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हर साल बच्चों से यौन शोषण के करीब 33 हजार केस हो रहे दर्ज, निपटारे की दर 24 फीसदी

बच्चों से रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने दाखिल की रिपोर्ट. राज्यों से मिले आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 2014 से 2017 तक हर साल पोक्सो एक्ट के तहत लगभग 33000 केस दर्ज हुए.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 1:37 PM IST

मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न और रेप के पिछले सालों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान (suo moto) में लेते हुए मामले में जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू की तो आंकड़ों का जिन्न सामने आया.

बच्चों से रेप मामले में SC के रजिस्ट्रार ने दाखिल की रिपोर्ट

राज्यों से मिले आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 2014 से 2017 तक हर साल पोक्सो एक्ट के तहत लगभग 33000 केस दर्ज हुए. साल 2014 से 2018 के बीच इन केसों के निपटारे की दर 24 फीसदी रही. बाकी 76 फीसदी केसों में लंबित मामलों की दर पिछले पांच सालों मे 1533 फीसदी यानी 15 गुणा बढ़ गई है.

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सबसे ज्यादा मामलों का निपटारा करने वाले राज्यों में मिजोरम 52%, मध्य प्रदेश 36 % , सिक्किम 39 %, गोवा 31 % और असम 30 % हैं. पोक्सो के मामलों के निपटारे का राष्ट्रीय औसत 24 % रहा. केसों के निपटारे में ओडिशा 12 %, महाराष्ट्र 14 % और देश की राजधानी दिल्ली 15 फीसदी के साथ नीचे रहे. इस रफ्तार से इन लंबित केसों के निपटारे में 6 साल और लगेंगे. तब तक ऐसे मुकदमों का बोझ और आंकड़ा और बढ़ जाएगा.

देश में जजों की संख्या भी पोक्सो मुकदमों के अनुपात में बेहद कम है. यानी आंकड़ों के आईने में यह अनुपात 1: 224 है. यानी एक जज पर पोक्सो के 224 मुकदमों की सुनवाई की जिम्मेदारी. इस मामले में सबसे अच्छे अनुपात में छत्तीसगढ़ 1: 51, पंजाब  1: 51 और झारखंड 1: 82 हैं. सबसे बुरे राज्य केरल 1: 2211 (14 जिलों में तीन कोर्ट), यूपी 1: 592, महाराष्ट्र 1: 555, तेलंगाना 1: 492 और दिल्ली में 1: 383 हैं. पोक्सो एक्ट के प्रावधान के मुताबिक एक साल में ट्रायल पूरा करने के लिए 1: 60 का अनुपात चाहिए.

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मुकदमों के इस बोझ का एक साल में निपटारे के लिए तीन गुणा विशेष अदालतों का गठन होना जरूरी है. पीड़ित बच्चों को मुआवजा देने के मामले में भी अधिकतर राज्य सरकारें फिसड्डी हैं. अभी तक प्राप्त डेटा के मुताबिक पोक्सो के केसों में 2015 में 3%, 2016 में 4% और 2017 में 5% पीड़ितों को मुआवजा मिला यानी मुकदमे दर्ज होने से लेकर जांच, सुनवाई, फैसला, सज़ा और मुआवजा सबमें भारी असंवेदनशीलता और लापरवाही देखी गई.

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