Advertisement

...तो इसलिए वाजपेयी ने किया था आजीवन अविवाहित रहने का फैसला

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक सेवा के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था. गुरुवार को दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली.

अटल बिहारी वाजपेयी (getty images) अटल बिहारी वाजपेयी (getty images)
अजीत तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST

भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज हो चुका है. उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार और लेखक के रूप में हमेशा रहेगी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े अटल जी राजनीति में उदारवाद, समता और समानता के समर्थक माने जाते थे. उन्होंने विचारधारा की कीलों से कभी अपने को नहीं बांधा.

Advertisement

सिद्धांतों की राजनीति पर अडिग

अटल जी ने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया. नीतिगत सिद्धांत और वैचारिकता का कभी कत्ल नहीं होने दिया. राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा. राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा और कार्यशैली के कायल रहे. पोखरण जैसा परमाणु परीक्षण कर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का अहसास कराया. जनसंघ के संस्थापकों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक मूल्यों की पहचान बाद में हुई और उन्हें बीजेपी सरकार में भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

यूपी से था खास लगाव

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षक थे. उनकी मां कृष्णा जी थीं. वैसे मूलत उनका संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से था लेकिन, पिता मध्य प्रदेश में शिक्षक थे. इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ. लेकिन, उत्तर प्रदेश से उनका राजनीतिक लगाव सबसे अधिक रहा. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वो सांसद रहे थे.

Advertisement

कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है. उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं' खूब चर्चित रहा जिसमें..हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा..खास चर्चा में रही.

राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार गिर गई और उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा. यह सरकार सिर्फ 13 दिन तक रही. बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी. इसके बाद हुए चुनाव में वो दोबारा प्रधानमंत्री बने.

राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वो आजीवन कुंवारे रहे. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था. अटलजी को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां क्लिक करें

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक कुशलता से बीजेपी को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया. दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने एनडीए बनाया जिसकी सरकार में 80 से अधिक मंत्री थे, जिसे जम्बो मंत्रीमंडल भी कहा गया. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement