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बाबरी विध्वंस मामला: सुप्रीम कोर्ट का निचली अदालत से सवाल-तय सीमा तक कैसे पूरी करेंगे सुनवाई?

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के जज एसके यादव की याचिका पर यूपी सरकार से जवाब भी मांगा है, जिनका प्रमोशन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहकर रोक दिया है कि शीर्ष अदालत ने उन्हें सुनवाई पूरा करने का निर्देश दिया है.

बाबरी विध्वंस केस बाबरी विध्वंस केस
संजय शर्मा/विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 10 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुनवाई कर रही लखनऊ की एक अदालत से पूछा है कि वह इस मामले में साजिशकर्ता भाजपा नेताओं से संबंधित मुकदमे की सुनवाई किस तरह से अप्रैल 2019 की समय सीमा के भीतर पूरा करना चाहती है.

जस्टिस रोहिंटन नरीमन और इंदू मल्होत्रा की पीठ ने मामले की सुनवाई कर रहे निचली आदालत के जज एसके यादव से पूछा है कि आप किस तरीके से मामसे की सुनवाई तय वक्त में पूरा कर लेंगे. साथ ही कोर्ट ने जज एसके यादव की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से सीलबंद लिफाफे में जवाब मांगा है. बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जज एसके यादव के प्रमोशन पर रोक लगा दिया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, मामले की सुनवाई कर रहे जज का ट्रांसफर न हो.

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बता दें 19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 लोगों पर बाबरी विध्वंस मामले में आपराधिक साजिश का मुकदमा चलेगा. और रोजाना सुनवाई करते हुए अप्रैल 2019 तक सुनवाई पूरी की जाएगी. लखनऊ की सीबीआई अदालत में इन सभी आरोपियों पर आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चल रहा है.

उल्लेखनीय है कि बाबरी विध्वंस के बाद दो एफआईआर दर्ज की गई थी. एफआईआर नंबर 197/1992 उन अनाम कारसेवकों के खिलाफ थी, जिन्होंने विवादित ढांचे को गिराया था, तो दूसरी एफआईआर 198/1992 अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतम्भरा पर दर्ज की गई थी. इन पर उकसाने वाला भाषण और द्वेष फैलाने जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था.

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