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ममता के राज में 'राम' हुए 'रोंग', सेकुलर हुईं स्कूली किताबें!

बांग्ला में इंद्रधनुष के लिए 'रामधोनु' का इस्तेमाल होता था. इसका शाब्दिक अर्थ 'राम का धनुष' है. अब पाठ्यपुस्तकों में इसे बदलकर 'रोंगधोनु' कर दिया गया है.

बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन
संदीप कुमार सिंह
  • कोलकाता,
  • 13 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 5:24 PM IST

क्या ममता बनर्जी सरकार ने पश्चिम बंगाल में स्कूली पाठ्य-पुस्तकों को 'धर्मनिरपेक्ष' बनाने की मुहिम छेड़ रखी है? राज्य में कुछ लोग ऐसे ही आरोप लगा रहे हैं. इस मुद्दे ने पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन की ओर से कुछ प्रचलित बंगाली शब्दों को नए शब्दों से बदले जाने के बाद तूल पकड़ा है.

मसलन, बांग्ला में इंद्रधनुष के लिए 'रामधोनु' का इस्तेमाल होता था. इसका शाब्दिक अर्थ 'राम का धनुष' है. अब पाठ्यपुस्तकों में इसे बदलकर 'रोंगधोनु' कर दिया गया है. कहा जा रहा है कि 'राम' से धार्मिक जुड़ाव का आभास होता था, संभवत: इसीलिए ये फैसला किया गया.

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एक और शब्द बदले जाने ने भी सोशल मीडिया पर तूल पकड़ रखा है. अब आसमानी रंग को बताने के लिए बांग्ला शब्द 'आकाशी' का इस्तेमाल नहीं होगा. इसकी जगह 'आसमानी' शब्द का ही इस्तेमाल होगा. विरोध करने वाले इसे उर्दू का शब्द बता रहे हैं. 'रामधोनु' और 'आकाशी' दोनों शब्दों का इस्तेमाल सातवीं कक्षा की पर्यावरण विज्ञान की पुस्तक 'पोरीबेश ओ विज्ञान' के 'बरनाली' अध्याय में होता था.

हालांकि बंगाल की सरकारी पाठ्यपुस्तकों को रिडिजाइन करने वाली विशेषज्ञ समिति ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. इंडिया टुडे से बातचीत में कमेटी के चेयरमैन अवीक मजूमदार ने इन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है कि बच्चे बंगाली में प्रयुक्त होने वाले वैकल्पिक शब्दों से भी अवगत रहें.

मजूमदार ने कहा, 'इंद्रधनुष का राम या लक्ष्मण से कोई लेना देना नहीं है. ये सिर्फ रंगों का धनुष है. इसलिए हमने 'राम ' की जगह 'रोंग' का इस्तेमाल करने का फैसला किया जिसका बांग्ला में अर्थ 'रंग' होता है. हकीकत ये है कि कई प्रतिष्ठित बंगाली लेखक वर्षों से अपने लेखन में 'रोंगधोनु' का इस्तेमाल करते रहे हैं.'

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