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Ground Report: पास्टर बने 'पापाजी' और चर्च 'यीशु दा मंदिर'...पंजाब में होम चर्च की बाढ़, ईसाई धर्मांतरण की आंखों देखी!

देर रात मैं एक कॉल करती हूं. सिरदर्द की शिकायत के साथ. लेकिन किसी अस्पताल नहीं, बल्कि एक प्रेयर-लाइन पर. उस पार की आवाज ‘तौबा की प्रार्थना’ करवाती है. इसके बाद ‘चंगाई की प्रेयर’. आवाज तसल्ली देती है- सिस्टर, आप यीशू को याद करो. दर्द उठे तो फिर कॉल करना. मैंने अलग-अलग नंबरों पर अलग-अलग वक्त में ऐसे कई फोन किए. इमरजेंसी सर्विस की तेजी से काम करते ये नंबर पेंटेकोस्टल चर्चों के हैं. लगभग पूरा पंजाब ऐसे चर्च और मिनिस्ट्रीज से अटा हुआ.

पंजाब से लगातार धर्मांतरण की खबरें आ रही हैं. पंजाब से लगातार धर्मांतरण की खबरें आ रही हैं.
मृदुलिका झा
  • जालंधर, तरन तारन और अमृतसर,
  • 13 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:43 AM IST

मामूली छींक से लेकर कैंसर...डिप्रेशन से लेकर भूत-भगाई...और मनपसंद साथी से लेकर अमेरिकी वीजा तक...पंजाब के चर्च आपको बहुत कुछ देंगे, बस आप मसीह की शरण में जाइए. गलियों में छोटे-छोटे नामालूम होम-चर्च से लेकर शहर के ऐन बीच एकड़ों में पसरी हुई मिनिस्ट्रीज हैं. यहां पास्टर या पापाजी मिलेंगे, जो सिर पर हाथ धरकर सब पाप हर लेते हैं.

aajtak.in की रिपोर्टर पंजाब की बॉर्डर बेल्ट में पहुंची, जहां उसने खुद जरूरतमंद बनकर ये सारा तामझाम अपनी आंखों से देखा. 
 
पंजाब को पहले अलगाववाद ने खाया, फिर चिट्टे ने, और अब धर्मांतरण दीमक बना हुआ है. चंडीगढ़ में बैठे कई स्कॉलर बार-बार ये शिकायत करते मिलेंगे. 
 
कई दावे हैं जो सूबे की बदलती डेमोग्राफी की बात करते हैं. साल 2011 में हुए सेंसस में यहां लगभग डेढ़ प्रतिशत ईसाई आबादी थी. कथित तौर पर अब वे बढ़कर 15 फीसदी हो चुके. या शायद कहीं ज्यादा. सिख धर्म की शुरुआत वाले इलाकों में भी ढेर के ढेर करतार सिंह और हरमीत कौर हैं, जिनके घरों में गुरुद्वारा साहिब की तस्वीर हटाकर क्रॉस पर चढ़े जीसस का फ्रेम सजा दिया गया. मिनिस्ट्री में मिला एक शख्स कहता है- परमेश्वर हमें भीतर से बदलने को कहते हैं, बाहर मैं चाहे पगड़ी पहनूं! 
 
हकीकत और फसाने के बीच की दूरी को टटोलने हम जालंधर से लेकर पंथक बेल्ट कहलाने वाले तरनतारन भी पहुंचे. 
 
यहां कई होम चर्च मिले, जहां पास्टर में रजाई में दुबके हुए मसीह-चर्चा कर रहे हैं. वहीं शहर के बीचोंबीच पूरे साम्राज्य वाली मिनिस्ट्रीज भी दिखीं. 
 
वे मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को किस्म-किस्म की प्रेयर करवाते हैं. इतवार का दिन पापाजी यानी पास्टर के चमत्कारों के लिए रिजर्व रहेगा. स्क्रीन पर किसी दुखियारे की कहानी चलेगी, जिसके पैर टूट चुके हों, या शैतान जिसके भीतर घुस खुदकुशी के लिए उकसाता हो.

