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राम मंदिर मामला: सरकार के कदम का RSS-VHP ने किया स्वागत, धर्मसंसद में संत नाराज

राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार के कदम का स्वागत करते हुए विश्व हिंदू परिषद ने उम्मीद जताई है कि अदालत सरकार की याचिका पर शीघ्र विचार करेगी.

राम जन्मभूमि न्यास की कार्यशाला, कारसेवकपुरम (फाइल फोटो-पीटीआई) राम जन्मभूमि न्यास की कार्यशाला, कारसेवकपुरम (फाइल फोटो-पीटीआई)
हिमांशु मिश्रा/आशुतोष मिश्रा/पॉलोमी साहा
  • नई दिल्ली/प्रयागराज,
  • 29 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

अयोध्या में राम मंदिर मामले में केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सरकार द्वारा अधिग्रहित गैर-विवादित 67 एकड़ जमीन से यथास्थिति हटाते हुए उसके मालिकों को लौटाने की इजाजत मांगी है. राम मंदिर विवाद की पृष्ठभूमि में केंद्र के इस कदम पर तमाम प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने इस सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. तो वहीं, प्रयागराज के अर्धकुंभ में चल रही धर्मसंसद में द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मुद्दे से भटकाने की कोशिश बताया है.

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धर्माचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने राम मंदिर मसले पर केंद्र सरकार के इस कदम पर नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार छलने की कोशिश कर रही है. उन्होंने सरकार इस मुद्दे से भटकाने की कोशिश कर रही है. मंदिर वहीं बनेगा जहां रामलला जन्मे थे, अगल-बगल मंदिर नहीं बनाना है. 30 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्मसंसद में दिन भर चर्चा चलेगी जिसमें इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा होगी.

राम मंदिर मामले में सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि वीएचपी राम जन्म भूमि न्यास की 40 एकड़ जमीन को लौटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा उठाए गए कदम का स्वागत करती है. उन्होंने कहा कि न्यास ने यह जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए हासिल की थी. 1993 में तत्कालीन सरकार ने 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी जिसमें न्यास की जमीन भी शामिल थी. आलोक कुमार ने अपने बयान में कहा कि वीएचपी उम्मीद करती है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की याचिका पर जल्द विचार करेगी. वीएचपी के साथ आरएसएस ने भी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है.

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राम मंदिर मामले में सरकार ने यह कदम तब उठाया है जब प्रयागराज में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद द्वारा बुलाई गई तीन दिवसीय धर्मसंसद के पहले दिन मंदिर को लेकर सरकार द्वारा उचित कदम न उठाए जाने को लेकर आलोचना का प्रस्ताव आया था. वहीं, 30-31 जनवरी को प्रयागराज में ही वीएचपी की अगुवाई में एक और धर्मसंसद होनी है. ऐसे में केंद्र सरकार ने राम मंदिर को लेकर धर्मसंसद में होने वाली चर्चा से पहले संत समाज को एक मुद्दा जरूर दे दिया है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि इस मामले में महज 0.313 एकड़ जमीन को लेकर ही विवाद है, लिहाजा सरकार द्वारा अधिग्रहित बाकी की जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने की कोई आवश्यकता नहीं है. इसलिए विवादित स्थल के आसपास की अधिग्रहित जमीन मामले से जुड़े पक्षकारों को वापस कर दी जानी चाहिए.

गौरतलब है कि बाबरी विधवंस के बाद तत्कालीन नरसिंहा राव सरकार ने 1993 में अध्यादेश लाकर विवादित स्थल और आस-पास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. वहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटा था. जिसमें रामलला विराजमान का हिस्सा हिंदू महासभा, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया था.

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इसके बाद जमीन के मालिकाना हक को लकेर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जिसके बाद 9 मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया.

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