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वैज्ञानिकों की चेतावनी- आबादी रोको वरना दुनिया हो जाएगी खत्म

एक बार फिर दुनिया खत्म होने की ओर अग्रसर हो रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण दुनियाभर में कई प्रजातियों का लगातार विलुप्त होना है.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
केशवानंद धर दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 1:04 PM IST

एक बार फिर दुनिया खत्म होने की ओर अग्रसर हो रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण दुनियाभर में कई प्रजातियों का लगातार विलुप्त होना है.

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में नेशनल अकेडमी ऑफ सांइसेज की स्टडी के हवाले से ये बाताया गया कि वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया छठी बार खत्म होने की तरफ है. इससे पहले भी 5 बार ऐसा हो चुका है, लेकिन वो सब प्राकृतिक कारणों से हुआ था.

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कुछ वैज्ञानिक का मानना है कि इस विनाश को अब सिर्फ इंसानों की बढ़ती आबादी में कमी लाकर ही रोका जा सकता है. उनका कहना है कि जब आबादी कम होगी, तो पर्यावरण के दोहन की गति भी अपने आप कमी होती जाएगी.

रिपोर्ट्स के मुताबिक पशुओं की संख्या में हो रही कमी को दुनियाभर के लिए खतरा बताया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानी आबादी के बढ़ने से जानवरों के ‘घरों’ यानी जंगल, पानी में दखल हो रहा है. उनका कहना है कि इंसान जंगलों को काटा रहा है, जिसके कारण ये खतरा तेजी से बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक पिछले 100 सालों में 200 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं. वहीं पिछले 20 लाख सालों से सामान्य तौर पर हर 100 साल में महज 2 प्रजातियां ही विलुप्त होती थीं.

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बता दें कि नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज की स्टडी में प्रजातियों के विलुप्त होने के दूसरे कारणों को भी विस्तार से बताया गया है, जिसमें पर्यावरण प्रदूषण और लगातार जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण हैं.

नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज की स्टडी में बताया गया कि-

धरती पर पाए जाने वाले 30% रीढ़धारी, पक्षियां, रेप्टाइल्स और उभयचर की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है. उनकी संख्या हर रोज कम होती जा रही है. दुनिया के कई हिस्सों में स्तनधारियों की आबादी में 70 फीसदी तक की कमी हो गई है. बता दें कि अफ्रीकी शेरों की संख्या में साल 1993 से अब तक 43 फीसदी की गिरावट आई है.

 

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