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कहानी खत्म होते-न होते वो शख्स दौड़ता-खिलखिलाता मंच पर आएगा. पांव पंख बन चुके. दुख हवा हो चुका. 
 

 
शुरुआत जालंधर की अंकुर नरूला मिनिस्ट्री से.

लगभग सौ एकड़ में फैली ये मिनिस्ट्री असल में एक पेंटेकोस्टल चर्च है, जिसके पास्टर हैं अंकुर नरूला. प्यार से पापाजी कहलाते इस शख्स के बारे में अनुयायियों का यकीन है कि वे सिर पर हाथ धर दें तो बड़ी से बड़ी मुसीबत खत्म हो जाएगी. 
 
जालंधर के खाबंरा गांव में बसे इस राजपाट की झलकियां रास्ते से ही दिखनी शुरू हो जाती हैं.

जगह-जगह पोस्टर, जिसमें पास्टर किसी सभा में चमत्कार दिखा रहे हों, या चंगाई दे रहे हों, या यीशु की महिमा सुना रहे हों.

फोन पर ही मैंने प्रेयर टावर की युवती से सारी डिटेल ले रखी थी. सालों से चले आ रहे भारी माइग्रेन के लिए दुआ पढ़ते हुए लड़की ने बेहद नरमी से सुझाया- अभी तो आराम मिल जाएगा, लेकिन पूरा ठीक तभी हो सकेगा, जब आप मसीह पर यकीन करेंगी. 
 
यकीन करने का मतलब, वहां आना और उन्हें सुनना. ब्रेनवॉशिंग के लिए एकदम तैयार होकर मैं वहां के लिए निकल पड़ी. मंगलवार का दिन. आज काउंसलिंग होती है, और अगर आपकी किस्मत ज्यादा ही जोर मारे तो वाइट कार्ड भी मिल सकता है. वाइट कार्ड यानी पास्टर से सीधे मिल सकने का मौका. कुछ सेकंड्स के लिए वे सिर पर हाथ रख दें, इसके लिए भारी मारामारी रहती है. 
 
मुझे पहली ही विजिट में वाइट कार्ड मिला. काउसलिंग के बाद कुछ लोग हैरान थे. आपको कैसे कार्ड मिल गया! एक ने कहा- शायद इनका ‘केस ज्यादा हैवी’ हो! इमरजेंसी केस, जिसमें इंसान इतना हार जाए कि मरने-मरने को हो. मैं हां में सिर डुलाती हूं. 
 
गांव से काफी पहले से भीड़ दिखने लगती है. मुंह-मुंह में बुदबुदाते लोगों से पता पूछिए तो वे हाथ से इशारा कर देते हैं. दाएं-बाएं नहीं, मसीह का रास्ता सीधा ही जाता है.

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गाड़ी रुकती है. कई गेट. मैं पैदल निकल पड़ती हूं. लगभग पांच मिनट की दूरी के बाद सिक्योरिटी गेट मिलेगा. यहां सामान की चेकिंग के बाद नाम, आधार कार्ड और फोन नंबर देना है. नंबर देते हुए मैं कहती हूं- फर्स्ट टाइम है. कार्ड लाना है, ये तो पता नहीं था. महिला गॉड ब्लेस यू कहते हुए भीतर जाने कहती है. चेहरे पर भाव- एक बार भीतर तो जाइए, फिर सब पता लग जाएगा. 
 
अंदर बेहद खूबसूरत चर्च, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि ये दुनिया का चौथा सबसे बड़ा चर्च होगा.

मैं पसीना-पसीना होते हुए एक से दूसरे कोने तक जाने की कोशिश करती हूं, लेकिन नाप नहीं पाती. हर तरफ कंस्ट्रक्शन चल रहा है, मानो एक पूरा का पूरा शहर बस रहा हो. खास बात ये कि यहां काम करने वाले भी मसीह का शुक्राना करते हुए पता बताएंगे. 


