
सफाईगीरी कार्यक्रम के वायु प्रदूषण से जंग (Beat air pollution) सेशन में पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की समस्या पर चर्चा हुई. चर्चा के दौरान आजीविका ब्यूरो के सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक राजीव खंडेलवाल ने कहा कि इस देश में किसान हाशिये पर हैं. उनकी समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. उन्होंने कहा कि पराली जलाने की समस्या गांव का मामला है, इस पर ज्यादा ध्यान नहीं जाता है.
राजीव खंडेलवाल ने कहा कि वायु प्रदूषण को हमने मार्केट के हवाले कर दिया है, जैसे कि वर्कर को सेफ्टी मास्क लेना है तो खुद करेगा, अगर उसे सफाई करनी है तो वो खुद करेगा. इंडस्ट्री मैनेजमेंट की इसमें कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा कि इसके लिए वे इंडस्ट्री और वर्क प्लेस को जिम्मेदार मानते हैं. राजीव खंडेलवाल ने कहा कि वे जिस फील्ड में काम करते हैं वहां सिलिकोसिस नाम की बीमारी से सैकड़ों लोग मर रहे हैं. राजीव खंडेलवाल ने कहा कि ये बीमारी सिलिका धूल से होती है. आंकड़े बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बीमारी की वजह से 3 साल में 11 पंचायत में 270 लोगों की मौत हो चुकी है.
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उन्होंने कहा कि सिलिकोसिस के पीड़ित मंदिर के स्तंभ बनाते हैं. इसकी सप्लाई की जाती है. लेकिन सवाल ये है कि हम इन मौतों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं. पराली जलाने की समस्या पर उन्होंने कहा कि शोध वहां होता है जहां शहरी समस्या जुड़ी होती है, लेकिन पराली की समस्या गांव से जुड़ी होती है. इस वजह से इस सेक्टर में शोध नहीं हो पाता है. अगर इसमें रिसर्च होता तो कुछ न कुछ नतीजा जरूर निकलता.
राजीव ने कहा कि पराली जलाने या फिर इसे नष्ट करने का विकल्प क्या है? इस पर हमारी वैज्ञानिक समूह का ध्यान नहीं गया है. इस पर रिसर्च कराने की जरूरत है.