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दलितों का गुस्सा, सियासत में भागीदारी और दावेदारी के दावे

दलितों के भारत बंद से ऊपजी हिंसा में राजनीति अपनी हिस्सेदारी ढूंढ़ने लगी, चाहे सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के, सभी अपनी-अपनी तारीफ के पन्ने खोलकर बैठ गए. दलितों का गुस्सा अचानक संविधान बनाने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर तक राजनीतिक दावेदारी का सबब बन गया.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 03 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 11:08 AM IST

दलितों के भारत बंद से ऊपजी हिंसा में राजनीति अपनी हिस्सेदारी ढूंढ़ने लगी है. चाहे सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के, सभी अपनी-अपनी तारीफ के पन्ने खोलकर बैठ गए. दलितों का गुस्सा अचानक संविधान बनाने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर तक राजनीतिक दावेदारी का सबब बन गया.

राजनीति की आंखों में दलितों का आंदोलन एक वोट भी है और डराने वाली एक चोट भी, इसलिए सरकार से लेकर विपक्ष तक सभी बता रहे हैं कि हमने दलितों के लिए क्या किया.

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दरअसल बीजेपी ने पिछले साल दलित नेता रामनाथ कोविंद को देश का राष्ट्रपति बनवाया. पार्टी के रूप में बीजेपी ने 18 साल पहले दलित नेता बंगारु लक्ष्मण को अपना अध्यक्ष बनाया था जिन्हें एक कथित रक्षा सौदे के स्टिंग ऑपरेशन के बाद इस्तीफा देना पड़ा था.

1990 में वीपी सिंह सरकार ने अंबेडकर को भारत रत्न दिया, जो बीजेपी के समर्थन से चल रही थी. बीजेपी का दावा है कि सबसे ज्यादा दलित सांसद उसके ही दल में हैं. हालांकि उसके ही दलित सांसद एससी/एसटी एक्ट में बदालव पर सवाल भी उठा रहे हैं. फिलहाल दलित मामले को लेकर बीजेपी सांसद सावित्री बाई फूले पार्टी पर ही सवाल उठा रही हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस के तरकश में भी दलितों की भलाई वाले अपने तीर हैं. कांग्रेस के समर्थन से चलने वाली संयुक्त मोर्चा की सरकार ने दलित नेता के आर नारायणन को देश का राष्ट्रपति बनवाया था. कांग्रेस ने दलित नेता मीरा कुमार को लोकसभा का अध्यक्ष बनवाया. जबकि उप-प्रधानमंत्री रहे जगजीवन राम कभी कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.

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नेहरू के मंत्रिमंडल में डॉ. भीमराव अंबेडकर और जगजीवन राम मंत्री रहे. अब इस हिंसा की आंच से साफ है कि सियासी रोटियां सेंकने की पूरी कोशिश हो रही है.

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