 
लाल शामियाने के नीचे काउंसलिंग के लिए इंतजार चल रहा है. हर तरफ अंकुर नरूला मिनिस्ट्रीज के लोग तैनात. मोबाइल निकालकर रिकॉर्डिंग का कोई स्कोप न देख मैं टोकन लेती और बाहर ही रुक जाती हूं. 
 
किस्म-किस्म के लोग. पंजाब ही नहीं, हरियाणा और महाराष्ट्र से भी आए हुए. मैं पहली बार आई हूं.

यहां आने से क्या वाकई फायदा होता है? सवाल कीजिए और हर तरफ से जवाब मिलेंगे.

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चमत्कार ही चमत्कार. एक महिला कहती है- मेरी मां को दिल का दौरा पड़ा. हम पवित्र तेल लगाते रहे और प्रेयर करते रहे. तेल लगाते हुए बोलते- यीशु तेरा लहू लगा रही हूं. वो बिल्कुल चंगी हो गईं. डॉक्टर ने सुना तो हैरान रह गया. ये है पापाजी की महिमा. उनका सीधे परमेश्वर से कनेक्शन है. पापाजी यानी अंकुर नरूला और परमेश्वर यानी जीसस. 
 
यूपी के आया एक मूर्तिकार कहता है- मैं मूर्तियां बनाता हूं. खानदानी काम यही है. लेकिन जबसे मसीह को जाना, ये सब बेकार लगता है. पेट पालने के लिए कर रहा हूं, लेकिन जल्द ही वो (ऊपर इशारा करते हुए) कुछ बड़ा इंतजाम करेगा. 
 
आपके घर पर भी सब मसीह को मानते हैं?

नहीं. मेरी पत्नी, बेटा-बेटी, पतोहू सबके सब मूर्तिपूजक. भुगतेंगे वो. जब कयामत आएगी तो परमेश्वर मुझे ले जाएंगे. वो यहीं छूट जाएंगे. 
 
वो सब तो आपका परिवार हैं, उन्हें मनाते क्यों नहीं कि वे भी आपकी राह पर चले!

कोशिश की थी लेकिन फिर छोड़ दिया. जितना समय उनपर लगाऊंगा, उतने में अपने लिए प्रार्थना कर लूंगा. 
 
मिडिल-एज के इस शख्स को हाथी पांव हुआ था. दुनियाभर का इलाज बेअसर रहा, लेकिन पापाजी के हाथ ने सब बदल दिया. वे कहते हैं- बोलिए तो पैर दिखाऊं आपको! डरिए मत, आप ब्लेस्ड हैं, तभी यहां पहुंची. अब इससे नहीं फिरेंगी. 
 
ब्लेस्ड, गुड न्यूज, परमेश्वर और शैतान जैसे शब्द यहां माता के जयकारे की तरह हवा में तैरते मिलेंगे.

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काउसंलिग की लाउंज में बैठने पर कई लोग आपस में बातें कर रहे थे. पापाजी शैतान को भी बिल्ली बना देते हैं. मैं पूछती हूं- क्या यही बेस्ट मिनिस्ट्री है! जवाब आता है- जो कैंसर ठीक कर दें, आसमानी हवा को लौटा दें, उनसे बड़ा कौन होगा. लेकिन सिस्टर, आपको यकीन करना होगा. 

शामियाने के भीतर सैकड़ों लोग इंतजार करते हुए. सबकी अलग कहानी, अलग जरूरत है. किसी को विदेश का वीजा लगाना है तो कोई सास के भीतर बसे शैतान को मारना चाहता है. कैंसर के लास्ट स्टेज मरीज भी यहां बैठे हैं, अपनी बारी का इंतजार करते और जादुई कहानियां सुनते हुए. 
 
