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वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारियों पर SC ने लगाई रोक, 6 सितंबर को अगली सुनवाई

एक जनवरी को पुणे के नजदीक भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरा होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दो समूहों के बीच संघर्ष में एक युवक की मौत हो गई थी और चार लोग घायल हुए थे. इस  हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद इसकी आंच महाराष्ट्र के 18 जिलों तक फैल गई थी.

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 7:43 PM IST

भीमा कोरेगांव मामले में वामपंथी विचारकों और समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगाते हुए अगली सुनवाई (6 सितंबर) तक उन्हें नजरबंद करने का आदेश दिया है.

दरअसल भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में एक साथ सुनवाई हुई. जहां सुप्रीम कोर्ट में सभी आरोपियों की तरफ से गिरफ्तारी पर रोक की अपील की गई, वहीं दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली से गिरफ्तार गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई हुई.

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सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच के सामने पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार वामपंथी विचारकों की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पुलिस की एफआईआर में गिरफ्तार लोगों का कोई जिक्र ही नहीं है और ना ही आरोपियों के ऊपर किसी तरह की मीटिंग करने का आरोप है. यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार जीने के अधिकार से जुड़ा है. लिहाजा पक्षकारों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए.

जिस पर जस्टिस चंद्रचूण ने कहा कि असहमति या नाइत्तेफाकी हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, यदि आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे तो वो फट सकता है. लिहाजा अदालत आरोपियों को अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगाती है, तब तक सभी आरोपी हाउस अरेस्ट में रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी.

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वहीं दिल्ली हाई कोर्ट में इसी मामले में गिरफ्तार गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा कि उनकी गिरफ्तारी का आदेश मराठी भाषा में क्यों था. हाईकोर्ट जज जे मुरलीधर ने कहा कि यह इस मामले का अहम पहलू है. यदि गिरफ्तारी का आदेश मराठी भाषा में होगा तो यह कैसे समझा जा सकता है कि गिरफ्तारी के पीछे की वजह क्या है. जस्टिस मुरलीधर ने महाराष्ट्र पुलिस की तरफ से सरकारी वकील अमन लेखी से सवाल किया कि अभी तक इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों का अनुवाद क्यों नहीं किया गया?

जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि किस आधार पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने ट्रांजिट रिमांड के आदेश दिए जबकि वह यह भाषा समझ ही नहीं सकतीं. जिसपर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी की तरफ से दलील दी गई कि इस मामला गंभीर होने के कारण मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष कागजात का मौखिक अनुवाद किया गया.

तब जस्टिस मुरलीधर ने पूछा कि क्या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को केस डायरी (जो कि मराठी में थी) दिखाई गई. तब पुणे पुलिस ने जवाब दिया कि केस डायरी नहीं दिखाई गई. इसी दौरान सरकारी वकील लेखी ने हाई कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांजिट रिमांड पर रोक लगा दी है.

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जिसके बाद हाईकोर्ट की तरफ से कहा गया कि अब इस मामले पर आगे बढ़ना अनुचित होगा.

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