्यकर्ता ज़फर महमूद भी थे. अर्थशास्त्री एवं नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सांख्यिकीविद्‌ डॉ. अबुसलेह शरीफ इस कमेटी के सदस्य सचिव थे.

403 पेज की रिपोर्ट

403 पेज की सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को 30 नवंबर, 2006 में लोकसभा में पेश की गई थी. स्वतंत्र भारत में यह पहला मौक़ा था, जब देश के मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर किसी सरकारी कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी. सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में ही कहा है, भारत में मुसलमानों के बीच वंचित होने की भावना काफी आम है, देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति के विश्लेषण के लिए आज़ादी के बाद से किसी तरह की ठोस पहल नहीं की गई है.

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सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिंदू -

मुस्लिम समुदाय के समक्ष आने वाली समस्याओं और उनके प्रति समाज के भेदभावपूर्ण रवैये के साथ-साथ इस स्थिति से उभरने हेतु आवश्यक कुछ समाधान.

मुस्लिम परिवारों और समुदायों के लिए तय फंड और सेवाएं उन इलाकों में भेज दी जाती हैं, जहां मुसलमानों की संख्या कम है या न के बराबर है.

स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल सुविधा जैसे संकेतकों के डाटा से जाहिर होता है कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के आबादी वाले गांवों और आवासीय इलाकों में इन चीजों की काफी कमी है. मुस्लिम समुदाय को अनुसूचित जाति और जनजाति के पिछड़ा बताया गया.

उस वक्त देश की प्रशासनिक सेवा में मुसलमानों की भागेदारी 3 फीसदी आईएएस और 4 फीसदी आईपीएस. पुलिस बल में मुसलमानों की भागेदारी 7.63 फीसदी. रेलवे में केवल 4.5 प्रतिशत मुसलमान कर्मचारी हैं, जिनमें से 98.7 प्रतिशत निचले पदों पर हैं.

सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व सिर्फ़ 4.9 प्रतिशत बताया गया था. कहा गया कि मुसलमानों की साक्षरता की दर भी राष्‍ट्रीय औसत बाकी समुदाय से कम है.

क्या थीं सच्चर कमेटी की अहम सिफारिशें

शि‍क्षा सुवि‍धा- 14 वर्ष तक के बच्‍चों को मुफ्त और उच्‍च गुणवत्‍ता वाली शि‍क्षा उपलब्‍ध कराना, मुस्‍लि‍म बहुल क्षेत्रों में सरकारी स्‍कूल खोलना, स्कॉलरश‍िप देना, मदरसों का आधुनि‍कीकरण करना आदि.

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रोजगार: रोजगार में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ाना, मदरसों को हायर सेकंडरी स्कूल बोर्ड से जोड़ने की व्यवस्था बनाना.

ऋण सुवि‍धा- प्राथमि‍कता वाले क्षेत्रों के मुसलमानों को ऋण सुवि‍धा उपलब्‍ध कराना और प्रोत्‍साहन देना, मुस्‍लि‍म बहुल क्षेत्रों में और बैंक शाखाएं खोलना, महि‍लाओं के लि‍ए सूक्ष्‍म वि‍त्‍त को प्रोत्‍साहि‍त करना आदि.

कौशल वि‍कास- मुस्‍लि‍म बहुल क्षेत्रों में कौशल वि‍कास के लि‍ए आईटीआई और पॉलि‍टेक्‍नि‍क संस्‍थान खोलना.

वक्‍फ- वक्‍फ संपत्‍ति‍यों आदि का बेहतर इस्‍तेमाल.

वि‍शेष क्षेत्र वि‍कास की पहलें- गांवों/शहरों/बस्‍ति‍यों में मुसलमानों सहि‍त सभी गरीबों को बुनि‍यादी सुवि‍धाएं, बेहतर सरकारी स्‍कूल, स्‍वास्‍थ्‍य सुवि‍धाएं उपलब्‍ध कराना. चुनाव क्षेत्र के परिसीमन प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों को एससी के लिए आरक्ष‍ित न किया जाए.

सकारात्‍मक कार्यों के लि‍ए उपाय- इक्‍वल अपॉर्च्युनि‍टी कमीशन, नेशनल डेटा बैंक और असेसमेंट और मॉनि‍टरी अथॉरि‍टी का गठन. मदरसों की डिग्री को डिफेंस, सिविल और बैंकिंग एग्जाम के लिए मान्य करने की व्यवस्था करना.

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