सुबह 8 बजे पहुंचने के बाद भी मेरा नंबर है 337. उठकर मैं टोकन काउंटर पर जाती हूं. ब्रदर, मुझे जल्दी है. दिल्ली वापसी है. प्लीज, थोड़ा पहले करवा दो. वो ड्राअर टटोलता है और 211 नंबर की पर्ची थमा देता है. इससे भी पहले का कुछ है क्या? ब्रदर हंसते हुए कहता है- आपको कहां से कहां पहुंचा दिया. अब आधे घंटे और रुक जाइए. 
 
बेहद तेज दुकानदार हर काउंटर पर बैठे हैं जो किसी ग्राहक को वापस नहीं लौटने देंगे, चाहे वो पहली बार आया हो, और चाहे दोबारा आने के कोई आसार न हों. 

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लगभग घंटेभर बाद मेरी पारी आती है. गेट पर मुस्तैद खड़े लोग पर्ची लेते और मार्कर से हाथ पर एक सीधी लकीर खींच देते हैं. वापसी में आड़ी लकीर के साथ क्रॉस साइन बन चुका होता है. गहरा. पापाजी की पहली निशानी. 
 
अंदर सफेद सरवार-कुरते पर ब्लैक स्वेटर पहने और आईडी लटकाए ढेर की ढेर लड़कियां. ये अंकुर नरूला फोर्स है, जो कोने-कोने पर नजर रखती है.

यहां भी वेटिंग. एक-एक टेबल पर एक-एक फ्यूचर पास्टर बैठे हुए, जो काउंसलिंग दे रहे हैं. फोर्स वाली लड़की पास से गुजरती है तो मैं पूछती हूं- यही बेस्ट काउंसलर हैं क्या? अगर कोई और हो तो मुझे उसके पास बिठा दीजिए. लड़की हवा में क्रॉस बनाती हुई निकल जाती है. बेकार सवाल पर वक्त खर्च करने की कोई गुंजाइश नहीं. 
 
नंबर आने पर मैं सामने आता हूं. आरामदेय कुर्सी पर तनकर बैठा फ्यूचर पास्टर पचीस साल से ज्यादा का नहीं होगा. कोट-पैंट डाटे युवक मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए नाम-पता पूछता है. अभी नोट कुछ नहीं किया जा रहा, बस देखकर केस का अंदाजा लिया जा रहा है.
 
डबडबाई आंखों से मैं कहती हूं- माइग्रेन इतना ज्यादा कि रुटीन बिगड़ चुका.
 
कितने साल से है? 'डॉक्टर' पास्टर पूछता है.
 
20 साल से. मैं आंसू लगभग डुलका देती हूं.
 
टिश्यू देते हुए वो मुस्कुराता है, फिर पूछता है- बस यही बात, या कुछ और भी.
 
उम्र कम लेकिन तजुर्बा भरपूर. मुस्कुराती आंखों में सालों और सैकड़ों चेहरों की परख का एक्सपीरिएंस.
 
हां, है तो लेकिन क्या ये कन्फेशन बॉक्स है?
 
तनकर बैठकर युवक इस बार ज्यादा गौर से देखता है- नहीं कन्फेशन तो नहीं, लेकिन आप परेशानी न बताएं तो इलाज कैसे हो! 

मैं पापाजी से मिलना चाहती हूं. 

वो तो अभी नहीं हो सकता. आप मुझसे बात कीजिए. अगर जरूरत पड़ेगी तो वे जरूर मिलेंगे. 

दिल्ली से आई हूं. ज्यादा नहीं रुक सकती. आप मिलवा दीजिए.
 
कोई दिक्कत नहीं. आप चाहें तो यहां ठहर सकती हैं. तीन दिन का कार्ड बन जाता है. रिन्यू भी हो सकता है. बस, आराम उतना ज्यादा नहीं रहेगा. 

यानी बेसिक फैसिलिटी! 

