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गोरखपुर-फूलपुर की हार कहीं दलित सांसदों के असली दर्द की वजह तो नहीं

सूत्रों का कहना है कि शिकायत करने वाले दलित सांसदों की हाताशा का कारण गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के नतीजे भी हैं, क्योंकि उपचुनाव में जिस तरह से सपा और बीएसपी गठबंधन ने बीजेपी को पटकनी दी है, उसके बाद इन सांसदों को 2019 में अपना चुनावी समीकरण बिगड़ता दिख रहा है.

बीजेपी सांसद बीजेपी सांसद
हिमांशु मिश्रा/वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

उत्तर प्रदेश से बीजेपी के चार दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर योगी सरकार की शिकायत की और कहा है कि प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. इन सांसदों ने योगी सरकार पर तब सवाल उठाए हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 में बदलाव को लेकर फैसला दिया है और विपक्ष मोदी सरकार को इस मुद्दे पर घेर रहा है.

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चुनावी समीकरण की चिंता

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक सावित्री बाई फुले, यशवंत सिंह, छोटेलाल, अशोक दोहरे ने योगी सरकार पर सवाल उठाए हैं.  शिकायत करने वाले ये चारों दलित सांसद 2014 के चुनाव या उससे कुछ समय पहले ही पार्टी में आए हैं. सूत्रों का कहना है कि इन सांसदों की हाताशा का कारण गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के नतीजे भी हैं, क्योंकि उपचुनाव में जिस तरह से सपा और बीएसपी गठबंधन ने बीजेपी को पटकनी दी है, उसके बाद इन सांसदों को 2019 में अपना चुनावी समीकरण बिगड़ता दिख रहा है.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने सांसदों को पहले ही कह दिया है कि टिकट दिए जाने से पहले सभी सांसदों की रिपोर्ट तैयार होगी जिसमें उनके काम, सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता, पार्टी के कितने कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का फीडबैक लिया जाएगा. वैसे भी पीएम मोदी ने पार्टी के नए दफ्तर में हुई संसदीय दल की बैठक में कहा था कि फेसबुक और ट्विटर पर सभी के तीन हजार फालोवर होने चाहिए  और अब ये ही डर पार्टी के इन सांसदों को सता रहा है. इसीलिए वे अब योगी सरकार और पार्टी पर सवाल उठा रहे हैं और दूसरी पार्टियों में अपनी जगह भी तलाशने लगे हैं.

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पार्टी फोरम में उठाना चाहिए मसला

बीजेपी दलित मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सोनकर ने कहा कि पार्टी में लोकतंत्र है. इन सभी सांसदों को अपनी जो भी बात कहनी थी उसे पार्टी फोरम में कहते तो ज्यादा अच्छा होता. उन्होंने ये भी कहा कि अगर ये सांसद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी में होते तो इस तरह से पत्र लिख सकते थे क्या ? विनोद सोनकर ने ये भी कहा की सवाल उठाने वाले कब पार्टी में आए हैं, इस पर वे कुछ नहीं बोलेंगे, लेकिन सभी पार्टी में हैं और काम कर रहे हैं . पार्टी तय करेगी कि नाराज लोगों से कब बात करनी है. टिकट पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.

पार्टी में पुराने दलित नेताओं ने आलाकमान के सामने एक बात रखी है. उनका कहना है कि हम चुनाव जीतने के लिए दूसरी पार्टियों से नेताओं को लाते हैं और जब पार्टी मुसीबत में होती हैं तब ये नेता पार्टी और सरकार पर सवाल उठाते हैं जिसका संदेश पार्टी के कार्यकर्ताओं में ठीक नहीं जाता है.

इसलिए सता रही चिंता

वैसे भी इन सांसदों की टिकट को लेकर चिंता जायज है. क्योंकि पीएम मोदी और अमित शाह का गुजरात में इतिहास रहा है कि हर बार 30 से 40 प्रतिशत टिकट काट कर नए चेहरों को मैदान में उतारा जाता है. इससे उम्मीदवार के प्रति जो नाराजगी होती है उसे कम करने में मदद मिलती है और पार्टी की राह आसान हो जाती है. कही उनका टिकट न कट जाए यह चिंता इन ही सांसदों को सता रही है.  कई दूसरे नेताओं को भी इस तरह की चिंता सता रही है लेकिन लेकिन सब मौके के इंतज़ार में हैं.

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