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राज्यसभा स्टिंग मामला: कानून में बदलाव के लिए EC ने मंत्रालय को लिखी चिट्ठी

चुनाव आयोग की कानून मंत्रालय को सोमवार शाम लिखी चिट्ठी का सीधा रिश्ता 'आज तक'-'इंडिया टुडे' टीवी पर दिखाए गए स्टिंग से है.

'आज तक'-'इंडिया टुडे' के स्टिंग का असर 'आज तक'-'इंडिया टुडे' के स्टिंग का असर
लव रघुवंशी/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2016,
  • अपडेटेड 7:13 PM IST

जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के लिए लिखी गई चुनाव आयोग की चिट्ठी को कानून मंत्रालय विधि आयोग के पास भेज सकता है. कानून मंत्रालय के आला अधिकारियों के मुताबिक इस कानून में विधि आयोग की राय इसलिए भी जरूरी है कि आयोग पहले भी अपनी रिपोर्ट में चुनाव कानून में बदलाव की सिफारिश कर चुका है.

फिलहाल मामला राज्यसभा चुनाव में रिश्वत और अवैध रकम के इस्तेमाल को रोकने का है. चुनाव आयोग की कानून मंत्रालय को सोमवार शाम लिखी चिट्ठी का सीधा रिश्ता 'आज तक'-'इंडिया टुडे' टीवी पर दिखाए गए स्टिंग से है. इसके बाद ही राजनीतिक दल हरकत में आए. साथ ही आयोग ने ऐसी कारगुजारियां रोकने के लिए स्पष्ट कानून की मांग की है.

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एक्ट में स्पष्टता की कमी
आयोग के आला अधिकारियों के मुताबिक मौजूदा आरपी एक्ट की धारा 58 और संविधान की धारा 324 में आयोग को दिए अधिकार पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं. इनमें कहा गया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए आयोग को पूरी आजादी है. जरूरी समझने पर आयोग चुनाव कार्यक्रम में फेरबदल स्थगित और रद्द भी कर सकता है.

चुनाव आयोग को मिले अधिकार
आयोग चाहता है कि अवैध धन बल का इस्तेमाल या फिर किसी भी तरह की रिश्वत पर कानूनी रोक लगाने के लिए लोकसभा, राज्यसभा और विधानमंडलों के चुनाव आयोग को साफ अधिकार दिए जाएं. इसके लिए आरपी एक्ट की धारा 58 में एक और उपबंध 'बी' भी जोड़ा जाए. इसके जरिए आयोग को शक्ति दी जाने के बाद जैसे बूथ कैप्चरिंग खत्म की गई, वैसे ही पैसे के अवैध इस्तेमाल को भी रोका जा सकता है.

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चुनाव सुधार की राह आसान नहीं
आयोग को इंतजार है कि विधि आयोग इस पर जितनी जल्दी अपनी सिफारिशें कानून मंत्रालय को भेजेगा उतनी जल्दी विधेयक का मसौदा तैयार कर संसद में पेश किया जा सकेगा. हालांकि इस बाबत पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी का कहना भी उतना ही अहम है कि देश में चुनाव आयोग और विधि मंत्रालय की सिफारिशों के बावजूद चुनाव सुधार कानून ना बन पाने के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. विपक्ष में रहने पर राजनीतिक दल चुनाव सुधार की वकालत करते हैं पर सत्ता में आते ही उनके सुर एकदम बदल जाते हैं. ऐसे में चुनाव सुधार की राह इतनी आसान भी नहीं लगती.

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