हां बेसिक. रजाई-गद्दे, छत और तीन वक्त खाना-चाय. सिक्योरिटी तो आप देख ही रही हैं, तो उसका भी डर नहीं. 

जी. लेकिन मुझे पास्टर से मिलना है. ले-हैंड (सुनी-सुनाई दोहराती हूं) के लिए. 

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पास्टर मुस्करा रहा है. आप मसीह के बारे में क्या जानती हैं?

वही जो स्कूल में पढ़ा था. 

और?

और तो कुछ नहीं. 

तो पहले थोड़ा उनके बारे में जानिए. यकीन कीजिए, फिर पास्टर से भी मिल लीजिएगा. 

मतलब मैं यकीन न करूं तो मसीह मेरा माइग्रेन ठीक नहीं करेंगे, या परेशानी दूर नहीं करेंगे! चेहरे पर भरपूर हैरानी लाते हुए सवाल. 
नहीं. मसीह तो परमेश्वर हैं. बच्चों को कोई परेशानी होती है तो वो पेरेंट्स के पास जाते हैं, तभी परेशानी दूर होती है. यीशु के साथ भी यही है. लेकिन आपको उनके पास जाना तो होगा. मांगना तो होगा. 

आप पहली बार आई हैं क्या?

हां. 

मैं भी पहले आपकी तरह था. यकीन नहीं करता था. जाट था मैं. पूजा-पाठ वाले घर से. फिर नशे में पड़ गया. नाली किनारे पड़ा रहता. फिर गुड न्यूज (मसीह का संदेश) मिली. मैं उन्हें पढ़ने लगा. पापाजी को ऑनलाइन सुनने लगा. फिर तो यहीं का होकर रह गया. देखिए, लगता है कि कभी मैंने नशा किया हो! 

फ्यूचर पास्टर फर्स्ट-हैंड तजुर्बा बांट रहा है. लोगों से जुड़ने का महीन मनोविज्ञान उसे पता है, जैसे इसकी क्लास मिली हो. 

तो आप मेरे लिए प्रेयर करेंगे?

क्यों नहीं करेंगे लेकिन आपको भरोसा करना होगा. इसके लिए पहले मसीह को जानिए. ये किताबें पढ़िए. पास्टर जी के ऑनलाइन सेशन में आइए. 

लेकिन मैं हिंदू हूं, पूजा-पाठ नहीं छोड़ सकती! मैं अचकचाती हूं. 

मसीह कभी धर्म बदलने को नहीं कहते. वो तो बस अपनी शरण में बुलाते हैं. यहां देखिए, किसी ने भी धर्म नहीं बदला. मेरा खुद का नाम, पहचान वही है. 

तो आप मूर्तिपूजा करते हैं!

नहीं. जिसने मसीह के प्रेम का स्वाद चख लिया हो, वो गली-नुक्कड़ की दुकान नहीं देखता. रटी-रटाई लाइनें ऐसे बोली जाती हैं, जैसे पहली बार कहा जा रहा हो. 

किताबें देते हुए फ्यूचर पास्टर टिकटनुमा कुछ चीजें और पर्चे भी थमाते हैं. एक प्रार्थना है, जिसे मुझे दिन में 10 बार करना है. एक किताब, जिसके जितने पन्ने चाहूं, रोज पढ़ूं. लेकिन हर दिन कम से कम ढाई घंटे मुझे यीशु को देने हैं. 

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ये बात जोर देते हुए कई बार कही जाती है. एक और सलाह- आप चाहें तो 7 दिन, 21 दिन या 40 दिन का उपवास भी कर सकती हैं. प्रभु का आशीष मिलेगा. एक वक्त खा सकती हैं. और बाकी समय पवित्र शास्त्र पढ़िए. हाथ में थमाई नीली जिल्द वाली किताब की तरफ देखते हुए युवक कहता है. 

इतने दिन व्रत और ध्यान करूंगी तो घरवालों को भनक पड़ जाएगी! 

आप चाहें तो यहां रह सकती हैं. यहां से निकलेंगी तो देख लीजिए. पास ही औरतों-आदमियों के लिए अलग-अलग शेल्टर हैं. 

बातचीत करते हुए फ्यूचर पास्टर मुझसे तौबा करवाता है, यानी कुबूलवाता है कि मेरे पापों ने मुझे दुख-तकलीफ दी. तौबा की प्रेयर के बाद चंगाई की प्रार्थना होती है. ठीक टेलीफोनिक प्रेयर की तरह. आखिर में मुझे भी आमीन कहना होता है ताकि दुआ स्वीकार हो जाए. 

वाइट कार्ड बन चुका. सफेद टिकट पर पांच कॉलम हैं, जिसमें नाम, उम्र, पता, प्रॉब्लम और कब से समस्या है, ये लिखने के बाद मुझे तारीख दे दी जाती है. आप किस्मत वाली हैं. पहली बार में किसी को ये कार्ड नहीं मिलता. रविवार को आप आ जाइएगा. 

वहां से निकलते हुए गेट पर तैनात फोर्स मेरे हाथ की सीधी लकीर पर एक आड़ी लाइन खींच देती है. क्रॉस बन चुका. 

बाहर कई पक्की इमारतें और कई मेक-शिफ्ट शामियाने हैं. एक पक्की बिल्डिंग में जाती हूं. वहां पूछताछ काउंटर पर एक पुरुष यीशु का लहू मांगता दिखा, यानी पवित्र तेल. होम्योपैथ दुकानों में मिलने वाली प्लास्टिक की शीशी में एक धुंधला तेल उसे थमा दिया गया. मैं भी तेल मांगते हुए वहीं ठहर जाती हूं. 

हॉल में कई काउंटर. एक बपतिस्मा के लिए. पता लगता है कि पास ही छोटे स्विमिंग पूल की तरह स्ट्रक्चर बना हुआ है, जहां पापाजी लोगों का बपतिस्मा करते हैं. थोड़ी दूर पर एक मैरिज काउंसिलिंग काउंटर. मसीह को मानने वाले कई सिख युवक-युवती यहां अपने लिए अपनी तरह के लोग तलाशते हुए. कई काउंटर किताबों, क्रॉस लॉकेट, चेन, की होल्डर जैसी छुटपुट चीजों से सजे हुए. ये बिक्री के लिए हैं. यहां भी भीड़. 

आगे एक हेल्प डेस्क.  काउंटर पर चाक-चौबंद युवती पहुंचते ही पूछती हैं- सिस्टर, थकी हुई लगती हो, चाय पियोगी? मैं मना करते हुए वाइट कार्ड दिखा पूछती हूं- पापाजी मिलेंगे तो क्या सब ठीक कर देंगे!

भरोसा रखोगी तो सब होगा. वो तो मसीह के सबसे प्यारे बच्चे हैं. उनकी नहीं तो वो किसकी मानेगा. 

आप कबसे यहां हैं?

मैं बहुत दिनों से हूं. मेरे पति भी यहां काम करने लगे. पहले वाली मैं और अब की मैं को देखो तो पहचान नहीं पाओगी. कहानी सुनोगी मेरी...!

हर काउंटर, हर कोने में बिफोर-आफ्टर की चौंका देने वाली लंबी कहानी. सच-झूठ में उलझी हुई मैं बाहर आने को हूं कि आवाज आती है- जाते हुए सेवा कर जाओ. 

सेवा क्या?

डिब्बियों में पवित्र लहू डाल दो, या साफ-सफाई. 

नहीं, लिखा-पढ़ी जैसा कोई काम है क्या? मैं वो कर दूंगी. 

बाहर से आए लोगों को ये काम नहीं मिलता. उसके लिए हम तो हैं ही. वाइट सलवार-कुरती वाली युवती कहती है. चेहरे पर मुस्कुराहट बराबर बनी हुई. सवाल चाहे जितने लंबे, या जितने आड़े-तिरछे हों, जवाब सबका मिलेगा. लौटते हुए व्हील चेयर पर आते-जाते कई लोग टकराते हैं. नई उम्र का एक लड़का मिलता है, जो अमेरिका के वीजा के इंतजार में है. 

लेकिन वहां के लीडर तो सबको भगा रहे हैं! मैं चिंता दिखाती हूं. 

जो मसीह को मानेगा, उसकी हर दुआ मानी जाएगी. युवक के चेहरे पर इतना यकीन, मानो सूटकेस पैक हो चुका हो. अब बस जाना है.



जालंधर के बाद हम तरनतारन जिला के गोइंदवाल साहिब पहुंचे. ये वो कस्बा है, जहां सिख धर्म अपने पक्के रूप में मौजूद रहा. सीमा पर ही एक तख्ती लगी है, जिसपर लिखा है- श्री गोइंदवाल साहिब- सेक्ट ऑफ सिक्ख्स.

पंथक बेल्ट भी मसीह लहर से बची हुई नहीं. यहां कई होम चर्च हैं, यानी घरों की तर्ज पर बने हुए चर्च. भीतर क्रॉस मिलेगा, लेकिन बाहर सफेद दीवारों से ज्यादा शायद ही कुछ दिखे. अंदर भी वही नजारा. पगड़ी पहने हुए सिख सिर झुकाए बैठे हैं.

एक कहता है- 72 साल का हूं. मसीह ने मुझे इंसान बना दिया. पहले क्या था. डरगस (ड्रग्स) लेता और पड़ा रहता. चोरी भी कर लेता था. अब बदल चुका. 

तो क्या आपने धर्म भी बदल लिया है?

ना जी. धर्म क्या होता है. मसीह ही तो है. बाकी तो सब कंकड़-पत्थर. 

फिर आपने पगड़ी क्यों लगाई हुई है?

वो तो आदत है. नहीं पहनेंगे तो नंगा-बूच्चा लगेगा. चेहरे पर काला चश्मा लगाए ये शख्स दोबारा हाथ जोड़ लेता है. 

ये पेंटेकोस्टल चर्च हैं. पंजाब के ज्यादातर हिस्सों में ये बहुत तेजी से फैले. ये न तो धर्म बदलने को कहेंगे, न पहचान बदलने को. बल्कि जोर देंगे कि दस्तावेज और धज आप वही रखिए.

चर्च को यहां यीशु दा मंदिर भी कहा जाता है, और लकड़ी की बेंचों की जगह जमीन पर दरियां बिछी मिलेंगी. क्रिसमस पर यहां शोभा यात्रा निकलती है. और प्रेयर को अरदास भी कह लीजिए. छोटी-आरामदेह सीढ़ियां ताकि बदलाव किसी को न खटके और सबकुछ बदल भी जाए. 

यहां भी दो पास्टर मिले, जो मेरे लिए तुरंत प्रार्थना को तैयार हो जाते हैं. सबके पास समय है. सबके पास एनर्जी कि वो आपकी आंखें खोल सके. कई लोग मिलते हैं, जो चमत्कार की कहानियां सुनाते हुए आपका मन फिराने की कोशिश करते हैं.  

इस बात के जिक्र पर पंजाब के रिसर्चर डॉ रणबीर सिंह कहते हैं- ये मार्केटिंग स्कीम की तर्ज पर काम करते हैं. पास्टर भी केवल पढ़ाई से नहीं बनते, बल्कि साबित करना होता है कि आप कितने लोगों का ब्रेनवॉश कर सकते हैं.

(अगली किस्त में पढ़िए- पंजाब की रगों-रेशों में कैसे ईसाई धर्मांतरण का जाल फैल रहा है, क्यों सिख दूसरी तरफ जा रहे, और कैसे काम करता है ये तमाम तामझाम.)

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